Posts

Showing posts from October, 2019

छप्पय छंद - श्लेष चन्द्राकर

🌺  छप्पय छंद 🌺 रुप चौदस का पर्व, मनाएंगे सब घर-घर। पितरों को जलदान, करेंगे लोग नमन कर।। नरकासुर का अंत, कृष्ण ने आज किया था। खुशियों का उपहार, सभी को आज दिया था।। छोटी दीवाली मने, सबके घर में शान से। जग में सबका हो भला, विनती है भगवान से।। 🌺 श्लेष चन्द्राकर 🌺 ★ छप्पय छंद ★ देता स्वच्छ प्रकाश, दीप तम को हरता है। जलकर सबके हेतु, काज अनुपम करता है।। अनुष्ठान या जाप, दीप के बिना अधूरा। करते पूजा पाठ, जलाकर इसको पूरा।। मानव जीवन के लिए, दीप बहुत ही खास है। अंधकार को दूर कर, लाता यहाँ उजास है। श्लेष चन्द्राकर, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी आल्हा छंद

विषय - वीर नारायण सिंह रिहिन वीर नारायण सच्चा, भारत माता के जी लाल। करे रिहिन सन संतावन मा, अँगरेजन के बाराहाल।। जन के हक मारय अँगरेजन, अपन भरयँ जी उँन गोदाम। काम करावयँ घात रात दिन, अउ देवयँ गा कमती दाम। दिन-दिन जब अँगरेजन के, बढ़त रिहिस हे अत्याचार। तब विरोध मा आघू आइस, नारायण हा धर तलवार।। कभू गुलामी के जिनगी हा, उन ला गा नइ आइस रास। सबो आदिवासी ल सकेलिन, अपन बनाइस सेना खास।। नारायण हुंकार भरिस हे, सबो उठाइस तब हथियार। लड़िस हवयँ गोरा मन सन जी, ओमन माँगे बर अधिकार।। रिहिस हवय नारायण सिंह हा, ऊँचा-पूरा धाकड़ वीर। उठा-उठा के ठाड पटकतिस, बैरी मन ला देवय चीर।। जब दहाड़ बघवा कस मारय, बने-बने के जी थर्राय। प्रान बचाये बर बैरी मन, रुखराई के बीच लुकाय।। खच खच खच तलवार चलावय, मारय सर सर गा ओ तीर। अँगरेजन के सैनिक मन हा, उनकर आघू माँगय नीर।। महावीर नारायण सिंह ला, रिहिस देश ले अब्बड़ प्यार। लडिस लड़ाई आजादी के, आँखी मा भरके अंगार।। जुलुम देख के मनखे ऊपर, अब्बड़ खउलय सिंह के खून। देख वीर ला गोरा मन के, गिल्ला हो जावयँ पतलून।। विषय - चन्द्रशेखर आजाद वीर पूत भारत माता के, रिहिस चन

दोहा मुक्तक - श्लेष चन्द्राकर

(1) पता नही क्या चाहते, देना वो सौगात | रोज-रोज बदले नियम, ठीक नही ये बात | निर्णय लेते सोच कर, मिलता सबका साथ, तो इतने बिगड़े नही, होते फिर हालात | (2) कर देंगे इस देश का, नेता सत्यानाश। करना हर षड़यंत्र का, अब तो पर्दाफ़ाश। चुन कर हमको भेजना, संसद अच्छे लोग- पहुँचेगा फिर देखना, हर घर स्वच्छ प्रकाश। (3) ठीक रहेगा भूलना, बीती गुजरी बात। नए साल में कीजिए, एक नई शुरुआत। आशावादी सोच ही, रखना अपने पास, नए साल में चाहते, मिले नई सौगात।। (4) खान-पान पर रोक से, रहते सदा उदास | घर में टी.वी. देख कर, करते टाइम पास | मिलने आ जाते कभी, भूले-भटके लोग- वृद्ध जनों को ज़िन्दगी, लगती है वनवास | (5) दीवाली के दिन रहे, मावस में उजियार। आया खुशियाँ बाँटने, दीपों का त्यौहार। उजला-उजला हो सके, चहूँओर परिवेश- दीप जलाएँ हम सभी, हरने को अँधियार। (6) दीप जलाएँ नेह का, पाँच दिनों तक खास। प्रातः होने तक सखे, कायम रहे उजास। दीपोत्सव का पर्व है, सच में बहुत पुनीत- तम पर पा सकते विजय, भरता यह विश्वास। (7) घर-घर में दीपक जले, बनकर पहरेदार। उसके धवल प्रकाश से, जगमग हो संसार। मिलकर बात

छत्तीसगढ़ी हरिगीतिका छंद

(1) लेवत हवयँ रिश्वत अबड़, कतको अधर्मी मन कका। घूमत हवयँ खुल्ला इहाँ, कतको कुकर्मी मन कका।। एकोकनिक डर नइ हवय, ये लागथे कानून के। सस्ता रखें हे मोल उँन, का आदमी के खून के।। (2) लूटत गरीबन ला अबड़, हे आज रिश्वतखोर मन। ये नीच बूता देखके, जाथे बइठ जी मोर मन।। रिश्वत बिना होवय नहीं, कोनो बखत मा काम जी। बड़ तंग करना दीन ला, होगे इहाँ अब आम जी।। (3) (मात्रा बाँट- 2212 2122 2, 212 2 212) नाली बनाबो हर गली मा, गोठ सब ये मान लौ। मलमूत ला ओमा बहाबो, आपमन सब ठान लौ।। सुग्घर हमर तब गाँव बनही, दूर जाही रोग मन। हाँसी-खुशी जिनगी बिताही, स्वस्थ रइही लोग मन।। (4) जम्मो शहर अउ गाँव बर, नाली जिनिस बड़ काम के। मल ला बहाके लेगथे, समझौ नही बस नाम के।। नाली बिना बरसात मा, पानी गली मा रुक जही। बड़ही जिकर ले गंदगी, अउ रोग कतको फैलही।। (5) तन मन लगाके काम कर, तँय बेच झन ईमान ला। मिहनत करे ले फर सदा, मिलथे बने इंसान ला।। जे याद कर भगवान ला, करथे अपन सब काम गा। सम्मान पाथे ओ जगत मा, होथे उँखर बड़ नाम गा।। (6) शास्त्री बने नेता रिहिस, जे सत्य के बाना धरिस। जे देश के परधान बन, सब काम ला सुग्घर