दोहा मुक्तक - श्लेष चन्द्राकर

(1)
पता नही क्या चाहते, देना वो सौगात |
रोज-रोज बदले नियम, ठीक नही ये बात |
निर्णय लेते सोच कर, मिलता सबका साथ,
तो इतने बिगड़े नही, होते फिर हालात |
(2)
कर देंगे इस देश का, नेता सत्यानाश।
करना हर षड़यंत्र का, अब तो पर्दाफ़ाश।
चुन कर हमको भेजना, संसद अच्छे लोग-
पहुँचेगा फिर देखना, हर घर स्वच्छ प्रकाश।
(3)
ठीक रहेगा भूलना, बीती गुजरी बात।
नए साल में कीजिए, एक नई शुरुआत।
आशावादी सोच ही, रखना अपने पास,
नए साल में चाहते, मिले नई सौगात।।
(4)
खान-पान पर रोक से, रहते सदा उदास |
घर में टी.वी. देख कर, करते टाइम पास |
मिलने आ जाते कभी, भूले-भटके लोग-
वृद्ध जनों को ज़िन्दगी, लगती है वनवास |
(5)
दीवाली के दिन रहे, मावस में उजियार।
आया खुशियाँ बाँटने, दीपों का त्यौहार।
उजला-उजला हो सके, चहूँओर परिवेश-
दीप जलाएँ हम सभी, हरने को अँधियार।
(6)
दीप जलाएँ नेह का, पाँच दिनों तक खास।
प्रातः होने तक सखे, कायम रहे उजास।
दीपोत्सव का पर्व है, सच में बहुत पुनीत-
तम पर पा सकते विजय, भरता यह विश्वास।
(7)
घर-घर में दीपक जले, बनकर पहरेदार।
उसके धवल प्रकाश से, जगमग हो संसार।
मिलकर बाती तेल सँग, तम का करके नाश-
पावन मिट्टी का दिया, फैलाये उजियार।
(8)
न्यूज चैनलों पर चले, दिनभर नित बकवास।
नाटक वादविवाद का, तनिक न आये रास।
बटोरना टीआरपी, इनका रहता ध्येय-
अच्छी खबर परोसने, करते नहीं प्रयास।
(9)
चन्द्रयान दो से हुआ, गर्व हिन्द को आज।
देश करेगा आज से, अंतरिक्ष पर राज।
भेजेंगे अब देखना, मंगल पर भी यान-
इसरो के अभियान पर, क्यों न करे हम नाज।
(10)
दिल तो टूटा है सखे, फिर भी खुश हैं आज।
कोशिश इसरो ने किया, इसपर करते नाज।
लैंडर विक्रम से भले, टूट गया संपर्क-
खोलेगा अब आर्बिटर, चंद्र क्षेत्र का राज।
(11)
भाषाओं में खास है, हिन्दी भाषा मीत।
लिखी हुई इसमें लगे, सरस ग़ज़ल अरु गीत।
काम-काज की देश में, हो बस भाषा एक-
हिन्दी को आगे बढ़ा, करिए काज पुनीत।
(12)
आगे बढ़ने का रखें, बच्चे भी अधिकार।
अवसर उनको दीजिए, प्रतिभा के अनुसार।
सबको करना चाहिए, हर संभव सहयोग-
जिससे बच्चे कर सके, सपनों को साकार।
(13) 25/07/2017
धोखा देना लूटना, उनके यही उसूल।
नेताओं पर कर यकीं, करती जनता भूल।
बिना स्वार्थ करते नहीं, नेतागण कुछ काज-
खर्चा करें चुनाव में, लेते उसे वसूल।
(14) 14/09/2016
चाचा नेहरु को अधिक, बच्चों से था प्यार।
मिल जाते बच्चे अगर, करते खूब दुलार।
बाल दिवस है कीजिए, नेहरु जी को याद,
क्योंकि बच्चों में बसा, था उनका संसार।
(15) 29/09/2016
महँगाई की मार से, हरदम आहत होय।
पीड़ा मध्यम वर्ग की, सुने नही अब कोय।
दो कमरे में ज़िन्दगी, गुजरे जिसकी मीत,
किस्मत पर अपनी सदा, वो बेचारा रोय।
(16) 25/09/2016
मिल जाते अपने अगर, मन में उठे हिलोर।
करके उनसे बात हम, होते भाव विभोर।
जुडा रहे रिश्ता सदा, रखना इतना ध्यान,
नाजुक होती है बड़ी, रिश्तों की यह डोर।
(17)
रिश्ते-नाते भूल कर, करते हो व्यापार।
लालच ने अंधा किया, बदल गया व्यवहार।
आदत में शामिल हुआ, धोखा और फरेब,
टाँग दिया ईमान को, क्यों खूँटी पर यार।
(18) 10/03/2016
करते हैं हम आजकल, परंपरा निर्वाह।
पर्व मनाने की नही, मन में कोई चाह।
महँगाई की मार से, आहत हैं हम लोग-
गौरतलब यह बात है, मिलती कम तनख्वाह।
(19) 21/07/2016
हासिये पर रखे गये, यहाँ कई किरदार।
वे भी तो समरूपता, का रखते अधिकार।
फिर क्यों उनको आजतक, मिला नही है न्याय,
अपमानित होकर यहाँ, जीवन रहे गुजार।
(20) 12/10/2016
क्यों अच्छे माहौल को, करते आप खराब।
राजनीति से धर्म को, रखिए दूर जनाब।
बंद कीजिए माँगना, जात पात पर वोट,
पूरा अब होगा नही, देख रहे जो ख्वाब।
(21) 02/10/2016
हर आतंकी कैंप को, करना है अब ध्वस्त।
होगा पाकिस्तान का, तभी हौसला पस्त।
भाड़े के टट्टू लिए, हमें दिखाता आँख,
घटिया हरकत छोड़ दे, रहना है गर मस्त
(22) 07/12/2016
नेतागण किस बात का, लेते हैं प्रतिशोध।
पैदा करते है सदा, संसद में गतिरोध।
बीच बहस से भागते, करते संसद ठप्प,
इससे क्या नुकसान है, नहीं इन्हें क्या बोध।
(23)
बेमतलब की बात पर, लड़ते हो अविराम।
ड्रामेबाजी छोड़ कर, कर लेते कुछ काम।
असली मुद्दों पर अगर, देते थोड़ा ध्यान,
नेताजी फिर आपको, करते लोग सलाम।
🌷 श्लेष चन्द्राकर 🌷

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