किरीट सवैया छत्तीसगढ़ी- श्लेष चन्द्राकर

 किरीट सवैया - श्लेष चन्द्राकर

(1)
भाव बने मन मा रख के मिल के सब ले हर पर्व मनाथन।
भेद कभू नइ राखन गा मन मा जन मा बस प्रेम लुटाथन।।
जीवित हावय मानवता सब ला बड़ सुग्घर बात बताथन।
अंतस ले सब भारत के जुनना हर रीति रिवाज निभाथन।।
(2)
रात बिकाल घुमे बर छोड़व ठंड शुरू अब होवत हावय।
ओढ़व कंबल शाल बने दिन-रात तहाँ नइ जाड़ सतावय।।
खेलव कूदव योग करौ तन ला सब ये दमदार बनावय।
खावव पीयव चीज बने तन के जउनेहर जाड़ मिटावय।।
(3)
दूसर ले छल जे करथे उन चैन कभू जग मा नइ पावत।
पाप इहाँ करथे उन राखव गा सुरता बड़ हे पछतावत।।
छोड़व खीक बुता करना सब जानव कर्म बने ममहावत।
जे मनखे बर काम बने करथे जग मा उन नाम कमावत।।
(4)
दीन दुखी मनखे मन जानव काबर हावय गा बड़ रोवत।
का दुख जीवन मा उन झेलत काबर हावय नैन भिगोवत।।
का उन के तकलीफन के जग मा कुछु आज निवारण होवत।
साहत हे रहिथे तकलीफ इहाँ उन रात बने कब सोवत।
(5)
रिश्वतखोर इहाँ मनखे मन हा जनमानस के हक मारत।
नानुक काम करे बर देखव गा पइसा बड़ झोंक डकारत।।
काम नहीं कर पावत सुग्घर गा अउ देखव ज्ञान बघारत।
सोचव गा अइसे चलही तब उन्नति का करही अब भारत।।
(6)
लोभ सुवारथ मा पड़के सुन लौ खुद इज्जत ला झन खोवव।
दू दिन साथ निभावत हे पइसा झन गा पइसा बर रोवव।।
नेक बने बर अंतस मा जमके बइठे मइलापन धोवव।
जे फर देवय जी कल सुग्घर बीज बने अइसे अब बोवव।।
(7)
जे मन भीतर रावण हावय पाप उही भइया करवावत।
ओ मनखे मन ला सत के पथ ले नित हावय गा भटकावत।।
जेन बने रहिथे मनखे उन ला उन खीक इहाँ बनवावत।
अंतस हावय जेन बुहारत नेक उही जग मा कहलावत।।
(8)
आलस ला तज देवव काम बने जग मा कर के दिखलावव।
मीठ रथे श्रम के फर हा श्रमवीर बनो बढ़िया फर पावव।।
दौड़त तेज समे सँग हे चलना अब तत्परता अपनावव।
आज इहाँ अगुवा बनके जग मा बड़ सुग्घर नाम कमावव।
(9)
जागत राहव सोवव गा झन सोवइया मन हा पछतावत।
नाम इहाँ बड़ होवत ओकर जे मउका पहिचान भुनावत।।
याद रखे दुनिया अइसे करके बड़ सुग्घर काम दिखावत।
एक इहाँ श्रम साधक ओ बनके जग मा बड़ नाम कमावत।।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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