छत्तीसगढ़ी आल्हा छंद

विषय - वीर नारायण सिंह

रिहिन वीर नारायण सच्चा, भारत माता के जी लाल।
करे रिहिन सन संतावन मा, अँगरेजन के बाराहाल।।

जन के हक मारय अँगरेजन, अपन भरयँ जी उँन गोदाम।
काम करावयँ घात रात दिन, अउ देवयँ गा कमती दाम।

दिन-दिन जब अँगरेजन के, बढ़त रिहिस हे अत्याचार।
तब विरोध मा आघू आइस, नारायण हा धर तलवार।।

कभू गुलामी के जिनगी हा, उन ला गा नइ आइस रास।
सबो आदिवासी ल सकेलिन, अपन बनाइस सेना खास।।

नारायण हुंकार भरिस हे, सबो उठाइस तब हथियार।
लड़िस हवयँ गोरा मन सन जी, ओमन माँगे बर अधिकार।।

रिहिस हवय नारायण सिंह हा, ऊँचा-पूरा धाकड़ वीर।
उठा-उठा के ठाड पटकतिस, बैरी मन ला देवय चीर।।

जब दहाड़ बघवा कस मारय, बने-बने के जी थर्राय।
प्रान बचाये बर बैरी मन, रुखराई के बीच लुकाय।।

खच खच खच तलवार चलावय, मारय सर सर गा ओ तीर।
अँगरेजन के सैनिक मन हा, उनकर आघू माँगय नीर।।

महावीर नारायण सिंह ला, रिहिस देश ले अब्बड़ प्यार।
लडिस लड़ाई आजादी के, आँखी मा भरके अंगार।।

जुलुम देख के मनखे ऊपर, अब्बड़ खउलय सिंह के खून।
देख वीर ला गोरा मन के, गिल्ला हो जावयँ पतलून।।

विषय - चन्द्रशेखर आजाद

वीर पूत भारत माता के, रिहिस चन्द्रशेखर आजाद।
उँखर शहादत के कहिनी ला, बने रखे रइहू जी याद।।

लड़े रिहिस अँगरेजन मन सन, शेर असन ओ छाती तान।
प्रान गँवादिस हाँसत हाँसत, राखिन धरती माँ के मान।।

★ विषय - रानी दुर्गावती ★

रानी दुर्गावती नाँव के, रिहिस देश मा बेटी एक।
अपन राज बर जेहा सुग्घर, करिन हवय जी काम अनेक।।

जे कालिंजर के राजा के, एक रिहिन हे गा संतान।
आघू जाके जेन बनिस हे, रानी दुर्गावती महान।।

जनमिस हे जे आठे के दिन, पड़िस हवय तब दुर्गा नाम।
अपन अलग पहिचान बनाइन, सुग्घर-सुग्घर करके काम।।

रिहिस साहसी बचपन ले जी, रिहिस हवय उन गुण के खान।
राज महोबा के बेटी हा, गजब चलावय तीर कमान।।

धरे रहय बंदूक हाथ मा, चितवा के ओ करे शिकार।
अइसे ओ तलवार घुमावय, क्षण मा देतिस बैरी मार।।

बड़े बाढ़हिस दुर्गा हा तब, ददा करिस हे उँखर विवाह।
राज गोंड़वाना के राजा, जीवन संगी दलपत शाह।।

सरग सिधारिन उनकर पति तब, दुख के टूटिस हवय पहाड़।
हँसी-खुशी सब गायब होगे, जिनगी होगे सुक्खा झाड़।।

राजपाट के रानी दुर्गा, थामिस हावय तहां कमान।
घात बढाइस आघू जाके, राज गोंड़वाना के शान।।

अबला नारी जान करिस हे, अउ राजा मन जब परसान।
मजा चखाये बर उँन मन ला, रानी दुर्गा लिस हे ठान।।

अकबर भेजिस आसफ खाँ ला, हड़पे बर रानी के राज।
बैरी ऊपर रणचंडी हा, टूट पड़िस हे बनके गाज।।

पहिली लड़ई मा आसफ के, सेना गिस हे भइया हार।
जघा-जघा अब्बड़ होइस हे, रानी दुर्गा के जयकार।।

घोड़ा मा बइठे रानी हा, भाँजय बड़ सुग्घर तलवार।
बैरी मुगलन मन के भइया, घात करय गा उन संहार।।

एक बार मा मुँड़ दस-दस के, काली कस उन देवय काट।
कायर मुगलन सैनिक मन के, लाश ह पहुँचय मुर्दा घाट।।

धूल चटाइन मुगलन मन ला, उँखर दिखाइस जी औकात।
रानी दुर्गा के सेना ला, मिलिस जीत के तब सौगात।।

हारिस ता आसफ हा चिढ़गे, बदला लेबर आइस फेर।
दुर्गा के कमती सेना ला, ओकर सेना लिस हे घेर।।

पुरुष वेश धरके रानी हा, युद्ध लड़ेबर लिस हे ठान।
हार कभू नइ मानव सोचिस, भले निकल जाए गा प्रान।।

आनबान के खातिर भिड़गे, धरके भाला अउ तलवार।
दुर्गा के सेना मुगलन के, मारिस सैनिक तीन हजार।।

चालबाज मुगलन मन हा जी, अपन दिखादिस हे औकात।
दुगुना तिगुना उनकर सेना, घात मचाइस हे उत्पात।

लुका-लुका के कायर मन हा, रिहिस चलावत भाला तीर।
लड़त-लड़त रानी दुर्गा के, घायल होगे अबड़ शरीर।।

बैरी मनके हाथों मरना, रानी समझिस हे अपमान।
अपन घेंच मा चला कटारी, उन माटी बर दे दिस प्रान।।

★ विषय - सुभाष चंद्र बोस ★
किरिया खाके लड़े रिहिन हे, आजादी बर वीर सुभाष।
पक्का जी विस्वास रहिस हे, पूरा होही ये अभिलाष।।

स्वतंत्रता के वीर बोस हा, रखे रिहिन हे सपना संग।
फौज बना आजाद हिंद के, जीत डरिस हे आधा जंग।।

सपना ला साकार करे बर, सोचय जी ओहा दिन-रात।
अपन बनाइस फौज तहां ले, करिन लड़ाई के शुरुवात।।

नव जवान मन के भीतर मा, अँगरेजन बर राहय रोष।
अउ भर देवय बोस जोश गा, इंकलाब के कर उद्घोष।।

जब सुभाष हा भाषण देवय, डोलय धरती अउ आकाश।
जोश भरय ओ अइसे रग मा, उठ के दौड़न लागय लाश।।

प्रभा-जानकी जी के जेहा, दुलरू बेटा रिहिस कमाल।
करिन ददा-दाई के जेहा, आघू जाके चाकर भाल।

पिता जानकीनाथ बताये, रद्दा मा चल बनिस महान। नेताजी कहिके देवयँ गा, लोगन मन ओला सम्मान।।

पढ़ई-लिखई मा नइ तोड़िस, अपन ददा-दाई के आस।
अउ आईएएस परीक्षा, करिस बने नंबर ले पास।।

अँगरेजन मन बर अब्बड़ गा, रिहिस उँखर मन मा तो रोस।
छोड़ नौकरी के लालच ला, चुनिस देशसेवा ला बोस।

महासचिव अध्यक्ष रिहिस हे, कांगरेस के कुछ दिन खास।
त्याग-पत्र देदिस सुभाष हा, नइ आइस जब ओला रास।।

आजादी के आंदोलन मा, कूद पड़िस हे ताहन वीर।
भारत माँ के सेवा बर जी, सौंपिस हावय अपन शरीर।।

नव जवान मन ला जुरिया के, अपन चलाइन हे अभियान।
दुखी हमर भारत माता के, लहुटाये बर ओहा शान।।

बड़े गजब के भाषण दिन हे, पहुँचिस बघवा जब रंगून।
आजादी दिलवाहूँ मँय हा, मातृभूमि बर दव सब खून।।

वीर बोस तनिया के छाती, घात भरे जब-जब हुंकार।
अँगरेजन सन लड़े-भिड़े बर, हो जावयँ गा सब तैयार।।

सेना मा आजाद हिन्द के, रोज जुड़यँ मनखे कतकोन।
ललक रहय गा आजादी बर, एक असन सब मा सिरतोन।।

अँगरेजन ला देख बोस के, मारय अब्बड़ खून उबाल।
सदा रहय तैयार वीर हा, उनकर नींछे बर गा खाल।।

टोपी वर्दी खाकी पहिरे, कनिहा मा खोंचे पिस्तोल।
करय फौज के अगुवानी गा, भारत माँ के ओ जय बोल।।

*★ विषय - देवारी ★*
परब मनाथन देवारी के, हरय पाँच दिन के ये खास।
सुख समृद्धि घर आथे गा, पुरखा मन के हे विश्वास।।

दीया बरही माटी के गा, रंगोली सजही घर द्वार।
चारों कोती हो जाही जी, रात अमावस मा उजियार।।

पहिली जी धनतेरस आथे, धातु बिसाथें ये दिन लोग।
धन्वंतरि जी ला खुश करके, प्रभो मिटाहू कहिथें रोग।।

कातिक चौदस के दिन केशव, नरकासुर ला दिन हे मार।
तब ले ये दिन इहाँ मनाथें, नरक चौदसी लोग तिहार।।

कातिक के गा रात अमावस, पुन्नी कस दिखथे अंजोर।
दीया बरथे जगमग जगमग, अबड़ फटाका करथे शोर।।

लक्ष्मी जी के पूजा करथें, बने लगा के जेमन ध्यान।
ओमन पाथें सुख समृद्धि गा, देथे देवी माता ज्ञान।।

धन के देवी लक्ष्मी जी के, पूजा के हे खास रिवाज।
नवा बहीखाता लिखना शुरु, बैपारी मन करथें आज।।

देवारी के दूसर दिन गा, पूजा के हे खास विधान।
परब मनाथें अन्नकूट के, गोधन मन ला देथें मान।।

इंद्र रिसाके गोकुल मा जब, बरसाथे गा नीर अपार।
कृष्ण उठा गोवर्धन परबत, मनखे मन ला देथे तार।।

गोवर्धन पूजा के तब ले, हावे भइया इहाँ रिवाज।
गोधन मन के पूजा करके, परब मनाथें सबो समाज।।

शुक्ल द्वितीया के दिन सुग्घर, होथे भैय्या दूज तिहार।
भाई बहिनी के ये दिन गा, इहाँ देखथन मया अपार।।

यम जी यमुना के घर जाथे, बहिनी के जब आथे याद।
बहन हाथ के खाना खाके, देथे यम जी आशीर्वाद।।

परब पाँच दिन के देवारी, आथें सबला अबड़ पसंद।
संगी साथी अउ कुटुंब सन, लेथें सब येकर आनंद।।
*★ श्लेष चन्द्राकर ★*

★ विषय - सरदार वल्लभ भाई पटेल ★
★ आल्हा छंद ★
जिनकर आघू चलय नहीं गा, राजनीति के मइला खेल।
लोहा कस ओ मनखे के जी, नाँव रिहिस सरदार पटेल।।

देश भलाई के सोचय गा, कदम उठावय जेहा खास।
नीक काम करके वल्लभ हा, जीतिन जनता के विस्वास।।

गलत गोठ कोनो करतिस ता, ओला देवय गा फटकार।
बने चलिन हे जिनगी भर जी, सत के रद्दा मा सरदार।।

वल्लभ भाई हा भारत बर, काम करिन हे कतको नेक।
राजा रजवाड़ा ला जोड़िन, करिन देश ला ओहा एक।।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, राहय मिलके जम्मो संग।
मया प्रीत के वल्लभ चाहय, फीका झन होवय गा रंग।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

★ विषय - गुरु नानक देव ★
★ आल्हा छंद ★
गुरुवर नानक देव जयंती, हरय मनावव जी सब आज।
उँखर बताये रद्दा मा चल, मानवता के राखव लाज।।

महापुरुष हा जग ला दिन हे, सुग्घर सच्चा जानव ज्ञान।
भेद करव झन मनखे मन ले, होथे सब्बो एक समान।।

सत के रद्दा मा रेंगव सब, गुरु नानक जी दिन संदेश।
बगराके अंजोर ज्ञान के, अमर इहाँ होगिन दरवेश।।

धरम विरोधी मनखे मन के, विफल करिन हे उन षड्यंत्र।
जग वाला मन ला सुग्घर जी, ओमकार के दिन हे मंत्र।।

जब-जब भइया ये भुँइया मा, घड़ा पाप के भरथे जान।
संत जनम लेथे गा तब-तब, गुरुवर नानक देव समान।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

★ सुन ले पाकिस्तान ★
हमर साहसी सेना आघू, टिक नइ पावस पाकिस्तान।
बाँच सकस नइ पंगा लेके, अपन छोड़ दे गरब गुमान।।

हमर वीर मन अबड़ ठठाही, जब-जब तँय करबे परसान।
कार भोरहा मा तँय रहिथस, सही गलत के कर पहिचान।।

अस्त्र-शस्त्र कतकोन रखे हे, हमर देश के सेना जान।
टकराबे ता मिट जाबे जी, अपन खोलके सुन तँय कान।।

आतंकी मन ला पोसत हस, जानत हावयँ सकल जहान।
जादा तँय इतराबे ता सुन, बंद करिंगे तोर दुकान।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

*संशोधित*
★ विषय - कोढ़िहा ★
★ आल्हा छंद ★
बइठे-बइठे घर मा खाथे, करय कोढ़िहा नइ कुछु काम।
एक हलाके पाना थकथे, अउ करथे दिनभर आराम।।

दिनभर टेलीविजन देखथे, ऊँचा करके बड़ आवाज।
घर मा रहिथे काम छोड़ के, एकोकन नइ आवय लाज।।

पइसा चार कमावय नइ अउ, बड़े-बड़े गा करथे गोठ।
टोर मुफत के रोटी भइया, बइठे-बइठे होथे पोठ।।

काम तियारे करय नहीं अउ, करे बहाना गा कतकोन।
अइसे मनखे हा धरती बर, बोझा होथे जी सिरतोन।।

जेन कोढ़िहा मनखे होथे, अपन बुड़ो दे थे गा नाम।
सपना देखत रहि जाथे उन, कर पावय नइ ओ कुछु काम।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

★ विषय - मजदूर ★
★ आल्हा छंद ★
नवा बिहिनिया लाथे भइया, मिहनत करथे जे भरपूर।
अउ विकास के नदी बहाथे, कहिथे ओला जी मजदूर।।

कला-कुशल ओ अपन हाथ ले, रापां गैंती चला कुदाल।
जेन चीर परबत के छाती, पानी देथे तको निकाल।।

बन जाथे माटी हा सोना, जब-जब पड़थे ओकर हाथ।
पथरा मा भी फूल खिलादे, हिम्मत रखथे अतका साथ।।

नेंव उही रखथे मकान के, छत ला देथे सुग्घर ढाल।
मिहनत करके अबड़ रात दिन, जग ला रखथे ओ खुशहाल।।

नवा सुरुज मजदूर उगाके, फैला देथे गा उजियार।
मोल पछीना के ओकर जी, जानत हावय ये संसार।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

भाग - 2
★ विषय - मजदूर ★
★ आल्हा छंद ★
सादा जीवन अपन बिताथे, करय नहीं मजदूर गुमान।
मिहनत के रोटी खाथे गा, इही हरय ओकर पहिचान।।

सड़क बनाथे मनखे मन बर, पुल के देथे ओ सौगात।
अउ समाज ला खुश राखे बर, मिहनत करथे गा दिन-रात।।

सना जथे माटी मा तन हा, नइ राहय जी ओला ध्यान।
सोना चाँदी तांबा पीतल, निकालथे ओ खोद खदान।।

ताकत मा विस्वास करइया, कभू ग मानय नइ ओ हार।
प्यास मिटाये बर ओ सबके, बोहा देथे जल के धार।।

अपन पछीना बहा सींचथे, टिकरा बारी अउ खलिहान।
तभे किसनहा फसल काटथे, मूँग गँहू राहर अउ धान।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★

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