छत्तीसगढ़ी उल्लाला छंद
मिले हवय दू चार दिन, हाँसी खुशी गुजार जी।
मया प्रीत बाँटव इहाँ, जिनगी के ये सार जी।।
काम-धाम अब गाँव मा, कहाँ मिलत हे आज गा।
शहर जात हे लोग मन, खोजे बर अब काज गा।
बिन मतलब के अब कहाँ, नेता करथें काम जी।
नइ हे ओकर मान अब, होगे हे बदनाम जी।
अब जात-पात के नाम ले, लड़त हवय मनखे इहाँ।
जब जुरमिल के रहितिन सबो, मार-काट होतिस कहाँ।।
बेटी घर के शान हे, मात-पिता के मान हे।
बेटी भाग सँवारथे, घर ला ऊही तारथे।।
बेटी ला सम्मान दो, अपन हृदय मा स्थान दो।
बेटी लक्ष्मी रूप हे, अँधियारा मा धूप हे।।
चिरई चुरगुन बर रखव, आप कसोरा एक जी।
उनकर प्यास बुझाय बर, काम करव ये नेक जी।।
गरमी मा गरु-गाय मन, होवय मत हलकान जी।
चारा-पानी दव बने, रखव उँखर अउ ध्यान जी।।
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