हिन्दी बरवै छंद

राष्ट्र भाषा तो हमें, बहुत सुहाय ।
यह सरल सुगम भाषा, हमें लुभाय ।।
हिंदी भाषा देती, अति आनंद ।
हर एक शब्द इसकी, हमें पसंद ।।
हिन्द की पहचान है, हिंदी मीत ।
इस भाषा से करते, हम सब प्रीत ।।
हिन्दी रखती दिल में, अनुपम स्थान ।
निज भाषा पर करते, हम अभिमान ।।
बढ़ाते कविगण मान, लिखकर छंद ।
हिंदी कविता करते, सभी पसंद ।।
अब हिंदी को समुचित, दो अधिकार ।
काम-काज की भाषा, करो स्वीकार ।।
सकल जगत हिंदी में, बोले बात ।
होगा कितना अच्छा, यह तो भ्रात ।।
बचे न कोई कोना, करो प्रचार ।
चहुँ दिशि में हिंदी का, हो विस्तार ।।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद(छ.ग.)

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