महाभुजंग प्रयात सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

 महाभुजंग प्रयात सवैया

(1)
चलो बाग़ ला फेर संगी सजाबो बने पेड़ पौधा उहाँ गा लगाबो।
खिले फूल रंगीन जेमा बने लाल पीला गुलाबी सबो ला दिखाबो।।
रही छाँव जेमा मिले शुद्ध हावा सबो लोग ला गा निरोगी बनाबो।
हरा पेड़ पौधा रहे ले बने लागथे ये धरा गा सबो ला बताबो।।
(2)
घरे आंगना देहरी मा मया आस विश्वास के नीक दीया जलाहू।
जला ज्ञान के दीप संसार ले खीक अग्यान के गा अँधेरा मिटाहू।।
रहौ साथ मा पर्व संदेश देथे भुला दुश्मनी एकता गा दिखाहू।
कहूँ भी रहू फेर हाँसी खुशी ले महापर्व दीपावली ला मनाहू।।
(3)
बने ढ़ंग ले पर्व दीपावली ला मनाना हवै सबो ठान लौ जी।
महापर्व येला कथे हिंद मा जी हरे देश के गर्व ये मान लौ जी।।
सदा सत्य के जीत होथे सिखाथे सबो ला इहाँ पर्व ये जान लौ जी।
बड़े शान ले गा निभाना हवै ये प्रथा ला मुँहू मा खुशी लान लौ जी।।
(4)
बड़े सोच राखौ बने काज होथे तभे नीक संसार मा नाम होथे।
सदा धैर्य ले काम लेहू इहाँ गा तभे शत्रु के चाल नाकाम होथे।।
बिना स्वार्थ बूता करे ले सुनौ गा बने देखहूँ आप अंजाम होथे।
करौ गा भला काखरो जान जावौ इही हा सबो ले बड़े काम होथे।।
(5)
बचाना हवै पेड़ पौधा सबो ला तभे बाँच पाही धरा ये सुनो जी।
रथे बात विज्ञान के लाभकारी लगा के बने ध्यान सीखो गुनो जी।।
बहे शुद्ध हावा मिले शुद्ध पानी सदा आप ओ नीक रद्दा चुनो जी।
दिखे स्वच्छता गाँव कस्बा सबो मा बने ख्वाब आँखी म संगी बुनो जी।।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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