छत्तीसगढ़ी दोहे - 2

तितली भँवरा ला अबड़़, ऋतु बसंत ले प्यार।
किंजर-किंजर के फूल के, चुहके रसा अपार।।

मौसम के राजा हरय, ऋतु बसंत झन भूल।
सबके मन ला मोहथे, सुग्घर परसा फूल।।

हावय पंथी नाच के, अलग इँहा पहिचान।
बाबा घासीदास के, येमा रहिथे गान।।

राउत मन बर खास हे, देवारी त्यौहार।
डंडा के करतब दिखा, नाचय दोहा पार।।

सुवा गीत के हे प्रथा, गाँव-गाँव मा मीत।
गाथे कातिक मास मा, महिला मन ये गीत।।

बाँस गीत हे लोक प्रिय, बड़ सुग्घर ये गीत।
ऐला सुनथे जेन भी, खुश होथे बड़ मीत।।

लोरिक चंदेनी हरय, लोककथा के गीत।
हावय येला गाय के, अबड़ पुराना रीत।।

गीत पंडवानी इँहा, तीजन गाथे नीक।
हरय महाभारत कथा, सुनके लगथे ठीक।।

तीजन बाई के गजब, गायन मा पहिचान।
गीत पंडवानी हरय, तीजन के पहिचान।

लोरिक चंदेनी हरय, लोककथा के गीत।
गाये के ये गीत ला, अबड़ पुराना रीत।।

गीत पंडवानी इँहा, तीजन गाथे नीक।
हरय महाभारत कथा, सुनके समझव ठीक।।

घर बाहिर दूनो जगा, मिले बने सम्मान।
माईलोगन मन घला, होथे गा इंसान।।

नारी मन परिवार बर, करथे अब्बड त्याग।
शुभ होथे एकर कदम, खुलथे नर के भाग।।

आवन दे संसार मा, नोनी भ्रुण झन मार।
करही बेटी बाढ़ के, सपना तोर सकार।।

घर मा नारी रूप मा, देवी करय निवास।
खुश रखहूँ ओला सदा, हो झन कभू उदास।।

दाई बेटी अउ बहिन, नारी के सब रूप।
होथे इनकर साथ ले, जिनगी हमर अनूप।।

लकर-धकर जे रेंगथे, तुरते थकथे मीत।
धीरज ले जे काम ले, होथे ओकर जीत।।

होथे मुसकुल बेर मा, संगी के पहिचान।
मुसकुल मा जे साथ दे, बने उही ला मान।।

तरिया झन मइला करव, धरथे खजरी रोग।
कबे तभो मानय नहीं, मनके करथे लोग।।

हमर छंद परिवार के, आयोजन हे खास।
येमा शामिल होय के, रइही मोर प्रयास।।

जानत हँव ये बात ला, हवय कवर्धा दूर।
फेर करत हँव आय के, मँय कोशिश भरपूर।।

देहू ओला मान गा, करहू झन अपमान।
धरती मा देवी असन, महतारी ला जान।।

जे लइका हा मानथे, महतारी के बात।
जीवन के संग्राम मा, नइ खावय वो मात।।

गुरु ले पहिली जान लौ, दाई देथे ज्ञान।
सबले ऊपर हे इहाँ, ओकर गा स्थान।।

बढ़त रिहिस भू-लोक मा, जब अधर्म के राज।
तभे राम अवतार लिस, लानिस इहाँ सुराज।।

मान ददा के बात ला, प्रभुवर गिस वनवास।
हावय इहीँ प्रसंग हा, राम कथा मा खास।।

सदा करिस प्रभु राम हा, मर्यादित ब्यवहार।
पुरुषों मा उत्तम तभे, कहिथे ये संसार।।

अंबेडकर कुरीत के, खुलके करिस विरोध।
संविधान निर्माण बर, करिस जगत मा शोध।।

शरबत नींबू के बना, पियव सुबह अउ शाम।
गरमी मौसम मा अबड़, पहुँचाथे आराम।।

छुआछूत के रोग ला, कर समाज ले दूर।
होगिस भारत देश मा, भीमराव मशहूर।।
*श्लेष चन्द्राकर*

भीमराव पहली अबड़, इहाँ सहिस अपमान।
संविधान निर्माण ले, बनिस फेर पहिचान।।

भीमराव अंबेडकर, रिहिस ज्ञान के खान।
ये जग के ओला रिहिस, नौ भाखा के ज्ञान।।

पढ़के अइस बिदेस ले, बाँटिस सबला ज्ञान।
भीमराव अंबेडकर, नेता बनिस महान।।

माटी पूत खुमान ला, सकथे कोन भुलाय।
चंदैनी गोंदा असन, संस्था रिहिस बनाय।।

कलाकार बर साव जी, रिहिस प्रेरणा स्त्रोत।
उजियारा बगरे रही, बारिस अइसे ज्योत।।

फाँफा दियना ले लपट, देथे अपन परान।
मया समरपन भाव ये, सीखय सब इंसान।।

फाँफा जइसे अब मया, जग मा करथे कोन।
दियना बर ओकर मया, गजब हरय सिरतोन।।

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