अरविंद सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

 अरविंद सवैया

(1)
नइ धीरज खोवय वीर उही कहलावत हे जग मा रख याद।
उठ रोज बिहान बुता करथे नइ होवन दे दिन ला बरबाद।
दुख भूल रथे खुश जीवन मा तब छू नइ पाय कभू अवसाद।
मन माफिक मंजिल पावत हे चिखथे जय के उन नीक सुवाद।।

(2)
लड़की मन ला लड़का जइसे घर बाहिर देवव गा अधिकार।
झन भेद रखौ लड़का लड़की मन मा उन ला सम देवव प्यार।।
घर मा मिलके सब साथ रहे नइ होवय गा तब तो तकरार।
जब मातु पिता लइका मन हा रहिथे खुश ओ असली परिवार।।

(3)
बिटिया मन मान बढ़ावत हें कुल के करहू झन गा अपमान।
अब नीक भविष्य बने बिटिया मनके सब देवत राहव ध्यान।।
दव छूट बनावय ओमन भी जग मा बढ़िया निज के पहिचान।
जब नाम कमा डरथें बिटिया मन ता करथे परिवार गुमान।।

(4)
सत के अचरा धरके चलबे नइ खावस जीवन मा तँय मात।
अब हे चलना सत के पथ मा तँय येकर जी करदे शुरुवात।।
कहिथे सत ओ पहली सहिथे बड़ गा तकलीफ भले दिन-रात।
जब आवत बेर सही तब होवत सुग्घर हे सुख के बरसात।।

(5)
मिलके रइहू सब साथ सदा अब आपस मा करहू झन जंग।
मिलके सब पर्व मनावव जी सब छोट बड़े मनखे मन संग।।
जग के सिधवा मनखे मन ला अब गा चिटको करहू झन तंग।
रखहू जग के परिवेश बने झन होवय येहर गा बदरंग।।

(6)
मन मा उमड़े जब भाव बने लिखबे कविता तब सुग्घर मीत।
जब पाठक वाह करे पढ़के तब लेखन के सत होवत जीत।।
मनखे मन के दिल छूवय गा अइसे रचबे कविता अउ गीत।
लिख सीख रहे कविता अइसे कर ले दुनिया बर काज पुनीत।।

(7)
बड़ पावन भारत भूमि हरे दुनिया भर मा बड़ हावय नाँव।
नँदिया तरिया बगिया वन ले भरपूर इहाँ कतको ठिन गाँव।।
बहते नित साफ हवा ह इहाँ पग मा मिलथे बड़ शीतल छाँव।
बड़ भारत देश महान हरे मँय येकर का अउ बात बताँव।।

(8)
सुख चैन गँवावत हे मनखे बड़ लालच मा पड़ देखव आज।
पइसा उन घात कमावत हे करके घटिया-घटिया बड़ काज।।
खुलके सब रिश्वत झोंकत हे बनगे लगथे अब खीक रिवाज।
मनखे तज लालच काज बने करही तब उन्नति आज समाज।।

(9)
नइ राहय एक जघा टिकके मन चंचल हे तँय जान मितान।
बस मा रखबे तँय हा मन ला नइ ते सहिबे बड़ गा नुकसान।।
मँय काहत हावँव गोठ बने तँय ओ रखबे सिरतोन धियान।
मन ला रखथे बस मा जउने बनथे मनखे उन एक महान।।

(10)
मन ले नित नाँव जपौ प्रभु के करथे उन हा बल बुद्धि प्रदान।
दुख ला हरथे सब भक्तन के अइसे भगवान हरे हनुमान।।
बड़ भक्त हरे प्रभु राम सिया अउ लक्ष्मण के जग मा पहिचान।
अउ दूसर हे नभमंडल मा बलवान कहाँ हनुमंत समान।।

(11)
जिनगी खुद के करथें बरबाद नशा करके मनखे मन आज।
तज काम बुता दिन-रात नशा धुन मा रहिथे नइ आवय लाज।।
सब छोड़ नशा बड़ सुग्घर जीतिन गा जिनगी करके कुछु काज।
खुश हो बड़ ओमन के बड़ इज्जत ले तब लेतिन नाँव समाज।।

(12)
सुन लौ बजरंगबली भगवान हरे शिवशंकर के अवतार।
प्रभु के भवसागर मा बुड़ जावव आज हरे दिन मंगलवार।।
छिन मा भय संकट भक्तन के हरथे रखथे उन शक्ति अपार।
दुख के हरता सुख देवइया हनुमान हरे जग पालनहार।।

(13)
रख नीक विचार सदा मन मा तँय छोड़ सगा सब खीक विचार।
बनके जनसेवक ये जग मा जिनगी बड़ सुग्घर तोर गुजार।।
अढ़हा पन के अँधियार मिटा जग मा तँय लान बने उजियार।
अब सुग्घर फर्ज निभा मनखे बनके तँय नेक समाज सुधार।।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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