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छप्पय छंद - श्लेष चन्द्राकर

🌺  छप्पय छंद 🌺 रुप चौदस का पर्व, मनाएंगे सब घर-घर। पितरों को जलदान, करेंगे लोग नमन कर।। नरकासुर का अंत, कृष्ण ने आज किया था। खुशियों का उपहार, सभी को आज दिया था।। छोटी दीवाली मने, सबके घर में शान से। जग में सबका हो भला, विनती है भगवान से।। 🌺 श्लेष चन्द्राकर 🌺 ★ छप्पय छंद ★ देता स्वच्छ प्रकाश, दीप तम को हरता है। जलकर सबके हेतु, काज अनुपम करता है।। अनुष्ठान या जाप, दीप के बिना अधूरा। करते पूजा पाठ, जलाकर इसको पूरा।। मानव जीवन के लिए, दीप बहुत ही खास है। अंधकार को दूर कर, लाता यहाँ उजास है। श्लेष चन्द्राकर, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी छप्पय छंद

(1) लोकगीत के हाल, बुरा हे अब्बड़ संगी। इखँर गवैया आज, सहत हें धन के तंगी।। बाँस गीत के मीत, घटत हे आज गवैया। पँडवानी के राज, कोन हे फेर लनैया।। कलाकार मन राज के, खोजत हाबयँ काम जी। नाम भले मिल जात हे, मिलत कहाँ हे दाम जी।। (2) तासक दफडा नाल, दमउ खन्जेरी डफली। हमर राज के शान, रहिस सब बाजा पहली।। माँदर झांझ मृदंग, मोहरी रूंझु चिकारा। दिखथे कमती आज, नँगाड़ा अउ इकतारा।। करें गरब छत्तीसगढ़, वो सब आज नँदात हे। तम्बूरा ताशा असन, बाजा कोन बजात हे।। (3) योगासन ले देह, बने रहिथे गा जानव। रोज बिहनिया योग, करे बर सबझन ठानव।। योग करे ले रोज, धरे सब रोग मिटाही। येला लाँघन पेट, बिहनिया करना चाही।। उमर बाढ़थे योग ले, करव लगाके ध्यान जी। रहिथे बने दिमाग हा, स्वस्थ रथे इंसान जी।। (4) हमर देश के योग, खोज हे ऋषि मुनि मन के। अंतस मा ये राज, करत हावय सबझन के।। रोग करत हे दूर, योग हा ममहावत हे। योगा के संसार, आज बड़ गुण गावत हे।। भारत के परदेस मा, देखव मान बढ़ात हे। इँहे जनम ले योग हा, जग मा सबला भात हे।। (5) केंसर अउ मधुमेह, बिमारी मा हितकारी। सबो रोग मा योग, पड़त हावय गा भारी। मनखे