Posts

Showing posts from November, 2020

बागीस्वरी सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

 बागीस्वरी सवैया (1) नहीं काटहू फालतू गा बने पेड़-पौधा रहे ले सुहाथे धरा। बने पेड़-पौधा लगाके रखौ गा धरा के सबो कोत ला जी हरा। इही पेड़-पौधा इहाँ शुद्ध हावा सदा भेजथे आदमी के करा। करौ यत्न ओ जी लगाके रहे गा धरा ये हमेशा हरा औ भरा। (2) रहौ नेक इंसान जैसे इहाँ कर्म संसार मा रोज अच्छा करौ। सजा पाप के झेलहू खीक बूता करे पूर्व गा देवता ले डरौ। जलाना हवै ज्ञान के दीप ला तेल डारो बने और बाती बरौ। लुटाओ खुशी गा लुटाऔ मया जी रिता दीन के आप झोला भरौ। (3) मया प्रेम सेती कभू गाँव के जी सही बात माहौल अच्छा रहे। उहाँ प्यार ले गा कका और काकी बबा और दाई मया मा कहे। सबो लोग चंगा रहे गाँव के जी उहाँ दूध के रोज गंगा बहे। बनाये रहे देह ला लोग ऐसे बने ढंग ले घाम जाड़ा सहे। (4) रहे घास के खूब मैदान आघू सबो गाँव मा गा मवेशी चरे घास जी। रहे गाय-बैला रहे भैंस-भैंसी बने गा सबो लोग के पास जी। मजा मा रहे लोग ऊहाँ सबो के इहाँ दूध घी होय गा खास जी।। रहे गा सबो के इहाँ खाद देशी बने धान होही रहे आस जी। (5) इहाँ एक सप्ताह चारों मुड़ा गा रथे घात आनंद उल्लास हे। इहाँ दीप त्यौहार ले गा सबो आदमी के

किरीट सवैया छत्तीसगढ़ी- श्लेष चन्द्राकर

 किरीट सवैया - श्लेष चन्द्राकर (1) भाव बने मन मा रख के मिल के सब ले हर पर्व मनाथन। भेद कभू नइ राखन गा मन मा जन मा बस प्रेम लुटाथन।। जीवित हावय मानवता सब ला बड़ सुग्घर बात बताथन। अंतस ले सब भारत के जुनना हर रीति रिवाज निभाथन।। (2) रात बिकाल घुमे बर छोड़व ठंड शुरू अब होवत हावय। ओढ़व कंबल शाल बने दिन-रात तहाँ नइ जाड़ सतावय।। खेलव कूदव योग करौ तन ला सब ये दमदार बनावय। खावव पीयव चीज बने तन के जउनेहर जाड़ मिटावय।। (3) दूसर ले छल जे करथे उन चैन कभू जग मा नइ पावत। पाप इहाँ करथे उन राखव गा सुरता बड़ हे पछतावत।। छोड़व खीक बुता करना सब जानव कर्म बने ममहावत। जे मनखे बर काम बने करथे जग मा उन नाम कमावत।। (4) दीन दुखी मनखे मन जानव काबर हावय गा बड़ रोवत। का दुख जीवन मा उन झेलत काबर हावय नैन भिगोवत।। का उन के तकलीफन के जग मा कुछु आज निवारण होवत। साहत हे रहिथे तकलीफ इहाँ उन रात बने कब सोवत। (5) रिश्वतखोर इहाँ मनखे मन हा जनमानस के हक मारत। नानुक काम करे बर देखव गा पइसा बड़ झोंक डकारत।। काम नहीं कर पावत सुग्घर गा अउ देखव ज्ञान बघारत। सोचव गा अइसे चलही तब उन्नति का करही अब भारत।।