आभार सवैया (छत्तीसगढ़ी)- श्लेष चन्द्राकर

आभार सवैया

(1)
अभ्यास ले साधथे जे कला ला उही हा हरे एक सच्चा कलाकार।
सम्मान पाथे उही हा नहीं मानथे जेन हालात ले गा कभू हार।
जेहा बनाथे कला ले जघा खास संसार मा नीक पाथे उही प्यार।
जानौ लगातार अभ्यास हे कामयाबी इहाँ पाय के एक आधार।
(2)
तैं हा इहाँ ज्ञान के दीयना बार के मीत फैला सबो ओर अंजोर।
अज्ञान के बीतही रात कारी तहाँ नीक आही इहाँ गा नवा भोर।
ईमान हा हालही गा नहीं रेंग तैं हा सदा साँच के थाम के डोर।
अच्छा इहाँ काम अंजाम देना हवै तैं इहीं बात मा दे सदा जोर।
(3)
मीठा सदा बोलके मारथें गा लबारी सबो राज नेता इहाँ जान।
तोला सदा लूटही ओ सबो गा इहाँ मानके जोजवा और नादान।
तैं सोच के रेंगबे गा कभू मूँद के आँख ला बात लेबे नहीं मान।
तोला बचाना हवै गा स्वयं के इहाँ जान अस्तित्व ला बात ले ठान।
(4)
जे राखथे सोच अच्छा सदा ओकरे होत संसार मा मान सम्मान।
ये गोठ हा सत्य आये इहाँ चैन पाये नहीं गा कभू नीच इंसान।
ज्ञानी इहाँ बोलथे बात ओला सुनौ ध्यान ले खोल के गा रखौ कान।
आथे सदा जिंदगी मा बने काम जाये नहीं गा कभू फालतू ज्ञान।
(5)
कुर्बान होये हवै देश के नाम ले ओ सबो लोग ला गा रखौ याद।
ऐसे सबो लोग सेती हवै गा भुलावौ नहीं आज ये देश आबाद।
छोड़ौ लड़ाई रहौ एक होके सदा और जारी रखौ प्रेम संवाद।
राखौ सदा ये हरा बाग़ ला प्रेम विश्वास के डार के नीक गा खाद।
(6)
संक्रांति के पर्व मा नीक मेला भराथे इहाँ गाँव देहात मा मीत।
देथे दिखाई उहाँ भीड़ चारों मुड़ा और होथे बड़ा शोर संगीत।
माहौल अच्छा रथे गा उहाँ जे सबो लोग के लेत हे चित्त ला जीत।
मेला मिलाथे सबो लोग ला और अच्छा सिखाथे इहाँ बाँटना प्रीत।
(7)
मेला भराथे जिंहा ओ जघा नीक होथे खुशी के रथे गा उहाँ वास।
लेथे मजा घूम के गाँव देहात के लोग आथें सबो ला बने रास।
मेला इहाँ घूमथे ओ बिसोथे बरा सेव बूँदी जलेबी खई खास।
मेला प्रथा ला बचाये रखौ गाँव के लोग के घात येमा जुड़े आस।।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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