सर्वगामी सवैया (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

 सर्वगामी सवैया

(१)
होही महापाप ओ हा इहाँ तो कभू काकरो गा जिया ला दुखाबो।
अच्छा सदा पेश आबो सबो ले तभे सेत गंगा इहाँ गा नहाबो।
इंसान के फर्ज जे हे निभाबो सदा प्रेम के नीक मोती लुटाबो।
जानौ बिना स्वार्थ के काम अंजाम देबो तभे नाव अच्छा कमाबो।
(२)
वृद्धा अवस्था म माता पिता ला नहीं कष्ट देवौ नहीं गा सतावौ।
संतान के जेन गा फर्ज होथे बने ढ़ंग ले रोज ओला निभावौ।
माता पिता देवता तुल्य होथें सदा मान दे चित्त मा गा बसावौ।
सेवा करौ पुण्य ला गा कमावौ बने एक संतान होके दिखावौ।
(३)
जे खेलथे खेल ला खेल के भावना ले उही एक सच्चा खिलाड़ी।
जे रेंधईया इहाँ लेत हे खेल मा ओ हरे जान लौ गा अनाड़ी।
जेहा सही फैसला ले नहीं पाय ओ के रथे लक्ष्य ले दूर गाड़ी।
जी-जान जेहा लगा खेलथे गा उही जीत के हे चढ़े जी पहाड़ी।
(४)
इंसान होथे उही नेक सच्चा गिरे लोग ला जे इहाँ गा उठाथे।
जे स्वार्थ देखे नहीं काम आथे इहाँ काकरो जिंदगी ला बनाथे।
जाना कहाँ हे बताथे सबो लोग ला गा सही जेन रद्दा सुझाथे।
तारीफ पाथे उही हा बड़ा जे सबो ला इहाँ नीक जीना सिखाथे।
(५)
देखौ बड़ा खीक होगे हवै आव जम्मो बने फेर भू ला सजावौ।
येला बचाना हवै गा सुनौ खास चारो मुड़ा पेड़-पौधा लगावौ।
आही सबो के इहाँ काम काली बहाओ नहीं रोज पानी बचावौ।
इंसान हा शुद्ध हावा इहाँ ले सके नीक माहौल आओ बनावौ।
(६)
इंसान के संगवारी हरे ओ बने जे बुरा बेर मा काम आथे।
विश्वास के ओ नहीं योग्य हे पीठ ला जे दिखा के इहाँ भाग जाथे।
सच्चा हरे दोस्त ओ हा इहाँ दोस्त ला सत्य के मार्ग मा जे चलाथे।
छोड़े नहीं दोस्त के हाथ ला दोस्त के साथ जेहा हमेशा निभाथे।
(७)
ऐ कोत ओ कोत लाखों युवा लोग हा घूमथें घात डिग्री धरे गा।
जाथें भुला भूख ला प्यास ला फेर पाये नहीं नौकरी का करे गा।
बेकार होथे सबो यत्न ता हो दुखी सोचथें भाग खोटा हरे गा।
कोनो कहाँ आज हावै इहाँ जिंदगी मा खुशी ओ सबो के भरे गा।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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