सुखी सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

सुखी सवैया

(१)
मन मा सब नीक विचार रखौ अउ नौ दिन के नवरात्र मनावव।
जग के जननी मइया दुरगा खुश होवय गा जयकार लगावव।।
मइया बहुला सबके सुनथे सुर ताल लगा उन के जस गावव।
अउ नौ दिन के उवपास रखौ मन वांछित सुग्घर गा फल पावव।।
(२)
खुद दीपक हा जलके भइया जइसे उजियार इहाँ बगरावत।
अइसे पर के हित जीवन ला अब जीवय सुग्घर बात सिखावत।।
पर ला सुख देय इहाँ मिलथे सत मा सुख गा बड़ पाठ पढ़ावत।
लड़बे तब जीत इहाँ मिलथे जनमानस अंतस भाव जगावत।।
(३)
नदिया नरवा झरना तरिया सबला तँय हाबच आज भुलावत।
बखरी भररी टिकरा अउ खेतन के सुरता नइ हावय आवत।।
बर पीपर आम उदास खडें सब पेड़ इहाँ बिन तोर सुखावत।
सब छोड़ इहें परदेश गये हस वापिस आ अब गाँव बलावत।।
(४)
बिटिया मन हा अब ई रिकशा बस मोटर ट्रेन जहाज चलावत।
अब डॉक्टर नर्स घला बनके मनखे मन के उन प्रान बचावत।।
बनके जज पोलिस लॉयर जी जन मानस ला अब न्याय दिलावत।
बन सैनिक गा हथियार उठावत दुश्मन ला अब धूल चँटावत।।
(५)
पढ़के लिखके बिटिया मन हा कर काम बने अब नाम कमावत।
अपने कर ले अब देखव गा अपने कइसे तकदीर बनावत।।
दुनिया कहिथे बड़ नाजुक हें तब ले घर के उन बोझ उठावत।
जग मा निज मातु पिता मन के बिटिया मन देखव मान बढ़ावत।।
(६)
अब राखव उज्जर गाँव गली कचरा वचरा झन गा बगरावव।
हर बैद्य चिकित्सक बात इही कहिथें बढ़िया परिवेश बनावव।।
घर आँगन मा तुलसी बिरवा अउ रोग निवारक नीम लगावव।
अब स्वस्थ रहे सब लोगन गा अइसे बढ़िया कर काम दिखावव।।
(७)
झन दोष गिनावत राहव दूसर के खुद के व्यवहार सुधारव।
मन मा अब नीक विचार सदा रख अंतस आँगन रोज बुहारव।।
दर आय गरीब दुखी मनखे सहयोग करौ झन गा दुतकारव।
बनके जनसेवक एक इहाँ सुख मा बड़ जीवन आप गुजारव।।
(८)
पल बीत जथे नइ ओ लहुटे कुछु काम कभू कल मा झन छोड़व।
तज देवव आलस ला सुन लौ श्रम ले बड़ नीक नता अब जोड़व।।
बड़ आस लगाय रथे घर के मनखे मन आस कभू झन तोड़व।।
बस जीत मिले चलके अइसे बढ़िया रसता पग ला अब मोड़व।।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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