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Showing posts from August, 2019

घनाक्षरी छंद - श्लेष चन्द्राकर

🏵 घनाक्षरी छंद 🏵 (1) राजनीति में भरें हैं, अपराधी लोग कुछ, जेल भेजकर उन्हें, सजा दिलवाइए। लिप्त होके घोटालों में, देश को ये लूट रहे, इनकें ठिकानों में भी, छापे पड़वाइए। धज्जियाँ उड़ाते नित, नियम व कानून की, सही राह लाने हेतु, डंडे बरसाइए। दोषी चाहे कोई रहे, बचके न भाग सके, देश में कठोर ऐसा, कानून बनाइए। 🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 (2) घूसखोर भ्रष्टाचारी, पनप रहे हैं यहाँ, ऐसे इंसानों से अब, देश को बचाइए। हक मार जनता का, जेब भरे अपनी जो, ऐसे जन को पकड़, सबक सिखाइए। सरकारी साधनों का, दुरुपयोग करते, भ्रष्ट अधिकारियों को, पद से हटाइए। सीधे मिले जनता को, लाभ योजनाओं का जी, सरकारी तंत्र को यूँ, तगड़ा बनाइए।। 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿 (3) सुबह से दिख रही मंदिरों में भीड़ अति, आज कृष्ण जन्माष्टमी मना रहा देश हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण जप रहे नाम सभी, चहुँओर भक्तिमय आज परिवेश हैं। गाँव-गाँव नगर-नगर आज शुभ दिवस में, बच्चें बालगोपाल का धर रहे वेश हैं। जीवन अपना जियो आप कन्हैया जैसे, भक्तगण सबको ये दे रहे संदेश हैं। 🌷 श्लेष चन्द्राकर 💐 (4) ¤ घनाक्षरी छंद ¤ सीज फायर नित ही, तोड़

छत्तीसगढ़ी ताटंक छंद

∆ विषय - संगवारी ∆ ★ ताटंक ★ कदम-कदम मा जाल बिछाथे, बैरी हवय जमाना जी। संगी-साथी बिन मुसकुल हे, जिनगी इहाँ बिताना जी।। सुख-दुख मा अब संगी मन, बढ़िया साथ निभाथें गा। जब मुसकुल के बेरा आथे, काम उही मन आथें गा।। कृष्ण सुदामा जइसे रहिथे, जिनकर इहाँ मितानी हा। मया प्रेम ले इहाँ गुजरथे, ओमन के जिनगानी हा।। रहिन करण-दुर्योधन जइसे, सच्चा इहाँ मितानी गा। कथा महाभारत मा सुनलौ, इनकर अमर कहानी गा।। आज हमागे हवय सुवारथ, नाता रिश्तादारी मा। भाव समरपण के तँय पाबे, सदा अपन सँगवारी मा।। ★ श्लेष चन्द्राकर ★ ∆ विषय - मितानी ∆ ★ ताटंक छंद ★ हमर राज मा चलथे जानव, सुग्घर प्रथा मितानी के। गोठ बड़े के माने जाथे, मोल अबड़ हे बानी के।। लइकापन मा दू लइका ला, संगी इहाँ बनाथे जी। भाईचारा ले अब रइहू, सुग्घर गोठ सिखाथे जी।। जब मितान बदथे दू लइका, बन जाथे सँगवारी गा। नियम-धियम के पालन करथे, दूनो आरी-पारी गा।। दू कुटुंब ला एक बनाथे, नरियर एक निशानी हा। जात-पात के भेद मिटाथे, जुन्ना प्रथा मितानी हा। परंपरा ये मनखे मन ला, सदा राखथे जोड़े गा। कभू मितानी के नाता ला, ओमन हा नइ तोड़े गा।। ★ श्लेष चन्द्रा

छत्तीसगढ़ी कुकुभ छंद

★ कुकुभ छंद ★ पइसा वाला मनके चलथें, ये दुनिया मा अब भाई। दीनहीन के कोन सुनइया, जिनगी उनकर दुखदाई।। कोट कछेरी जावत रहिथे, फरियादी घेरीबेरी। न्याय मिलय नइ कभू समय मा, होथे काबर बड़ देरी।। घिसा जथे चप्पल जूता हा, काम ढ़ूँढ़ने वाला के। कोन दिखइया उखर इहाँ हे, पड़े पाँव मा छाला के।। भाषण देथें बड़े-बड़े सब, कहाँ काम करथे कोनो। नेता अफसर काकर सुनथे, मनमरजी करथे दोनो।। आम आदमी के पीरा ला, नइ समझय भ्रष्टाचारी। दफ्तर मा इतरावत रहिथे, पद पाके ओ सरकारी।। ★ श्लेष चन्द्राकर ★ ★ कुकुभ छंद ★ बरसा रितु मा सुग्घर लगथे, गाँव कका जंगल वाला। पानी गिरथे जब खच्चित गा, बने दउँड़थे तब नाला।। रुख-राई मन हरियर दिखथें, नवा फूटथे जब पाना। मोर नाचथे बड़ सुग्घर गा, कोयल हा गाथे गाना।। घात गरजथे जब बादर हा, फुटू निकलथे बड़ भारी। खोज-खोज के जंगल ले गा, बोड़ा खाथे नर-नारी।। भरे लबालब तरिया दिखथे, धरसा ले आथे पानी। साग जगाथें सबो किसनहा, डोली मा आनी-बानी।। नार करेला बरबट्टी के, लाम जथे चारों कोती। पानी बरसा के पाना मा, दिखथे जइसे हे मोती।। ◆ विषय - गौ माता ◆ ★ कुकुभ छंद ★ गौ माता ला हमर देश मा, लक्ष्मी क