Posts

Showing posts from July, 2020

कामरूप छंद (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

कामरूप छंद (१) माँ-बाप गुरुजन, हरे भगवन, उखँर कर सम्मान। जब कथे उँन मन, तँय बने बन, बना गा पहिचान।। सुन गोठ उनकर, रथे सुग्घर, तोर आही काम। रह गोठ म अटल, बने पथ चल, बढ़ा उनकर नाम। (२) दू दिन रथे धन, गरब कर झन, लोभ दे तँय छोड़। सबले दया के, अउ मया के, नता जग मा जोड़।। सब मोह तज के, राम भज के, बने कर तँय काम। जन के मदद कर, जी उखँर बर, तभे मिलही राम।। (३) छल कपट कर झन, नेक तँय बन, सबो के आ काम। बड़ शान ले तब, जगत मा सब, तोर लेही नाम।। जी देश हित बर, सदा सुग्घर, अपन तज के स्वार्थ। मनखे बने बन, लगा के मन, करत रा परमार्थ।। (४) जल ला बचाबे, झन बहाबे, मान ले तँय बात। बिरथा बहाबे, ता उठाबे, परेशानी घात।। सुन बहत जल के, भूमि तल के, बूँद हर अनमोल। जल बहत रोकव, तोल खरचव, मनुख मन ला बोल।। (५) रितु खास सावन, हरय पावन, उठा गा आनंद। येकर विषय मा, मीत लय मा, नीक लिख तँय छंद।। कर बने वर्णन, सुने जे मन, कहें सुग्घर गीत। कवि बने बन के, सबो झन के, जीत ले मन मीत। (६) परिणाम ला डर, गरब झन कर, मिटा जाबे जान। कहथें गुणी जन, जी बने बन, गोठ उनकर मान।। तन हरे नश्वर, भूल झन कर, गरब दे त

त्रिभंगी छंद (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

त्रिभंगी छंद (१) भुँइया हरियागे, सावन आगे, सब तरिया हें, घात भरे। नरवा दउड़त हे, नहर चलत हे, मुसकुल होवत, पार करे।। नव पाना आवत, रुख हरियावत, फूल खिलत सब, नीक लगे। श्रृंगार करे नव, रूप धरे नव, ये भुँइया के, भाग जगे। (२) दिन पावन आगे, सावन आगे, शंकर जी के, ध्यान धरौ। जल ले नउँहाके, फूल चढ़ाके, सुग्घर मंतर, जाप करौ।। शिव भक्तन जन बर, संतन मन बर, येहर सुग्घर, मास हरे। बाबा कैलाशी, हे अविनाशी, आस सबो के, पूर्ण करे।। (३) गुरु ज्ञान बँटइया, राह दिखइया, ये भुँइया के, देव हरे। सब शिष्यन मन बर, अउ जन-जन बर, काम सदा जे, नीक करे।। नव राष्ट्र गढ़इया, धरम सिखइया, महा पुरुष के, गोठ सुनौ। गुरुदेव सिखाथे, जे बतलाथे, ओ सब ला जी, आप गुनौ। (४) बंदूक चला झन, खून बहा झन, मानवता बर, सोच सदा। आतंक मचाथे, खून बहाथे, ओ सब मन ला, दाम पदा।। तँय हितवा बनके, लोगन मनके, देखभाल कर, नाम कमा। सत राह चलत रा, करम करत रा, नेक मनुख बन, धाक जमा।। (५) दिन-रात कमाथँव, स्वेद बहाथँव, भूख मिटाथे, मोर तभे। परिवार चलत हे, चूल जलत हे, मिलत हवय गा, काम जभे।। कमती सुविधा मा, मँय दुविधा मा, मनुख जियइया, एक हरौ