मुक्तक श्लेष चन्द्राकर के...
(1) मुक्तक
सत्य लिखना एक कवि का कर्म है।
नेक दे संदेश उसका धर्म है।
लेखनी होती तभी उसकी सफल-
आम पाठक जब समझता मर्म है।
(2) मुक्तक
अब हमें मत आजमाओ।
जो कहा था कर दिखाओ।
हम प्रतीक्षा कर रहें हैं-
आप अब वादा निभाओ।
(3) मुक्तक
दुःख में हो तो हँसाते।
ज़ख्म में मरहम लगाते।
आजकल तो मुश्किलों में-
दोस्त ही तो काम आते।
(4) मुक्तक
मुसीबत के समय जो काम आए यार सच्चा है।
बिना मतलब निभाए साथ वो किरदार सच्चा है।
भरोसे पर उतरता है ख़रा धोखा नहीं देता-
वही इंसान सच्चा है उसी का प्यार सच्चा है।
(5)
उच्च शिक्षा लाल को अपने दिलाने के लिए।
कर रही मेहनत उसे अफसर बनाने के लिए।
दोहरा दायित्व माँ सर पर उठाती देखिए-
ढो रही है ईंट गारा घर चलाने के लिए।
(6)
बिन तेरे कुछ भी नहीं भाता मुझे अब क्या करूँ।
हर जगह तू ही नज़र आता मुझे अब क्या करूँ।
आइना भी अक्स तेरा ही दिखाकर आजकल-
छेड़ता और तड़पाता मुझे अब क्या करूँ।
(7)
सदा देखते जीत का नेक सपना।
नहीं चाहते हार का स्वाद चखना।
विजय के लिए खूब संघर्ष करते-
कभी वीर खोते नहीं धैर्य अपना।
(8)
कीमती होता समय है, ध्यान इसपर दीजिए।
व्यर्थ ही इसको गँवाना, भूल है मत कीजिए।
साथ चलके अब समय के, आप पहुँचे लक्ष्य तक-
याद ये दुनिया रखे जो, कर्म वो कर लीजिए।
(9)
तमतमाते क्रोध में वो राज असली खोलते हम।
मान जाते है बुरा जब बात सच्ची बोलते हम।
बात ये मालूम है अपना हमें वो मानते जब-
चापलूसों की तरह गर साथ हिलते डोलते हम।
(10)
किसी को बेवजह नीचा दिखाना छोड़ दो तुम ।
मनोबल तोड़कर खुशियाँ मनाना छोड़ दो तुम ।
सभी को एक दिन मिलता है' अवसर भूलना मत-
स्वयं को श्रेष्ठ कहना अरु जताना छोड़ दो तुम ।
(11)
भूलकर निज सभ्यता अंग्रेज बनते जा रहे हैं ।
आज हिंदी बोलने से लोग तो कतरा रहे हैं ।
झेलना पड़ता उन्हें अपमान का अब दंश मित्रों-
राष्ट्र भाषा में यहाँ जो बात करते आ रहे हैं ।
(12)
आन अपनी शान अपनी राष्ट्रभाषा।
हिन्द की पहचान अपनी राष्ट्रभाषा।
विश्व के देखो पटल पर आज कैसे-
पा रही सम्मान अपनी राष्ट्रभाषा।
(13)
हमारे वास्ते दिल में बहुत नफरत तुम्हारी है।
दिखावा लग रही अब तो हमें चाहत तुम्हारी है।
हमें भाती नहीं बिल्कुल तुम्हारी ये अदाएं तो-
खिलौना जानकर दिल तोड़ना आदत तुम्हारी है।
(14)
सभी को साथ में लेकर हमें उत्सव मनाना हैं।
अभी मजबूत है रिश्ता हमारा ये दिखाना हैं।
यहाँ हर हाल में रहते सभी हम लोग मिलजुलकर-
नहीं टूटी हमारी एकता जग को बताना हैं।
(15)
सघन तम को हरा उजला हमें परिवेश देता है।
उजाले की तरफ आगे बढ़ो संदेश देता है।
जलाकर एक दीपक द्वार पे रख दे वही काफी-
उजाला वो हमें देता है' ज्यों राकेश देता है।
(16)
हाथ आगे कम बढ़ाते हैं उठाने के लिए।
लोग तो तैयार रहते हैं गिराने के लिए।
कम नहीं करते मुसीबत और भी देते बढ़ा-
लोग मौके ढूंढते हैं अब सताने के लिए।
(17)
दिल किसी का तोड़ना अब एक आदत हो गई
बद से' भी बदतर यहाँ की अब सियासत हो गई
फिक्र जनता की नहीं करते सियासी लोग अब-
बस यहाँ करना हुकूमत उनकी' चाहत हो गई
(18)
भूलकर शिकवे गिले हँसना हँसाना चाहिए।
महफ़िलों में ग़म नहीं अपना सुनाना चाहिए।
बाँटने खुशियाँ हमें ये ज़िन्दगी यारो मिली-
जो किसी के काम आये यूँ बिताना चाहिए।
(20)
मत कभी जीना यहाँ तुम सर झुकाकर ज़िंदगी।
तुम यहाँ जीना सदा सर को उठाकर ज़िंदगी।
लोग वो कमजोर हैं जो जुल्म सहकर जी रहे-
तुम कभी जीना नहीं आँसू बहाकर ज़िंदगी।
(21)
गीत कविता बेतुके अपनी सुनाने।
लोग आते मंच पर अब सर पकाने।
थाम ले माईक तो कब छोड़ते हैं-
श्रेष्ठ खुद को वे लगे रहते बताने।
(22)
बंकरों को ध्वस्त करने बम गिराना चाहिए |
नीच पाकी सैनिकों के शीश लाना चाहिए |
कर जवाबी कार्यवाही अब उसी के तर्ज पर-
पाक को औकात उसकी अब बताना चाहिए |
(23)
जल गए हैं घर कई अंगार से ।
हाथ कुछ आता नहीं तकरार से ।
छोड़कर लड़ना-झगड़ना साथियो !
ज़िन्दगी अपनी गुजारो प्यार से ।
(24)
आन अपनी शान अपनी राष्ट्रभाषा।
हिन्द की पहचान अपनी राष्ट्रभाषा।
विश्व के देखो पटल पर आज कैसे-
पा रही सम्मान अपनी राष्ट्रभाषा।
(25)
रात दिन खटते रहे इक घर बनाने के लिए।
बन गया तो आ गए उसको गिराने के लिए।
क्या नियम कानून है ये सब नही हम जानते,
अब कहाँ जाएँ बताओ सर छुपाने के लिए।
(26)
दुरियाँ बढ़ती सखे तकरार से ।
बात करना तुम सभी से प्यार से ।
है जगत में प्रेम के भूखे सभी -
जीत लेना दिल मधुर व्यवहार से ।
(27)
दूजे के कांधे पर रखकर, बंदूक चलाना छोड़ो ।
निज स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर, मत साथ निभाना छोड़ो ।
नहीं चलोगे साथ हमारे, तय कर बैठे ठीक किया -
पर बहला-फुसलाकर हक की, आवाज दबाना छोड़ो ।
(28)
एकता की एक माला देश है।
प्रेम की ये पाठशाला देश है।
शान इसकी है अनूठी जान लो-
विश्व में भारत निराला देश है।
(29)
किसी की कामयाबी पर यहाँ तो लोग जलते हैं।
बधाई दे नहीं सकते हमेशा विष उगलते हैं।
पचा सकते नहीं हैं ये किसी की जीत को यारो-
दिखाने के लिए नीचा हमेशा चाल चलते हैं।
(30)
निश्छल राजधर्म का पालन, करते थे अटल बिहारी ।
कभी भी सच कहने से नहीं, डरते थे अटल बिहारी ।
बेबाकी से बातें अपनी, सबके सम्मुख रखते थे-
कविताओं से जोश दिलों में, भरते थे अटल बिहारी ।
(31)
अब हमें मत आजमाओ।
जो कहा था कर दिखाओ।
हम प्रतीक्षा कर रहें हैं-
आप अब वादा निभाओ।
(32)
मित्र सच्चा, पथ प्रदर्शक।
और होता वो समर्थक।
गलतियों को है बताता-
वो नहीं है मूकदर्शक।
(33)
हो रहा है क्या गलत सबको दिखाना चाहता हूँ।
लेखनी से इस जहां को सच बताना चाहता हूँ।
गीत गज़लों में लिखूंगा बात मैं इंसानियत की -
भाव नफरत का जहां से मैं मिटाना चाहता हूँ।
(34)
नया कुछ कर रहे तो सोचना परिणाम अच्छा हो।
मिलेगी जीत तुमको देखना गर काम अच्छा हो।
इरादे नेक हों तो सब दुआएँ एक दिन देंगे-
भले आगाज ऐसा है, मगर अंजाम अच्छा हो।
(35)
सीमा पर उत्पात मचाते, करते जब माहौल खराब।
सैनिक आगे आकर देते, दुश्मन को मुँह तोड़ जवाब।
प्राणों की परवाह न करते, जब लड़ते है सैनिक जंग-
होश उड़ा देते दुश्मन के, चुकता करते मीत हिसाब।
(36)
मुहब्बत करो तुम अदावत नहीं।
मुहब्बत से' बढ़ कर इबादत नहीं।
कटेगी नहीं चैन से ज़िन्दगी-
तुम्हें गर किसी से मुहब्बत नहीं।
(37)
हर समय तैयार रहते आजमाने के लिए।
ढूँढते हैं लोग मौका अब सताने के लिए।
प्यार से आते नहीं है पेश यारों लोग अब-
बोल तीखे बोलते हैं दिल दुखाने के लिए।
(38)
कष्टों को सहकर जीवन में, मिलती है सौगात ।
पतझड़ के उपरांत पेड़ को, मिलते है नव पात ।
उम्मीदों को जिन्दा रखना, करना मेहनत खूब -
तेरे जीवन में भी होगी, खुशियों की बरसात ।
(39)
दूर है मंजिल बहुत यह मानते हैं।
राह है काँटों भरी हम जानते हैं।
हम भी हैं जिद्दी बडे तुम याद रखना-
पूर्ण करते काम जो भी ठानते हैं।
(40)
भावनाओं में कभी बहना नही अब।
राज की बातें कभी कहना नही अब।
फायदा अब सब उठायेंगे तुम्हारा-
सादगी को मानते गहना नही अब।
(41)
त्याग परहित भावना किन ख्वाहिशों में घिर गए तुम।
क्या गज़ब ऐसा हुआ निज वायदे से फिर गए तुम।
अब दिखाना मत कभी अपनी हमें मनहूस सूरत-
तोड़कर विश्वास नज़रों से हमारे गिर गए तुम।
(42)
भाग्य को अपने सदा हम कोसते ही रह गए।
कुछ नहीं हम कर सके बस सोचते ही रह गए।
ज़िन्दगी की दौड़ में हम हो गए पीछे बहुत-
लोग आगे बढ़ गए हम देखते ही रह गए।
(43)
कौड़ियों के भाव में अब बेचते ईमान है ।
आज लोगों के लिए पैसा बना भगवान है ।
प्यार अपनापन जमाने में नहीं अब दोस्तों -
आज पैसों से यहाँ बनने लगी पहचान है ।
(44)
सुलगती आग को भड़का रहे हैं।
धुआँ माहौल में फैला रहे हैं।
लगेगी आग तो बस्ती जलेगी-
यही हम सोच कर घबरा रहे हैं।
(45)
आँख से आँख को तुम मिलाकर कहो।
बात हो सत्य तो सिर उठाकर कहो।
मत डरो सत्य के साथ हो तुम अगर-
बात हर हौसला तुम जुटाकर कहो।
(46)
जंग लड़ना है तुझे मत डर सखे।
जीतना तो, जोश दिल में भर सखे।
आ गई है अब परीक्षा की घड़ी-
सामना हालात का तू कर सखे।(
47)
कीमती होता समय है, ध्यान इसपर दीजिए।
व्यर्थ ही इसको गँवाना, भूल है मत कीजिए।
साथ चलके अब समय के, आप पहुँचे लक्ष्य तक-
याद ये दुनिया रखे जो, कर्म वो कर लीजिए।
(48)
ऐब अपने त्याग कर यारो सुधरना चाहिए।
चार दिन की ज़िन्दगी सुख से गुजरना चाहिए।
पूर्ण निष्ठा से निभाओ जो मिला दायित्व है -
खुश रहे सब लोग ऐसा काम करना चाहिए।
(49)
बात जो भी है जरूरी सब बताते ही रहें।
कर मनोरंजन सभी को हम हँसाते ही रहें।
चार दिन जीना यहाँ है दुश्मनी पाले नहीं-
प्यार की दौलत सदा सब पर लुटाते ही रहें।
(50)
पर्व दीपों का मनायेंगे सभी।
आस का दीपक जलायेंगे सभी।
गम जमाने में बहुत मिलते हमें-
पास खुशियों को बुलायेंगे सभी।
(51)
जानते हैं चार जन ही नाम से।
किन्तु मिलती ख्याति असली काम से।
छोड़ना मत पथ कभी भी सत्य का-
तब कटेगी जिंदगी आराम से।
(52) 21/07/2016
घूँट अपमान के मत पिया कीजिए।
शान से ज़िन्दगी को जिया कीजिए।
आजमाती रहेंगी सदा मुश्किलें-
सामना मुश्किलों का किया कीजिए।
(53) 18/10/2016
मुक्तक
(तांटक छंद 16-14 यति)
बेरहमी से मार रहे हैं, बेकसूर इंसानों को।
क्या मिलता है खून बहा कर, आतंकी हैवानों को।
करते रहते ओछी हरकत, आकर ये बहकावे में,
सबक सिखाना बहुत जरूरी, इन भटके शैतानों को।
(54) 5/08/16
मानता खुद को बड़ा है।
बात पर अपनी अडा है।
देखता सच को नही क्यों,
अक्ल पर पत्थर पड़ा है।
(55) 25/07/2016
बात अच्छी अब बताता कौन है।
राह भटकों को दिखाता कौन है।
हाथ में पत्थर लिये अब घूमते,
फूल लेकर आज आता कौन है।
(56)
हमें तो हर विषय का ज्ञान देती हैं किताबें।
ज़माने में नई पहचान देती हैं किताबें।
करेंगे मित्रता इनसे अगर होगा भला ही-
बनाकर नेक जन सम्मान देती हैं किताबें।
(57)
हाथ पैरों के बिना मत बोलिए लाचार हूँ।
हौसला मुझमें बहुत है मानता कब हार हूँ।
आज़माकर देख लो होता नहीं विश्वास तो-
मुश्किलों का सामना करने सदा तैयार हूँ।
(58)
बेजुबानों को सताना वीरता होती नहीं।
जाल में अपने फँसाना वीरता होती नहीं।
वन्य जीवों की सुरक्षा में करो सहयोग तुम-
मारना अरु मांस खाना वीरता होती नहीं।
(58)
जा रहें नाता नगर से, तोड़कर मजदूर।
चाह रोटी की अधूरी, छोड़कर मजदूर।
फिर न आयेंगे नगर में, लौट के हम लोग-
कह रहें हैं हाथ सबसे, जोड़कर मजदूर।
(59)
ईश ने तुमको बनाकर, है किया उपकार।
और मुझको दे दिया है, कीमती उपहार।
मैं न पाऊँगा चुका यह, जिंदगी भर कर्ज-
ईश को आभार कहता, नित्य ही सत बार।
(60)
क़तअ
मशविरा दे कोई तो सुना कीजिए
जो मुनासिब लगे वो किया कीजिए
तोड़ना है नहीं दिल किसी का कीजिए-
ख़्याल इस बात का भी रखा कीजिए।
(61)
धरा का ताप बढ़ता जा रहा हर साल क्यों यारो।
हुई है जिंदगी इससे कहो बदहाल क्यों यारो।
समय के पूर्व ही जल की कमी होने लगी है अब-
जरा सोचो समय ने है बदल ली चाल क्यों यारो।
(62)
चलो मिलकर यहाँ हम प्रीत की धारा बहाते है।
नहीं जो जानते जीना उन्हें जीना सिखाते है।
दुखों से है भरा जीवन जगत में आज जिन-जिन का-
उन्हीं के पास जाकर हम उन्हें कुछ क्षण हँसाते है।
(63)
भागदौड़ में जीवन को हम, कैसे जीना भूल गए।
चले ओढ़कर फटी चदरिया, जिसको सीना भूल गए।
इस जीवन ने पल-पल कितने, स्वाद चखाए कड़वे-कड़वे-
क्या बतलाए अब हम यारो, मधुरस पीना भूल गए।
(64)
जीवन की आपाधापी में, जीवन जीना भूल गए।
चले ओढ़कर फटी चदरिया, जिसको सीना भूल गए।
इस जीवन ने पल-पल कितने, स्वाद चखाए कड़वे-कड़वे-
क्या बतलाए अब हम यारो, मधुरस पीना भूल गए।
(65)
सत्य की जीत अरु झूठ की हार का।
नीर की पुण्य रंगीन बौछार का।
विश्व बंधुत्व का नेक संदेश दे-
पर्व होली सखे आपसी प्यार का।
(66)
बिन पेंदी के लोटा होते, सब खबरी चैनल वाले।
बीज सदा नफरत का बोते, सब खबरी चैनल वाले।
जहर उगलकर लड़वाते हैं, सीधी-सादी जनता को-
खुद अपनी ही इज्जत खोते, सब खबरी चैनल वाले।
(67) मुक्तक
तुलसी का बिरवा पावन है।
सबको लगता मनभावन है।
जिस घर के आँगन में उगता-
वह घर लगता वृंदावन है।
(68) मुक्तक
शुद्ध हवा तुलसी देती है।
अशुद्धियों को हर लेती है।
रोग निवारक इसमें क्षमता-
हितकारी इसकी खेती है।
(69) मुक्तक
तुलसी पत्ता जो खाता है।
वह बलिष्ठ नर हो जाता है।
वैद्य चिकित्सक के बिन जानों-
निज तन से रोग भगाता है।
🔰🔰🔰 श्लेष चन्द्राकर 🔰🔰🔰
खैरा बाड़ा, गुडरु पारा,
महासमुन्द(छ.ग.)
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