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Showing posts from June, 2019

छत्तीसगढ़ी सरसी छंद

विषय - योग रोज बिहनिया उठ के करना, अबड़ जरूरी योग। आसपास मा नइ फटकय गा, ताहन कोनो रोग।। योग करे ले हो जाथे गा, जिनगी हा खुशहाल। अपन देह ला बने रखे बर, थोकुन बखत निकाल।। योगासन मा सबले पहिली, करहू सुरुज प्रमाण। ध्यान लगाके बइठव ताहन, करव अन्य व्यायाम।। खाना खाके वज्रासन मा, बइठव संगी रोज। बने ढ़ंग ले खाना पचही, मुख मा आही ओज।। योगासन ले रहिथे संगी, सुग्घर सबके देह। रथे नियंत्रण मा येकर ले, हृदयरोग मधुमेह।। स्वस्थ रहे बर योग करव सब, सुत उठ के हर रोज। तन मा चुस्ती लाथे येहा, अउ मुखड़ा मा ओज।। योग करे ले मन खुश रहिथे, होथे दूर तनाव। अंग-अंग मा एखर ले गा, पड़थे बने प्रभाव।। अस्पताल मन के होगे हे, महँगा अबड़ इलाज। योग रोग ला बिन पइसा के, ठीक करत हे आज।। योग करे बर कुछु विशेष गा, लागय नइ सामान। चद्दर एक बिछा के बइठन, करव ईश के ध्यान।। शहर-गाँव मा जघा-जघा अब, चलथे योगा क्लास। योग करे बर सीखव जम्मो, जाके उनकर पास।। बीच-बीच मा ले बर पड़थे, योगा मा विसराम। नियम धियम ले योगा करहू, तब देही परिणाम।। विषय - मानसून मानसून ला देखत हावय, छोटे बड़े किसान। काबर ओमन ला डोली मा, बोये बर हे

दीवाली के दोहे

प्रेम दीप घर-घर जले, सुखी रहें सब लोग। माँ लक्ष्मी वरदान दो, दूर हटे दुर्योग।। अंतर मन का तम मिटा, पर्व मनाएं आज। गाँव नगर में हर कही, हो दीपों का राज।। धनवन्तरि आरोग्य के, कहलाते है देव। कृपा दृष्टि हमपर सदा, रखते प्रभो सदैव।। रखता खास महत्व है, दीपों का त्यौहार। तिमिर हरण करता सखे, फैलाता उजियार।। विनती करते आपसे, धनवंतरि महराज। जन के रोग विकार सब, दूर कीजिए आज।। माटी का दीपक बना, विक्रय कर कुम्हार। निज घर का तम दूर कर, लाता है उजियार।। दीपक प्रहरी बन करें, तम से रक्षा मित्र। आ दूजे के काम तू, निर्मल बना चरित्र।।

खुमानलाल साव पर छंद

★ सरसी छंद ★ पारा दिन-दिन चइघत हावय, आगी कस हे घाम। कैद हवय गा मनखे घर मा, छोड़ बुता अउ काम।। गरमी के मारे होगे हे, मनखे मन हलकान। देखत हावय मानसून के, रद्दा सब इंसान।। ★ श्लेष चन्द्राकर ★ ★ सरसी छंद ★ हमर विरासत बाजा मन मा, फूँकिन प्रान खुमान। लोकगीत ला लय मा ढ़ालिन, सुग्घर दिन पहिचान।। छत्तीसगढ़ी लोकगीत ला, लेगिन जन तक साव। सोना के आखर मा उनखर, लिखे जही गा नाव।। परदा पाछू अपन काम ला, सुग्घर करिन खुमान। कहाँ रिहिस हे उनखर मन मा, चिटको गरब गुमान।। सादा जिनगी इहाँ बिताइन, जब तक जीयिन साव। मनखे मन के हिरदे मा वो, छोड़िन अपन प्रभाव।। चंदैनी गोंदा ले जुड़के, उखर बढ़ाइस शान। सुनके मनखे झूमय अइसे, दँय संगीत खुमान।। ★ श्लेष चन्द्राकर ★

हाइकू श्लेष के

हाइकू 1. अमिट स्याही मतदान किया है देती गवाही । 2. आम चुनाव लोकतंत्र का पर्व मना सगर्व ।

हिन्दी बरवै छंद

राष्ट्र भाषा तो हमें, बहुत सुहाय । यह सरल सुगम भाषा, हमें लुभाय ।। हिंदी भाषा देती, अति आनंद । हर एक शब्द इसकी, हमें पसंद ।। हिन्द की पहचान है, हिंदी मीत । इस भाषा से करते, हम सब प्रीत ।। हिन्दी रखती दिल में, अनुपम स्थान । निज भाषा पर करते, हम अभिमान ।। बढ़ाते कविगण मान, लिखकर छंद । हिंदी कविता करते, सभी पसंद ।। अब हिंदी को समुचित, दो अधिकार । काम-काज की भाषा, करो स्वीकार ।। सकल जगत हिंदी में, बोले बात । होगा कितना अच्छा, यह तो भ्रात ।। बचे न कोई कोना, करो प्रचार । चहुँ दिशि में हिंदी का, हो विस्तार ।। श्लेष चन्द्राकर, महासमुंद(छ.ग.)

हिन्दी उल्लाला

इस जग में सबसे अलग, माँ का उजला रूप है। किरण एक उम्मीद की, माँ तो खिलती धूप है।। रखती वसुधा की तरह, वह तो हृदय विसाल है। सहनशीलता मातु की, जग में एक मिसाल है।। करें एक व्यवहार है, खोट न उसके प्यार में। पानी जैसा साफ है, माँ का दिल संसार में।। माँ भी नदिया की तरह, होती जीवन दायनी। उसका ऊँचा स्थान तो, जग में होना लाजमी।।

छत्तीसगढ़ी दोहे - 2

तितली भँवरा ला अबड़़, ऋतु बसंत ले प्यार। किंजर-किंजर के फूल के, चुहके रसा अपार।। मौसम के राजा हरय, ऋतु बसंत झन भूल। सबके मन ला मोहथे, सुग्घर परसा फूल।। हावय पंथी नाच के, अलग इँहा पहिचान। बाबा घासीदास के, येमा रहिथे गान।। राउत मन बर खास हे, देवारी त्यौहार। डंडा के करतब दिखा, नाचय दोहा पार।। सुवा गीत के हे प्रथा, गाँव-गाँव मा मीत। गाथे कातिक मास मा, महिला मन ये गीत।। बाँस गीत हे लोक प्रिय, बड़ सुग्घर ये गीत। ऐला सुनथे जेन भी, खुश होथे बड़ मीत।। लोरिक चंदेनी हरय, लोककथा के गीत। हावय येला गाय के, अबड़ पुराना रीत।। गीत पंडवानी इँहा, तीजन गाथे नीक। हरय महाभारत कथा, सुनके लगथे ठीक।। तीजन बाई के गजब, गायन मा पहिचान। गीत पंडवानी हरय, तीजन के पहिचान। लोरिक चंदेनी हरय, लोककथा के गीत। गाये के ये गीत ला, अबड़ पुराना रीत।। गीत पंडवानी इँहा, तीजन गाथे नीक। हरय महाभारत कथा, सुनके समझव ठीक।। घर बाहिर दूनो जगा, मिले बने सम्मान। माईलोगन मन घला, होथे गा इंसान।। नारी मन परिवार बर, करथे अब्बड त्याग। शुभ होथे एकर कदम, खुलथे नर के भाग।। आवन दे संसार मा, नोनी भ्रुण झन मार। करही बेटी बाढ़ क

छत्तीसगढ़ी सोरठा

होथे अब्बड धान, छत्तीसगढ़ प्रदेश मा। कहिथे सकल जहान, तभे कटोरा धान के। बोथे खेत किसान, मिहनत करके खूब जी। होथे कमती धान, मौसम जब देथे दगा।। बोके धान किसान, जुआ खेलथे गा इहाँ। कृपा इंद्र भगवान, करथे तब होथे बने।। पाक जथे जब धान, सुग्घर दिखथे सोन कस। येला देख किसान, खुश हो जाथे गा अबड़।। सादा कपड़ा आप, गरमी मा पहिरे करो। सुरुज किरण के ताप, येमा कमती लागथे।। मिलथे रंगबिरंग, कपड़ा इहाँ कतेक गा। फेर ढँके बर अंग, सादा कपड़ा नेक गा। कपड़ा ले पहिचान, मनखे के नइ होय जी। बने उही ला जान, जे सबला देथे मया।। पहिरत हे परिधान, लड़का-लड़की एक जी। मुसकुल हे पहिचान, करना इखँर कतेक जी।।

छत्तीसगढ़ी उल्लाला छंद

मिले हवय दू चार दिन, हाँसी खुशी गुजार जी। मया प्रीत बाँटव इहाँ, जिनगी के ये सार जी।। काम-धाम अब गाँव मा, कहाँ मिलत हे आज गा। शहर जात हे लोग मन, खोजे बर अब काज गा। बिन मतलब के अब कहाँ, नेता करथें काम जी। नइ हे ओकर मान अब, होगे हे बदनाम जी। अब जात-पात के नाम ले, लड़त हवय मनखे इहाँ। जब जुरमिल के रहितिन सबो, मार-काट होतिस कहाँ।। बेटी घर के शान हे, मात-पिता के मान हे। बेटी भाग सँवारथे, घर ला ऊही तारथे।। बेटी ला सम्मान दो, अपन हृदय मा स्थान दो। बेटी लक्ष्मी रूप हे, अँधियारा मा धूप हे।। चिरई चुरगुन बर रखव, आप कसोरा एक जी। उनकर प्यास बुझाय बर, काम करव ये नेक जी।। गरमी मा गरु-गाय मन, होवय मत हलकान जी। चारा-पानी दव बने, रखव उँखर अउ ध्यान जी।।

छत्तीसगढ़ी बरवै छंद

काटन झन दो बिरथा, पेड़ बचाव। हराभरा धरती ला, फेर बनाव।। रुख-राई झन काटव, समझो बात। वन घटही तब होही, कम बरसात।। झन उपयोग करव गा, पालीथीन। हो जाही पहिली कस, हमर जमीन।। झिल्ली हा कर देथे, नाली जाम। कचरा डब्बा येकर, सही मुकाम।। मिरगा भलुवा हाथी, खोजत नीर। आवत हवय गाँव के, नँदिया तीर।। रुख-राई के पत्ती, गे हे सूख। मरत हवय सब वन के, प्राणी भूख।। दिन-दिन सूखत हावय, जल के स्त्रोत। बूँद-बूँद पानी बर, मनखे रोत।। कम होगे हे संगी, नल के धार। पीये के पानी बर, मचथे रार।। हैण्डपम्प के होगे, खस्ताहाल। जम्मो सूखत हावय, नँदिया ताल।। मोटर के धुँगिया हे, जहर समान। येकर सेती जाथे, कतको जान।। धुर्रे हा फैलाथे, कतको रोग। मुहू बाँध के निकले, घर ले लोग।। लगथे अब्बड़ गरमी, दिन अउ रैन। मानसून जब आही, मिलही चैन।। तात हवा चलथे गा, दिन अउ रात। सबझन सोचत हावय, हो बरसात।। रानी दुर्गावती पर बरवै छंद... हमर देश के बेटी, रिहिन महान। राजा कीरति सिंह के, वो संतान।। आठे के दिन जनमिन, कन्या नेक। रिहिन ददा-दाई के, लइका एक।। ओकर माँ-बाप रखिन, दुर्गा नाम। करिन राज के हित मा, जे हा काम।। दुर्गावती

गीत... श्लेष चन्द्राकर के...

(1) गीत बँट न जाए देश दोबारा । कायम रखना भाईचारा ।। नव पीढ़ी को मत भड़काओ । मानवता का धर्म सिखाओ ।। दीनहीन का बनो सहारा । कायम रखना भाईचारा ।। आपस में अब लड़ना छोड़ों । प्रेम-भाव से नाता जोड़ों ।। मत तोड़ों विश्वास हमारा । कायम रखना भाईचारा ।। हमें मानती दुनिया सारी । सज्जनता पहचान हमारी ।। विश्व शांति हो अपना नारा । कायम रखना भाईचारा ।। मिलजुलकर यह देश सँवारे । सुखमय जीवन सभी गुजारे ।। देश बनेगा भारत प्यारा । कायम रखना भाईचारा ।। (2) खड़े हैं साथ उनके हम हमेशा ये बताना हैं। हमारे सैनिकों का हौसला हमको बढ़ाना हैं। हमारे देश में आतंक का जो बीज बोएंगे। बचेंगे वो नहीं अपनी ख़ता पर खूब रोएंगे। हमें जो तोड़ना चाहें हमें उनको मिटाना हैं। हमारे सैनिकों का हौसला हमको बढ़ाना हैं। हमें मालूम है यह देश में गद्दार भी रहते। हमारे दुश्मनों को जो यहाँ हैं ठीक वे कहते। उन्हें अब ढूंढ़कर यारों यहाँ से अब भगाना हैं। हमारे सैनिकों का हौसला हमको बढ़ाना हैं। हमारे वास्ते सैनिक डटे हैं छोड़ अपना घर। खड़े हैं देश की खातिर हमारे वीर सीमा पर। हमारी एकता की शक्ति दुश्मन को दिखाना हैं। हमारे सै

मुक्तक श्लेष चन्द्राकर के...

(1) मुक्तक सत्य लिखना एक कवि का कर्म है। नेक दे संदेश उसका धर्म है। लेखनी होती तभी उसकी सफल- आम पाठक जब समझता मर्म है। (2) मुक्तक अब हमें मत आजमाओ। जो कहा था कर दिखाओ। हम प्रतीक्षा कर रहें हैं- आप अब वादा निभाओ। (3) मुक्तक दुःख में हो तो हँसाते। ज़ख्म में मरहम लगाते। आजकल तो मुश्किलों में- दोस्त ही तो काम आते। (4) मुक्तक मुसीबत के समय जो काम आए यार सच्चा है। बिना मतलब निभाए साथ वो किरदार सच्चा है। भरोसे पर उतरता है ख़रा धोखा नहीं देता- वही इंसान सच्चा है उसी का प्यार सच्चा है। (5) उच्च शिक्षा लाल को अपने दिलाने के लिए। कर रही मेहनत उसे अफसर बनाने के लिए। दोहरा दायित्व माँ सर पर उठाती देखिए- ढो रही है ईंट गारा घर चलाने के लिए। (6) बिन तेरे कुछ भी नहीं भाता मुझे अब क्या करूँ। हर जगह तू ही नज़र आता मुझे अब क्या करूँ। आइना भी अक्स तेरा ही दिखाकर आजकल- छेड़ता और तड़पाता मुझे अब क्या करूँ। (7) सदा देखते जीत का नेक सपना। नहीं चाहते हार का स्वाद चखना। विजय के लिए खूब संघर्ष करते- कभी वीर खोते नहीं धैर्य अपना। (8) कीमती होता समय है, ध्यान इसपर दीजिए। व्यर्थ ही इ

चौपई

☘ चौपई छंद ☘ मिथ्या की होती है हार। सत्य विजय का है आधार।। फल की मत करिए परवाह। सदा सत्य की चलिए राह।। जुडें आप से लोग अनेक। काम कीजिए ऐसा नेक।। निष्ठा से करिए निज काज। फिर देगा सम्मान समाज।। जग लेता है उसका नाम। जो करता है अच्छा काम।। ☘ श्लेष चन्द्राकर ☘

गीतिका

दोहागजल:- ********** हरदम पीड़ा जगत में, सहता क्यों इंसान। फिर भी खुश हूँ मैं बहुत,कहता क्यों इंसान। दिल की बात जुबान पर,आ जाती हर बार, भावुकता में जब कभी, बहता क्यों इंसान। जब होता अन्याय तो,करता नहीं विरोध, सहकर अत्याचार चुप, रहता क्यों इंसान। भला-बुरा सोचे बिना,कर लेता है काज, फिर बदले की आग में,दहता क्यों इंसान। टूटे जब विश्वास तो,होता 'श्लेष' उदास, जर्जर एक मकान सा, ढहता क्यों इंसान। श्लेष चन्द्राकर, महासमुंद (छत्तीसगढ़) 🏵 गीतिका 🏵 आप दिन को कभी रात मत मानिए। बात जो है गलत भ्रात मत मानिए। जंग में जिंदगी के कभी साथियों बिन लडे निज कभी मात मत मानिए। बोलकर बात मीठी फँसाता सदा वो चतुर है बहुत बात मत मानिए। भेंट होगी पुनः अब किसी मोड़ पर आखिरी ये मुलाकात मत मानिए जिंदगी भर सखे सीखना है यहाँ सब मुझे हो गया ज्ञात मत मानिए 🏵 श्लेष चन्द्राकर 🏵 निश्छल छंद आधारित... 🌺 गीतिका 🌺 जाति-पांति के भेद भुलाकर, बाँटें प्यार। मानवता से ही कायम है, ये संसार।। मारकाट से अपनों का ही, बहता रक्त। पुष्प-प्रेम के कर में रखना, तज हथियार।। मिलजुलकर सबसे रहने से, बढ़ता प्रेम। ऐसा

ग़ज़ले श्लेष चन्द्राकर की...

(1) ग़ज़ल सितम हर सिम्त ढ़ाया जा रहा है जमीं पे जब्र बढ़ता जा रहा है भरोसे के कोई क़ाबिल नहीं अब कहाँ यारों जमाना जा रहा है सितम बच्चों पे भी ढ़ाने लगा अब कि ये इंसान गिरता जा रहा है हुआ इंसान से नाराज सूरज तपिश अपनी बढ़ाता जा रहा है यहाँ हर हादिसे को यार अब तो सियासत में उछाला जा रहा है हवस में हो गया इंसान अंधा बिना सोचे ही भागा जा रहा है मिलेगा ‛श्लेष' अब इंसाफ़ कैसे हक़ीक़त को छुपाया जा रहा है (2) ग़ज़ल खामियां हैं सुधार कर लें क्या फैसले पर विचार कर लें क्या फैसला आर पार कर लें क्या मुल्क पे जाँ निसार कर लें क्या तू तो हासिल हमें नहीं होगी तेरे साये से प्यार कर लें क्या फिर से आया चुनाव का मौसम बोलिए जीत हार कर लें क्या तुमको सम्मान मिल सके जग में खुद को हम दाग़दार कर लें क्या (3) ग़ज़ल मैं तेरे सब नखरें सहता रहता हूँ तेरी खुशियों ख़ातिर ऐसा रहता हूँ जब से इश्क़ हुआ है मुझको तुझसे तो सब कहते हैं बहका-बहका रहता हूँ तुम रहती हो तो सब अच्छा लगता है तुम बिन मैं तो खोया-खोया रहता हूँ भूल यहाँ जाता हूँ तब दुनियादारी जब तेरे सपनों में डूबा रहता हूँ