छत्तीसगढ़ी दोहे - श्लेष चन्द्राकर

छत्तीसगढ़ी दोहे...
(1)
करथे काम मशीन सब, जुच्छा हे बनिहार।
पोसत हे बपरा अपन, मुसकुल मा परिवार।।
(2)
बुता काम अब नइ मिलय, ओला बारहमास।
ये सेती बनिहार अब, रहिथे अबड़ उदास।।
(3)
बनी करत रहिजात हे, जिनगी भर बनिहार।
ओकर हालत मा कहाँ, होथे फेर सुधार।।
(4)
बनी करइयाँ मन इहाँ, अबड़ करत हे काम।
उनकर काम हिसाब ले, कहाँ मिलत हे दाम।।
(5)
लाने बर बनिहार मन, जग मा नवाँ बिहान।
बुता करत हें रात-दिन, बने लगाके ध्यान।।
(6)
डहर-डहर मा मिल जथे, बर-पीपर के छाँव।
हरियाली चारों मुड़ा, होथे सुग्घर गाँव।।
(7)
लोगबाग मन गाँव के, सीधा रहिथे मीत।
देथें सब झिन ला अबड़, येमन मया पिरीत।
(8)
जुरमिल रहिथें गाँव मा, जम्मो मनखे मीत।
येमन सब सुनता बँधा, गाथें श्रम के गीत।।
(9)
परंपरा ला गाँव के, भुला सकत हे कोन।
असली मजा तिहार के, इँहा हवय सिरतोन।।
(10)
भारत बसथे गाँव मा, सब जानत हें बात।
इही देश मा होय हे, संस्कृति के शुरुआत।।
(11)
हमर देश के एकता, तोड़ सकत हे कोन।
जुरमिल के रइथे इँहा, सब मनखे सिरतोन।।
(12)
तोड़े बर कुछ देश मन, चाल चलत हे आज।
महतारी कस देश हे, रखहूँ एकर लाज।।
(13)
संगी बर संगी हरन, अउ बैरी बर काल।
सत के रद्दा मा चलन, हम भारत के लाल।।
(14)
तपोभूमि ये देश के, सुग्घर हे परिवेश।
नइ हे ये संसार मा, हिंद बरोबर देश।।
(15)
अलग-अलग भाखा हमर, अउ हे धर्म अनेक।
फेर देश बर हे मया, सब मनखे मा एक।।
(16)
नइ फैलय गा गंदगी, स्वच्छ रही घर-द्वार।
घर पाछू घुरुवा बना, गोबर कचरा डार।।
(17)
घुरुवा हे बड़ काम के, समझव झन बेकार।
एखर खातू ले बने, रहिथे खेती-खार।।
(18)
गोबर गरुवा गाय के, सड़ के बनथे खाद।
घुरुवा मा ही फेंक हू, रखहूँ अतका याद।।
(19)
संगी गोबर खाद के, घुरुवा हे भंडार।
एखर ते उपयोग कर, होथे फसल अपार।।
(20)
घुरवा मा झन डारहूँ, प्लास्टिक के सामान।
सड़य नही ये हा कभू, करथे अउ नुकसान।।
(21)
ऐहा हमर किसान बर, होथे गा बहुमूल।
घुरवा ला जे पाटथे, करथे अब्बड भूल।।
(22)
देखव आज कतेक गा, गिर गे हे इंसान।
हक ला मार गरीब के, बनत हवय धनवान।।
(23)
भ्रष्टाचारी मन इँहा, अपन भरत हे जेब।
लाँघन मरत गरीब हे, ओमन खाथे सेब।।
(24)
अन्न उगाके देश ला, करथे मालामाल।
हाबे उही किसान मन, इँहा आज बदहाल।।
(25)
मिहनत अउ लागत लगा, बोथे खेत म धान।
उचित दाम जब नइ मिलय, होथे दुखी किसान।।
(26)
दिन भर कनिहा तोड़ जब, करथे काम गरीब।
तब ओकर परिवार ला, होथे अन्न नसीब।।
(27)
सोचय नहीं गरीब बर, काबर गा इंसान।
अपन भलाई देखथे, कर उनकर हिनमान।।
(28)
आगे हमर समाज मा, अबड़ आज बदलाव।
आज बफे पार्टी बिना, होथे कहाँ बिहाव।।
(29)
पहिली गा दू-तीन दिन, चलय मांगलिक काज।
बर बिहाव हो जात हे, एक्के दिन मा आज।।
(30)
पहिली सब परिवार हा, शादी मा सकलायँ।
खाना अउ रोटीपिठा, मिलके सबो बनायँ।।
(31)
मँय चाहत हौं आपमन, चुनव बने सरकार।
करय दूर जे देश मा, शोषण भ्रष्टाचार।।
(32)
पइसा उनकर तीर हो, जेमन हे कंगाल।
मँय चाहत हौं देश मा, रहय सबो खुशहाल।।
(33)
मँय चाहत हौं देश के, होवय बने विकास।
रोटी कपड़ा घर रहय, सब मनखे के पास।।
(34)
छुआ मनइयां मन इहाँ, बदले सोच बिचार।
सब मनखे के साथ मा, करय एक ब्यवहार।।
(35)
संगी मुसकुल दौर मा, झन होबे हलकान।
मन मा ते बिस्वास रख, आही नवां बिहान।।
(36)
तुतरू आम चुनाव के, जब-जब बाजे मीत।
तब-तब होवत आत हे, लोकतंत्र के जीत।।
(37)
लोकतंत्र के हे परब, जानव आम चुनाव।
जावव देबर वोट अउ, येला बने मनाव।।
(38)
संविधान हा दे हवय, मत दे के अधिकार।
करव इँखर उपयोग सब, करके सोच-बिचार।।
(39)
दिन होथे मतदान के, लोकतंत्र बर खास।
चुनव बने सरकार तब, करही देश विकास।।
(40)
देहू ओला मान गा, करहू झन अपमान।
धरती मा देवी असन, महतारी ला जान।।
(41)
जे लइका हा मानथे, महतारी के बात।
जीवन के संग्राम मा, नइ खावय वो मात।।
(42)
गुरु ले पहिली जान लौ, दाई देथे ज्ञान।
सबले ऊपर हे इहाँ, ओकर गा स्थान।।
(43)
आवन दौ संसार मा, नोनी भ्रुण झन मार।
करही बेटी बाढ़ के, सपना तोर सकार।।
(44)
घर मा नारी रूप मा, देवी करय निवास।
खुश रखहूँ ओला सदा, हो झन कभू उदास।।
(45)
दाई बेटी अउ बहिन, नारी के सब रूप।
होथे इनकर साथ ले, जिनगी हमर अनूप।।
(46)
घर बाहिर दूनो जगा, मिले बने सम्मान।
माईलोगन मन घला, होथे गा इंसान।।
(47)
होथे मुसकुल बेर मा, संगी के पहिचान।
मुसकुल मा जे साथ दे, बने उही ला मान।।
(48)
छत्तीसगढ़ी के असन, भाखा नइ हे श्लेष।
महतारी भाखा हरय, करथन प्रेम विशेष।।
(49)
छत्तीसगढ़ी के सबद, हावय सबो विशेष।
अंतस मा जाथे उतर, गोठ-बात मा श्लेष।।
(50)
सब पसंद करथें अबड़, छत्तीसगढ़ी गोठ।
महतारी भाखा हमर, अब होवत हे पोठ।।
(51)
हावय पंथी नाच के, अलग इँहा पहिचान।
बाबा घासीदास के, येमा रहिथे गान।।
(52)
राउत मन बर खास हे, देवारी त्यौहार।
डंडा के करतब दिखा, नाचय दोहा पार।।
(53)
सुवा गीत के हे प्रथा, गाँव-गाँव मा मीत।
गाथे कातिक मास मा, महिला मन ये गीत।।
(54)
लोरिक चंदेनी हरय, लोककथा के गीत।
हावय येला गाय के, अबड़ पुराना रीत।।
(55)
गीत पंडवानी इँहा, तीजन गाथे नीक।
हरय महाभारत कथा, सुनके समझव ठीक।।
(56)
लोरिक चंदेनी हरय, लोककथा के गीत।
गाये के ये गीत ला, अबड़ पुराना रीत।।
(57)
डमरू डफली मोहरी, तासक तबला ढोल।
येमन झन जाये नँदा, बाजा हरय अमोल।।
(58)
दफड़ा तम्बूरा दमउ, सिंग चिकारा नाल।
बाजा मन के नइ मिलय, आज सुने बर ताल।।
(59)
गुदुम मोहरी नाल के, अलग रिहिस गा बात।
कहाँ निकलथे आजकल, डीजे बिना बरात।।
(60)
महानदी मा मिल जथे, पैरी अउ सोंढूर।
इनकर संगम ले अबड़, राजिम हे मशहूर।।
(61)
राजिम मा आके सबो, हो जाथे खुशहाल।
माघी पुन्नी ले लगे, मेला देख विसाल।।
(62)
खेती-बाड़ी मा हमर, देथे अब्बड़ साथ।
पालत-पोसत आत हे, महानदी शिवनाथ।।
(63)
बस्तर के इंद्रावती, नँदिया हरय महान।
चित्रकूट झरना हरय, ऐकर गा पहिचान।।
(64)
देवालय हावय अबड़, महानदी के तीर।
किंजर-किंजर के देख लौ, थकथे कहाँ सरीर।।
(65)
अरपा अउ पैरी नँदी, बहिथे मार हिलोर।
बइठहु बखत निकालके, संगी इनकर कोर।।
(66)
बासी हमर प्रदेश के, भोजन हरे विशेष।
मनखे मन बड़ चाव से, खाते ऐला श्लेष।।
(67)
अरसा खुरमी ठेठरी, ब्यंजन इँहा कतेक।
इँहा बनाथे ओतके, होथे परब जतेक।।
(68)
इहाँ नवाखाई परब, गजब मनाथे श्लेष।
रोटी-पीठा अन्न के, बनथे इहाँ विशेष।।
(69)
अन्नकूट के जब परब, इहाँ मनाथें लोग।
खिचड़ी गरुवा-गाय ला, पहिली देथे भोग।।
(70)
बुद्धि ज्ञान के दायिनी, तोला करवँ प्रणाम।
माँ मोला वरदान दे, बने करवँ मे काम।।
(71)
होली सत के जीत के, पावन हरय तिहार।
करथे अंतस मा हमर, सुख के ये संचार।।
(72)
होली के सब रंग हा, सुख के हरय प्रतीक।
जुरमिल सबके साथ मा, परब मनाना ठीक।।
(73)
नंगाड़ा धुन मा बिधुन, गाथन फागुन गीत।
सबला रंग लगाय के, होली मा हे रीत।।
(74)
ऊँच-नीच अउ धर्म के, भेद करव झन आज।
होली परब मनाव गा, जुरमिल सबो समाज।।
(75)
होली मा सुरता करव, लइकापन के बात।
रंग निकालन फूल के, पानी करके तात।।
(76)
बचपन के होली परब, मन मा भरय उमंग।
एक जुअर के होत ले, खेलन अब्बड रंग।।
(77)
मया-प्रीत से गाँव मा, खेलन रंग गुलाल।
बचपन के होली हमर, संगी रहिस कमाल।।
(78)
रंग केमिकल के बने, लाथे खजरी रोग।
करहू हर्बल रंग के, होली मा उपयोग।।
(79)
पानी अड़बड़ लागथे, रंग धोय बर मीत।
तिलक लगा के खेलहू, होली परब पुनीत।।
(80)
अलकरहा होली परब, आज मनाथें लोग।
चिखला वार्निश पेंट के, करत हवय उपयोग।।
(81)
देखव मनखे ला अपन, बेच डरे हे लाज।
होली कहिके चीरथे, कपड़ा लत्ता आज।।
(82)
आनी-बानी कर नशा, करथें जे अतलंग।
होली मया तिहार ला, करथें वो बदरंग।।
(83)
आज महाशिवरात्रि हे, भक्ति भाव के रात।
शिव ला पानी ले नहा, चढ़ा बेल के पात।।
(84)
परब महाशिवरात्रि के, मनखे बर हे खास।
कैलाशी शंकर बबा, करथे मन मा वास।।
(85)
नंदी बइला मा चघे, शिव घूमें संसार।
मृत्युंजय भगवान के, महिमा हवय अपार।।
(86)
धरती मा जब बड़ जथे, पापी मनके पाप।
तीसर आँखी खोलके, भोले देथे श्राप।।
(87)
बाबा तांडव नाच के, गुस्सा करथे शांत।
होथे ओकर रूप ले, राक्षस मन भयक्रांत।।
(88)
डम डम डम डमरू बजा, करथे सुग्घर नाच।
भोले बाबा साथ मा, रहिथे भूत-पिशाच।६।
(89)
मारिस शुम्भ निशुम्भ ला, तोड़िस हे अभिमान।
अहम भाव ला छोड़ के, दुर्गा के कर ध्यान।।
(90)
दुर्गा दाई के हवय, महिमा अबड़ अनन्त।
काली माता बन करिस, रक्त बीज के अन्त।।
(91)
महिषासुर के जब अबड़, बाढ़िस अत्याचार।
तब माता कात्यायनी, करिस उँखर संहार।।
(92)
काली माता जब करिस, चण्ड-मुण्ड संहार।
चामुंडा के नाम ले, जानिस ये संसार।।
(93)
माँ के दुर्गा नाम के, एक कथा हे आम।
मारिस दुर्गम दैत्य ला, पड़िस तहाँ ये नाम।।
(94)
बढ़त रिहिस भू-लोक मा, जब अधर्म के राज।
तभे राम अवतार लिस, लानिस इहाँ सुराज।।
(95)
मान ददा के बात ला, प्रभुवर गिस वनवास।
हावय इहीँ प्रसंग हा, राम कथा मा खास।।
(96)
सदा करिस प्रभु राम हा, मर्यादित ब्यवहार।
पुरुषों मा उत्तम तभे, कहिथे ये संसार।।
(97)
अंबेडकर कुरीत के, खुलके करिस विरोध।
संविधान निर्माण बर, करिस जगत मा शोध।।
(98)
छुआछूत के रोग ला, कर समाज ले दूर।
होगिस भारत देश मा, भीमराव मशहूर।।
(99)
भीमराव पहली अबड़, इहाँ सहिस अपमान।
संविधान निर्माण ले, बनिस फेर पहिचान।।
(100)
भीमराव अंबेडकर, रिहिस ज्ञान के खान।
ये जग के ओला रिहिस, नौ भाखा के ज्ञान।।
(101)
पढ़के अइस बिदेस ले, बाँटिस सबला ज्ञान।
भीमराव अंबेडकर, नेता बनिस महान।।

दोहाकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुडरु पारा,
मुकाम व पोस्ट - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
पिन - 493445
मो.नं. 9926744445, 9303877007
जी-मेल - shleshshlesh@gmail.com

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

दोहे श्लेष के...

मुक्ताहरा सवैया (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर