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सोभन छंद (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

सोभन छंद ********* विषय- लक्ष्मण मस्तूरिया गीत मा मस्तूरिया के, सत रहय हर गोठ। लोक-गीतन ला बनाइन, राज के बड़ पोठ।। खेतिहर मजदूर मन के, जेन समझय पीर। चाह राखय उँन सबो के, बन सकय तकदीर।। गीत मा त्यौहार मन के, गोठ रहय समाय। जे सुनइया लोग मन ला, सत म अबड़ सुहाय।। राज के मस्तूरिया हा, रहिन जन कवि एक। मनुख ला संदेश देवत, लिखिन गीत कतेक।। गीत मन मस्तूरिया के, हें सबो बड़ खास। सुनइया मन मा जगाथें, आस अउ बिश्वास।। गोठ भुँइया के हवय गा, गीत मा हर जान। लोकगायक के बनाथे, जे अलग पहिचान।। विषय - करम छोड़ के आलसपना ला, करव सुग्घर काम। जेन मेहनती रथे गा, उन कमावत नाम।। बखत बिरथा झन गँवाये, गोठ राखव ध्यान नेक मनखे के बनाथे, करम हा पहिचान।। विषय - का लिखवँ का लिखवँ सूझत नहीं हे, आज सोभन छंद। लागथे अइसे मगज के, द्वार हावय बंद।। सोचथव ता मुड़ पिराथे, का करव भगवान। बन जतिस दू डाँड़ सुग्घर, बस इहीं अरमान।। विषय - पर्यावरण बाँचही पर्यावरण ता, बाँचबो सब लोग। ये बचाये बर सबोझन, दव अपन सहयोग।। पेड़ पौधा बड़ लगावव, जल बचा लव ठान। सब डहर ला स्वच्छ राखव, छेड़ के अभियान।। चोट गा