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मुक्ताहरा सवैया (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

 मुक्ताहरा सवैया (1) खराब रथे ग रसायन खातु बनावत ये हर बंजर खेत। करौ कमती इन के उपयोग सबोझन हा अब जावव चेत। हरे सत जी धनहा सब खेत ल आज खराब इही कर देत। सचेत रहौ बन भी सकथे सिरतोन बने भुँइया हर रेत। (2) मनावत देश हवै बड़ सुग्घर देखव गा गणतंत्र तिहार। इहाँ सत होवत हावय गा सुख के बरसा सब ओर अपार। सबो झन एक जघा सकलावँय पर्व मनावँय ते हर सार। हरे दिन आज बड़ा शुभ पालव द्वेष नहीं बस बाँटव प्यार। (3) रही शुभ गा मन ले प्रभु नाँव जपौ अउ रोज लगावव ध्यान। दुखी जन ला सुख देवइया भगवान हरै सत मा हनुमान। इहाँ दिन रात रमे रहिबो मन ले प्रभु भक्ति म लेवव ठान। बने रहिहू तब याद रखौ सिरतोन भला करही भगवान। (4) गरीब इहाँ जिनगी भर गा रहि जावत हावय एक गरीब। नहीं इन ला कउनो हर पूछय हाल इहाँ बड़ गोठ अजीब। रथे छटके सब लोगन ओकर ले कउनो नइ आयँ करीब। लिखे भगवान हवै इन के सब देखव काबर खीक नसीब। (5) किसान इहाँ जिनगी भर काबर गा सहिथे दुख दर्द अपार। कभू नइ आवय गा कउनो सुध लेबर काबर ओकर द्वार। सबो कुछु देखत जानत हे तब ले चुप गा रहिथे सरकार। सुनौ समझौ दुख दर्द ल ओकर जीवन ओकर देव सँवार। (6) किसान

आभार सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

आभार सवैया (1) अभ्यास ले साधथे जे कला ला उही हा हरे एक सच्चा कलाकार। सम्मान पाथे उही हा नहीं मानथे जेन हालात ले गा कभू हार। जेहा बनाथे कला ले जघा खास संसार मा नीक पाथे उही प्यार। जानौ लगातार अभ्यास हे कामयाबी इहाँ पाय के एक आधार। (2) तैं हा इहाँ ज्ञान के दीयना बार के मीत फैला सबो ओर अंजोर। अज्ञान के बीतही रात कारी तहाँ नीक आही इहाँ गा नवा भोर। ईमान हा हालही गा नहीं रेंग तैं हा सदा साँच के थाम के डोर। अच्छा इहाँ काम अंजाम देना हवै तैं इहीं बात मा दे सदा जोर। (3) मीठा सदा बोलके मारथें गा लबारी सबो राज नेता इहाँ जान। तोला सदा लूटही ओ सबो गा इहाँ मानके जोजवा और नादान। तैं सोच के रेंगबे गा कभू मूँद के आँख ला बात लेबे नहीं मान। तोला बचाना हवै गा स्वयं के इहाँ जान अस्तित्व ला बात ले ठान। (4) जे राखथे सोच अच्छा सदा ओकरे होत संसार मा मान सम्मान। ये गोठ हा सत्य आये इहाँ चैन पाये नहीं गा कभू नीच इंसान। ज्ञानी इहाँ बोलथे बात ओला सुनौ ध्यान ले खोल के गा रखौ कान। आथे सदा जिंदगी मा बने काम जाये नहीं गा कभू फालतू ज्ञान। (5) कुर्बान होये हवै देश के नाम ले ओ सबो लोग ला गा रखौ याद।

सर्वगामी सवैया (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

 सर्वगामी सवैया (१) होही महापाप ओ हा इहाँ तो कभू काकरो गा जिया ला दुखाबो। अच्छा सदा पेश आबो सबो ले तभे सेत गंगा इहाँ गा नहाबो। इंसान के फर्ज जे हे निभाबो सदा प्रेम के नीक मोती लुटाबो। जानौ बिना स्वार्थ के काम अंजाम देबो तभे नाव अच्छा कमाबो। (२) वृद्धा अवस्था म माता पिता ला नहीं कष्ट देवौ नहीं गा सतावौ। संतान के जेन गा फर्ज होथे बने ढ़ंग ले रोज ओला निभावौ। माता पिता देवता तुल्य होथें सदा मान दे चित्त मा गा बसावौ। सेवा करौ पुण्य ला गा कमावौ बने एक संतान होके दिखावौ। (३) जे खेलथे खेल ला खेल के भावना ले उही एक सच्चा खिलाड़ी। जे रेंधईया इहाँ लेत हे खेल मा ओ हरे जान लौ गा अनाड़ी। जेहा सही फैसला ले नहीं पाय ओ के रथे लक्ष्य ले दूर गाड़ी। जी-जान जेहा लगा खेलथे गा उही जीत के हे चढ़े जी पहाड़ी। (४) इंसान होथे उही नेक सच्चा गिरे लोग ला जे इहाँ गा उठाथे। जे स्वार्थ देखे नहीं काम आथे इहाँ काकरो जिंदगी ला बनाथे। जाना कहाँ हे बताथे सबो लोग ला गा सही जेन रद्दा सुझाथे। तारीफ पाथे उही हा बड़ा जे सबो ला इहाँ नीक जीना सिखाथे। (५) देखौ बड़ा खीक होगे हवै आव जम्मो बने फेर भू ला सजावौ।

मंदारमाला सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

 मंदारमाला सवैया (1) माहौल संसार के नीक होही तभे लोग जम्मो रहू प्यार ले। हाँसी-खुशी गा मनाओ बने प्यार हा बाढ़थे तीज त्यौहार ले। बाँटों सदा प्यार संसार मा लोग जावै न जुच्छा कभू द्वार ले। जम्मो झने काम ऐसे करौ गा इहाँ स्वप्न ये नीक साकार ले। (2) इंसान हा खीक धंधा सबो छोड़ के अच्छा करै कर्म संसार मा। जीये सदा दुश्मनी ला भुलाके बने शक्ति होथे बड़ा प्यार मा। रोये नहीं नेक इंसान हा हार ले खोज लेथे खुशी हार‌ मा। संसार के ये नदी मा नहीं जेन तौंरे बहा ओ जथे धार मा। (3) पैरा जलाबे नहीं खेत कोठार मा घूँगिया हा उड़ाथे कका। ये धूँगिया जानलेवा बड़ा कर्क टीबी दमा रोग लाथे कका। पैरा बचाना सही हे इहाँ गाय भैंसी बने रोज खाथे कका। ओ धान पाथे बने जे इहाँ खाद पैरौंवसी के बनाथे कका। (4) जे बीत गे हे भुलाके बढ़ौ गा करौ काम अच्छा नवा साल मा। संकल्प लेके चलौ लक्ष्य पाहू सदा याद राखौ सबो हाल मा। होही सबो आपके स्वप्न पूरा बढ़ौ रोज आघू सधे चाल मा। गाओ खुशी के बने गीत गा और नाचो नवा साल हे ताल मा। (5) जेहा सताथे इहाँ नेक माँ-बाप ला दंड ला झेलथे पाप के। दोनों झने के तिरस्कार ले हो जहू आप भागी