खुमानलाल साव पर छंद
★ सरसी छंद ★
पारा दिन-दिन चइघत हावय, आगी कस हे घाम।
कैद हवय गा मनखे घर मा, छोड़ बुता अउ काम।।
गरमी के मारे होगे हे, मनखे मन हलकान।
देखत हावय मानसून के, रद्दा सब इंसान।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
★ सरसी छंद ★
हमर विरासत बाजा मन मा, फूँकिन प्रान खुमान।
लोकगीत ला लय मा ढ़ालिन, सुग्घर दिन पहिचान।।
छत्तीसगढ़ी लोकगीत ला, लेगिन जन तक साव।
सोना के आखर मा उनखर, लिखे जही गा नाव।।
परदा पाछू अपन काम ला, सुग्घर करिन खुमान।
कहाँ रिहिस हे उनखर मन मा, चिटको गरब गुमान।।
सादा जिनगी इहाँ बिताइन, जब तक जीयिन साव।
मनखे मन के हिरदे मा वो, छोड़िन अपन प्रभाव।।
चंदैनी गोंदा ले जुड़के, उखर बढ़ाइस शान।
सुनके मनखे झूमय अइसे, दँय संगीत खुमान।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
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