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Showing posts from October, 2020

महाभुजंग प्रयात सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

 महाभुजंग प्रयात सवैया (1) चलो बाग़ ला फेर संगी सजाबो बने पेड़ पौधा उहाँ गा लगाबो। खिले फूल रंगीन जेमा बने लाल पीला गुलाबी सबो ला दिखाबो।। रही छाँव जेमा मिले शुद्ध हावा सबो लोग ला गा निरोगी बनाबो। हरा पेड़ पौधा रहे ले बने लागथे ये धरा गा सबो ला बताबो।। (2) घरे आंगना देहरी मा मया आस विश्वास के नीक दीया जलाहू। जला ज्ञान के दीप संसार ले खीक अग्यान के गा अँधेरा मिटाहू।। रहौ साथ मा पर्व संदेश देथे भुला दुश्मनी एकता गा दिखाहू। कहूँ भी रहू फेर हाँसी खुशी ले महापर्व दीपावली ला मनाहू।। (3) बने ढ़ंग ले पर्व दीपावली ला मनाना हवै सबो ठान लौ जी। महापर्व येला कथे हिंद मा जी हरे देश के गर्व ये मान लौ जी।। सदा सत्य के जीत होथे सिखाथे सबो ला इहाँ पर्व ये जान लौ जी। बड़े शान ले गा निभाना हवै ये प्रथा ला मुँहू मा खुशी लान लौ जी।। (4) बड़े सोच राखौ बने काज होथे तभे नीक संसार मा नाम होथे। सदा धैर्य ले काम लेहू इहाँ गा तभे शत्रु के चाल नाकाम होथे।। बिना स्वार्थ बूता करे ले सुनौ गा बने देखहूँ आप अंजाम होथे। करौ गा भला काखरो जान जावौ इही हा सबो ले बड़े काम होथे।। (5) बचाना हवै पेड़ पौधा

सुखी सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

सुखी सवैया (१) मन मा सब नीक विचार रखौ अउ नौ दिन के नवरात्र मनावव। जग के जननी मइया दुरगा खुश होवय गा जयकार लगावव।। मइया बहुला सबके सुनथे सुर ताल लगा उन के जस गावव। अउ नौ दिन के उवपास रखौ मन वांछित सुग्घर गा फल पावव।। (२) खुद दीपक हा जलके भइया जइसे उजियार इहाँ बगरावत। अइसे पर के हित जीवन ला अब जीवय सुग्घर बात सिखावत।। पर ला सुख देय इहाँ मिलथे सत मा सुख गा बड़ पाठ पढ़ावत। लड़बे तब जीत इहाँ मिलथे जनमानस अंतस भाव जगावत।। (३) नदिया नरवा झरना तरिया सबला तँय हाबच आज भुलावत। बखरी भररी टिकरा अउ खेतन के सुरता नइ हावय आवत।। बर पीपर आम उदास खडें सब पेड़ इहाँ बिन तोर सुखावत। सब छोड़ इहें परदेश गये हस वापिस आ अब गाँव बलावत।। (४) बिटिया मन हा अब ई रिकशा बस मोटर ट्रेन जहाज चलावत। अब डॉक्टर नर्स घला बनके मनखे मन के उन प्रान बचावत।। बनके जज पोलिस लॉयर जी जन मानस ला अब न्याय दिलावत। बन सैनिक गा हथियार उठावत दुश्मन ला अब धूल चँटावत।। (५) पढ़के लिखके बिटिया मन हा कर काम बने अब नाम कमावत। अपने कर ले अब देखव गा अपने कइसे तकदीर बनावत।। दुनिया कहिथे बड़ नाजुक हें तब ले घर के उन बोझ उठावत

अरविंद सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

 अरविंद सवैया (1) नइ धीरज खोवय वीर उही कहलावत हे जग मा रख याद। उठ रोज बिहान बुता करथे नइ होवन दे दिन ला बरबाद। दुख भूल रथे खुश जीवन मा तब छू नइ पाय कभू अवसाद। मन माफिक मंजिल पावत हे चिखथे जय के उन नीक सुवाद।। (2) लड़की मन ला लड़का जइसे घर बाहिर देवव गा अधिकार। झन भेद रखौ लड़का लड़की मन मा उन ला सम देवव प्यार।। घर मा मिलके सब साथ रहे नइ होवय गा तब तो तकरार। जब मातु पिता लइका मन हा रहिथे खुश ओ असली परिवार।। (3) बिटिया मन मान बढ़ावत हें कुल के करहू झन गा अपमान। अब नीक भविष्य बने बिटिया मनके सब देवत राहव ध्यान।। दव छूट बनावय ओमन भी जग मा बढ़िया निज के पहिचान। जब नाम कमा डरथें बिटिया मन ता करथे परिवार गुमान।। (4) सत के अचरा धरके चलबे नइ खावस जीवन मा तँय मात। अब हे चलना सत के पथ मा तँय येकर जी करदे शुरुवात।। कहिथे सत ओ पहली सहिथे बड़ गा तकलीफ भले दिन-रात। जब आवत बेर सही तब होवत सुग्घर हे सुख के बरसात।। (5) मिलके रइहू सब साथ सदा अब आपस मा करहू झन जंग। मिलके सब पर्व मनावव जी सब छोट बड़े मनखे मन संग।। जग के सिधवा मनखे मन ला अब गा चिटको करहू झन तंग। रखहू जग के परिवेश