छत्तीसगढ़ी सरसी छंद

विषय - योग

रोज बिहनिया उठ के करना, अबड़ जरूरी योग।
आसपास मा नइ फटकय गा, ताहन कोनो रोग।।

योग करे ले हो जाथे गा, जिनगी हा खुशहाल।
अपन देह ला बने रखे बर, थोकुन बखत निकाल।।

योगासन मा सबले पहिली, करहू सुरुज प्रमाण।
ध्यान लगाके बइठव ताहन, करव अन्य व्यायाम।।

खाना खाके वज्रासन मा, बइठव संगी रोज।
बने ढ़ंग ले खाना पचही, मुख मा आही ओज।।

योगासन ले रहिथे संगी, सुग्घर सबके देह।
रथे नियंत्रण मा येकर ले, हृदयरोग मधुमेह।।

स्वस्थ रहे बर योग करव सब, सुत उठ के हर रोज।
तन मा चुस्ती लाथे येहा, अउ मुखड़ा मा ओज।।

योग करे ले मन खुश रहिथे, होथे दूर तनाव।
अंग-अंग मा एखर ले गा, पड़थे बने प्रभाव।।

अस्पताल मन के होगे हे, महँगा अबड़ इलाज।
योग रोग ला बिन पइसा के, ठीक करत हे आज।।

योग करे बर कुछु विशेष गा, लागय नइ सामान।
चद्दर एक बिछा के बइठन, करव ईश के ध्यान।।

शहर-गाँव मा जघा-जघा अब, चलथे योगा क्लास।
योग करे बर सीखव जम्मो, जाके उनकर पास।।

बीच-बीच मा ले बर पड़थे, योगा मा विसराम।
नियम धियम ले योगा करहू, तब देही परिणाम।।

विषय - मानसून

मानसून ला देखत हावय, छोटे बड़े किसान।
काबर ओमन ला डोली मा, बोये बर हे धान।।

पहिली पानी गिरही सुग्घर, मन मा सबके आस।
डोली मा तब नाँगर चलही, बीज छिड़कही खास।।

घुरवा मा हे कबके उनकर, खातू हा तैयार।
होतिस जल्दी खेत खार मा, पानी के बौछार।।

बने बरसतिस आसो बादर, सोचत हवय किसान।
खेत लबालब भर जातिस तब, बने निकलतिस धान।।

निंदाई कोड़ाई करके, देतिन खेत सँवार।
बने धान के तभे कृषक मन, लेतिन पैदावार।।

विषय - भारतीय नारी

हमर देश के नारी मन के, गाथा हवय महान।
काज करिन हे सुग्घर-सुग्घर, बनिस उखर पहिचान।।

लड़े रिहिन हे लक्ष्मी बाई, आजादी के जंग।
अठ्ठारह सौ सन्तावन मा, अंग्रेजन मन संग।।

एक रिहिन हे दुर्गा भाभी, अमर क्रांति के दूत।
कथा साहसी जिनकर करथे, सबझन ला अभिभूत।।

रजिया सुग्घर करे रिहिन हे, मुगलकाल मा काम।
पहिली महिला शासक बनके, खूब कमाइन नाम।।

सिंधु सानिया गीता दीपा, हरें खिलाड़ी खास।
पदक देश बर सदा लानथें, नइ तोड़य विश्वास।।

हरमन वेदा पूनम सुषमा, दीप्ति मिताली राज।
माईलोगिन के क्रिकेट मा, बडे़ नाँव हे आज।।

चढ़े रिहिन हे ऐवरेस्ट मा, सुता बछेन्द्री पाल।
एक साहसी नारी के वो, संगी हरे मिसाल।।

गरब कल्पना के ऊपर बड़, करथे भारत श्लेष।
अंतरिक्ष के यात्रा करके, बेटी बनिस विशेष।।

सुता सानिया मिर्जा के हे, टेनिस मा बड़ नाँव।
ग्रैंड स्लैम कप जीते हावय, ओहर कतको घाँव।।

गीत लता कोयल कस गाथे, हमर देश के शान।
अपन छाप जग मा छोड़े हे, छेड़ सुरीली तान।।

नाँव किरण बेदी के संगी, भूलन नइ सिरतोन।
सुधरिस हे उनकर प्रयास ले, कैदी मन कतकोन।।

नेहरु जी के बेटी इंदू, नारी एक महान।
नाँव बढाइन हमर देश के, बनके नेक प्रधान।।

उमस बाढ़ गे हावय अब्बड़, मनखे हे हलकान।
करत हवय घेरीबेरी अब, दिन मा सब स्नान।।

बरसय नइ छाये बादर हा, तोड़ देत हे आस।
कमती होवत नइ हे संगी, गरमी के अहसास।।

सूखय नइ बोहात पछीना, करत हवय बेचैन।
चिपचिप चिपचिप देहे लागय, अलकरहा दिन रैन।।

आगी कस भभकत हे धरती, मनखे हे उसनात।
रद्दा देखत हावय सबझन, जल्दी हो बरसात।।

काम बुता कुछु सूझत नइ हे, गरमी गे हे बाढ़।
संगी राहत देवत नइ हे, आसो के आषाढ़।।

पहिली पानी जब गिरथे गा, उमस दिखाथे रंग।
भुँइया के गरमी तब करथे, जीव जन्तु ला तंग।।

बिला छोड़ के आथे बाहिर, कतको बिच्छी साँप।
देख अचानक ओ सबमन ला, मनखे जाथे काँप।।

नइ सह पाये कतको झन हा, मौसम के बदलाव।
ओमन ला जर धर लेथे गा, होथे तन मा घाव।।

उमस बाढ़थे तब कर देथे, जीना हमर हराम।
पंखा कूलर एसी मन भी, नइ आवय कुछु काम।।

झेले बर पड़थे सबझन ला, गरमी के संताप।
पानी गिरथे बड़ तब होथे, जुड़ भुँइया के ताप।।

विषय - चलो पढ़ौ ला

चलौ पढ़े ला नोनी-बाबू, खुलगे शाला फेर।
जाये के तैयारी कर लव, चिटिक करव झन देर।।

जाके शाला मा लेवव सब, गुरुजी मन ले ज्ञान।
उखर दिखाये रद्दा मा चल, बनव नेक इंसान।।

शाला मा जाहू तब मिलही, पुस्तक अउ गणवेश।
पढ़व लगा के ध्यान उहाँ अउ, जानव देश-विदेश।।

जम्मो शाला मन के जानव, आज बदलगे ढ़ंग।
पढ़ई-लिखई होथे अब तो, उहाँ खेल के संग।।

नवा-नवा सीखे बर मिलथे, शाला मन मा गोठ।
जाके उहाँ बनावव सबझन, अपन ज्ञान ला पोठ।।

विषय - चन्द्रयान

चन्द्रयान अभियान बढ़ाही, हमर देश के मान।
पोठ हमर होवत हे संगी, अंतरिक्ष विज्ञान।।

भेज डरे हन अंतरिक्ष मा, चन्द्रयान ला एक।
जेन चाँद के चित्र खींच के, भेजत हवय कतेक।।

चन्द्रयान के सफल प्रक्षेपण, रचे रिहिस इतिहास।
कोन भुला सकथे इसरो के, योगदान ला खास।।

चन्द्रयान के नासा हा जी, तको करिस गुणगान।
हवय चाँद मा पानी संगी, इही बताइस यान।।

चंद्रयान अब दू ला इसरो, भेजत हावय श्लेष।
जेन चाँद के दक्षिण कोती, करही जाँच विशेष।।

चंद्रयान-दू के वैज्ञानिक, सबझन हावय खास।
दो नारी मन ऐमा जुड़के, रचत हवय इतिहास।।

चन्द्रयान दू अंतरिक्ष मा, करही मीत प्रवेश।
यान चाँद मा भेज हिन्द हा, बनही चौथा देश।।

विषय - बाढ़त गरमी

बाढ़त गरमी अब होगे हे, मनखे बर जंजाल।
काबर अइसे होवत हे गा, होथे खडे़ सवाल।।

काटत हावय जंगल ला सब, अपन स्वार्थ बर आज।
भुँइया ले नंगावत हावय, हरियाली के ताज।।

रुख-राई कमती होये ले, होवत कम बरसात।
तापमान हा बाढ़त हावय, हवा चलत हे तात।।

घुरत हवय गा आज ग्लेशियर, होथे मृदा कटाव।
पेड़ कटे ले बदलत हावय, नँदिया अपन बहाव।।

पानी के किल्लत बढ़हत हे, अब तो सालों साल।
बाढ़त गरमी के सेती ये, होवत हावय हाल।।

बाढ़त गरमी ला रोके बर, सबझन पेड़ लगाव।
हराभरा करके धरती ला, सुग्घर फेर बनाव।।

बारिश के पानी ला रोको, आही काली काम।
तर जाही गरमी के दिन मा, सबो शहर अउ ग्राम।।

धुर्रा धुँगिया कमती फैलय, अइसे करव प्रयास।
बाढ़य झन ओजोन छेद अब, काम करव वो खास।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

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