गीतिका

दोहागजल:-

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हरदम पीड़ा जगत में, सहता क्यों इंसान।

फिर भी खुश हूँ मैं बहुत,कहता क्यों इंसान।


दिल की बात जुबान पर,आ जाती हर बार,

भावुकता में जब कभी, बहता क्यों इंसान।


जब होता अन्याय तो,करता नहीं विरोध,

सहकर अत्याचार चुप, रहता क्यों इंसान।


भला-बुरा सोचे बिना,कर लेता है काज,

फिर बदले की आग में,दहता क्यों इंसान।


टूटे जब विश्वास तो,होता 'श्लेष' उदास,

जर्जर एक मकान सा, ढहता क्यों इंसान।


श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

🏵 गीतिका 🏵

आप दिन को कभी रात मत मानिए।
बात जो है गलत भ्रात मत मानिए।

जंग में जिंदगी के कभी साथियों
बिन लडे निज कभी मात मत मानिए।

बोलकर बात मीठी फँसाता सदा
वो चतुर है बहुत बात मत मानिए।

भेंट होगी पुनः अब किसी मोड़ पर
आखिरी ये मुलाकात मत मानिए

जिंदगी भर सखे सीखना है यहाँ
सब मुझे हो गया ज्ञात मत मानिए

🏵 श्लेष चन्द्राकर 🏵

निश्छल छंद आधारित...
🌺 गीतिका 🌺
जाति-पांति के भेद भुलाकर, बाँटें प्यार।
मानवता से ही कायम है, ये संसार।।

मारकाट से अपनों का ही, बहता रक्त।
पुष्प-प्रेम के कर में रखना, तज हथियार।।

मिलजुलकर सबसे रहने से, बढ़ता प्रेम।
ऐसा करने से ये जीवन, लगे न भार।।

काम किसी के आना तो है, अच्छी बात।
हर मानव का जग में ऐसा, हो किरदार।।

हार मिले तो मन में अपने, रख मत द्वेष।
हँसी-खुशी परिणाम सखे तू, कर स्वीकार।।
🌺  श्लेष चन्द्राकर 🌺
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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