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Showing posts from December, 2019

कुण्डलिया श्लेष चन्द्राकर के भाग-२

कुण्डलिया छंद (1) आर्थिक मंदी देश की, चिंता वाली बात। मनन करेंगे लोग तब, सुधरेंगे हालात।। सुधरेंगे हालात, पुनः रौनक आयेगी। मुखड़ों पर मुस्कान, युक्ति नव लौटायेगी।। इसपर कहता ‘श्लेष', न हो राजनीति गंदी। मिलजुलकर सब लोग, हटाएँ आर्थिक मंदी।। (2) सरकारी संपत्ति का, करते जो नुक्सान। होते ऐसे लोग तो, उत्पाती शैतान।। उत्पाती शैतान, कहाँ शह पाकर डरते। अपना बेच विवेक, कृत्य पशुओं सा करते।। ‘श्लेष’ उपद्रवी लोग, हानि पहुँचाते भारी। कार्यालय बस रेल, जला देते सरकारी।। (3) बातें बड़ी न कीजिए, करिए भ्राता काज। यदि करना है चाहते, सबके दिल पर राज।। सबके दिल पर राज, करें कुछ अच्छा करके। और लुटाए प्रेम, सभी जन पर जी भरके।। कहे श्लेष नादान, कटेंगी अच्छी रातें। श्रम कर तू भरपूर, छोड़ बेमतलब बातें।। (४) माली नित तन-मन लगा, सींचे अपना बाग। रहता है उसको बहुत, पौधों से अनुराग।। पौधों से अनुराग, लगाकर है वह जीता। करता अपना कार्य, तभी है खाता-पीता।। जिसके जिम्मे श्लेष, बगीचे की रखवाली। कर्मवीर इंसान, नाम है उसका माली।। (५) पानी कम होने लगा, देखो चारों ओर। जल संरक्षण पर बहुत, देना ह

छत्तीसगढ़ी चौपाई छंद

*चौपाई छंद* *गुरु घासीदास* संत शिरोमणि घासी बाबा। कहय एक हे कांशी-काबा।। जात-पात ला ओ नइ जानय। एक सबो मनखे ला मानय।। गुरु बाबा के हरय जनम दिन, सुरता रखहूँ येला सबझिन।। बगराना हे पबरित बानी। सुना सबो ला उँखर कहानी।। बानी मा मँदरस घोलय गा। संत बबा सुग्घर बोलय गा।। सदा नीक ओ गोठ किहिस हे। सत के पहरादार रिहिस हे।। सच्चा सेवक ओ ईश्वर के। रिहिस विरोधी आडंबर के।। इहाँ पंथ सतनाम चलाइन। मानवता के पाठ पढ़ाइन।। भेदभाव सब छोड़व बोलिन। मनखे मन के आँखी खोलिन। छुआछूत ला रोग बताये। दीन-दुखी ला गला लगाये।। एक असन ओ सबला मानय। मया सबो ला देबर जानय।। मानवता के नेक पुजारी। रिहिस बबा के महिमा भारी।। *श्लेष चन्द्राकर* *चौपाई छंद* ऊँच नीच के भेद मिटावव। अब समाज मा समता लावव।। आगे हावय नवा जमाना। छोड़व भइया रीत पुराना।। सीखव सबला ले के चलना। छोड़व कखरो भाव कुचलना।। दव वंचित मन ला अब अवसर। जिनगी गुजरय उखरो सुग्छर।। एक घाट के पानी पीयव। जम्मों जुरमिल जिनगी जीयव।। छुआछूत के भाव मिटाही। इहां तभे गा समता आही।। कहाँ लड़ेबर धरम सिखाथे। एक रहव सब ग्रंथ बताथे।। आपस के अब बैर भुलावव। आघू बढ़के हा

माहिया छंद - श्लेष चन्द्राकर

((( माहिया छंद ))) (1) आवाज उठाओ तुम, जुल्म नही सहना, जग को बतलाओ तुम | (2) हँसते मुस्काते हैं, जीवन जीने का, अंदाज सिखाते हैं | (3) तोड़े विश्वासों को, ख्वाब दिखाते है, समझे अहसासों को | 🌺 श्लेष चन्द्राकर 🌺