छत्तीसगढ़ी कुकुभ छंद
★ कुकुभ छंद ★
पइसा वाला मनके चलथें, ये दुनिया मा अब भाई।
दीनहीन के कोन सुनइया, जिनगी उनकर दुखदाई।।
कोट कछेरी जावत रहिथे, फरियादी घेरीबेरी।
न्याय मिलय नइ कभू समय मा, होथे काबर बड़ देरी।।
घिसा जथे चप्पल जूता हा, काम ढ़ूँढ़ने वाला के।
कोन दिखइया उखर इहाँ हे, पड़े पाँव मा छाला के।।
भाषण देथें बड़े-बड़े सब, कहाँ काम करथे कोनो।
नेता अफसर काकर सुनथे, मनमरजी करथे दोनो।।
आम आदमी के पीरा ला, नइ समझय भ्रष्टाचारी।
दफ्तर मा इतरावत रहिथे, पद पाके ओ सरकारी।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
★ कुकुभ छंद ★
बरसा रितु मा सुग्घर लगथे, गाँव कका जंगल वाला।
पानी गिरथे जब खच्चित गा, बने दउँड़थे तब नाला।।
रुख-राई मन हरियर दिखथें, नवा फूटथे जब पाना।
मोर नाचथे बड़ सुग्घर गा, कोयल हा गाथे गाना।।
घात गरजथे जब बादर हा, फुटू निकलथे बड़ भारी।
खोज-खोज के जंगल ले गा, बोड़ा खाथे नर-नारी।।
भरे लबालब तरिया दिखथे, धरसा ले आथे पानी।
साग जगाथें सबो किसनहा, डोली मा आनी-बानी।।
नार करेला बरबट्टी के, लाम जथे चारों कोती।
पानी बरसा के पाना मा, दिखथे जइसे हे मोती।।
◆ विषय - गौ माता ◆
★ कुकुभ छंद ★
गौ माता ला हमर देश मा, लक्ष्मी कस माने जाथे।
जेकर घर मा ये हा रहिथे, सुख समृद्धि ओ हा पाथे।।
गोरस होथे अमरित जइसे, सबला अबड़ सुहाथें।
जेमन येकर सेवन करथे, बलशाली उँन हो जाथें।।
दही घीव मक्खन अउ खोवा, सब बनथें इखँर मिठाई।
गोरस हा सब मनखे मन के, अबड़ काम आथें भाई।।
हाड़ा चमड़ी सिंग घला हा, काम हमर मन बर आथे।
जिनकर ले बड़ सुग्घर-सुग्घर, पनही अउ बटन बनाथे।।
हमर देश मा गोबर ले जी, लिपे अंगना ला जाथे।
अउ जानव गौ-मूत्र घला हा, कतको गा रोग मिटाथे।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
★ *कुकुभ छंद* ★
आजादी के परब मनाबो, जब अगस्त पंद्रह आही।
दफ्तर कालेज स्कूल मन मा, हमर तिरंगा लहराही।।
गाना गाबो देशभक्ति के , अउ सबके जोश बढ़ाबो।
उनकर मन के अंतस मा गा, देशभक्ति के भाव जगाबो।।
सुरता अमर शहीदन मन के, करबो गीत ग़ज़ल गाके।
उनकर मन के पूजा करबो, नरियर अउ फूल चढ़ाके।।
खुशी मनाये लइका मन सन, उखँर पाठशाला जाबो।
हो प्रभातफेरी मा शामिल, नारा बहुतेच लगाबो।।
झंडा फहराये जाही तब, राष्ट्र-गान सबझन गाबो।
लइका मनके कविता सुनबो, बूँदी खाके घर आबो।।
★ *श्लेष चन्द्राकर* ★
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