छत्तीसगढ़ी ताटंक छंद
∆ विषय - संगवारी ∆
★ ताटंक ★
कदम-कदम मा जाल बिछाथे, बैरी हवय जमाना जी।
संगी-साथी बिन मुसकुल हे, जिनगी इहाँ बिताना जी।।
सुख-दुख मा अब संगी मन, बढ़िया साथ निभाथें गा।
जब मुसकुल के बेरा आथे, काम उही मन आथें गा।।
कृष्ण सुदामा जइसे रहिथे, जिनकर इहाँ मितानी हा।
मया प्रेम ले इहाँ गुजरथे, ओमन के जिनगानी हा।।
रहिन करण-दुर्योधन जइसे, सच्चा इहाँ मितानी गा।
कथा महाभारत मा सुनलौ, इनकर अमर कहानी गा।।
आज हमागे हवय सुवारथ, नाता रिश्तादारी मा।
भाव समरपण के तँय पाबे, सदा अपन सँगवारी मा।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
∆ विषय - मितानी ∆
★ ताटंक छंद ★
हमर राज मा चलथे जानव, सुग्घर प्रथा मितानी के।
गोठ बड़े के माने जाथे, मोल अबड़ हे बानी के।।
लइकापन मा दू लइका ला, संगी इहाँ बनाथे जी।
भाईचारा ले अब रइहू, सुग्घर गोठ सिखाथे जी।।
जब मितान बदथे दू लइका, बन जाथे सँगवारी गा।
नियम-धियम के पालन करथे, दूनो आरी-पारी गा।।
दू कुटुंब ला एक बनाथे, नरियर एक निशानी हा।
जात-पात के भेद मिटाथे, जुन्ना प्रथा मितानी हा।
परंपरा ये मनखे मन ला, सदा राखथे जोड़े गा।
कभू मितानी के नाता ला, ओमन हा नइ तोड़े गा।।
★ श्लेष चन्द्राकर★
◆ तांटक छंद ◆
छत्तीसगढ़ राज हे संगी, भारत मा सबले प्यारा।
जिहाँ प्रेम के चारों कोती, सुग्घर बोहाथे धारा।।
ऊँच-नीच अउ जाति-धरम के, भेद इहाँ नइ लागू हे।
मदद करे बर सबके भइया, इहाँ लोग मन आघू हे।।
जंगल नँदिया झरना परवत, अउ कतेक गा घाटी हे।
सोना उगलइया जी संगी, छत्तीसगढ़ के माटी हे।।
आन राज के मनखेमन हा, मान इहाँ सब पाथें गा।
साथ अपन उँन सुग्घर-सुग्घर, सुरता लेके जाथें गा।।
छत्तीसगढ़ी भाखा ला सब, मनखेमन सहराथें जी।
हमर राज मा जेमन आथें, सीख-सीख के जाथें जी।।
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