छत्तीसगढ़ी सोरठा

होथे अब्बड धान, छत्तीसगढ़ प्रदेश मा।
कहिथे सकल जहान, तभे कटोरा धान के।

बोथे खेत किसान, मिहनत करके खूब जी।
होथे कमती धान, मौसम जब देथे दगा।।

बोके धान किसान, जुआ खेलथे गा इहाँ।
कृपा इंद्र भगवान, करथे तब होथे बने।।

पाक जथे जब धान, सुग्घर दिखथे सोन कस।
येला देख किसान, खुश हो जाथे गा अबड़।।

सादा कपड़ा आप, गरमी मा पहिरे करो।
सुरुज किरण के ताप, येमा कमती लागथे।।

मिलथे रंगबिरंग, कपड़ा इहाँ कतेक गा।
फेर ढँके बर अंग, सादा कपड़ा नेक गा।

कपड़ा ले पहिचान, मनखे के नइ होय जी।
बने उही ला जान, जे सबला देथे मया।।

पहिरत हे परिधान, लड़का-लड़की एक जी।
मुसकुल हे पहिचान, करना इखँर कतेक जी।।

Comments

Popular posts from this blog

मनहरण घनाक्षरी (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

छत्तीसगढ़ी दोहे - श्लेष चन्द्राकर

मंदारमाला सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर