दोहे श्लेष के...
(१)
राजनीति में आ गये, अब तो धोखेबाज।
गिरी हुई हरकत करें, हासिल करने ताज।।
(२)
धोखेबाज उठा रहे, जीवन का आनंद।
आम जनों की हो रही, सुविधाएं सब बंद।।
विषय - जनाधार
(१)
जनाधार मिलता नहीं, आसानी से मीत।
पड़ते पापड़ बेलने, तब मिलती है जीत।।
(२)
जो भी रखते है यहाँ, जनाधार का मान।
देती अगली बार भी, जनता उसपर ध्यान।।
(३)
जनता से पंगा लिया, फिर तो समझो हार।
जनाधार यदि चाहिए, तो व्यवहार सुधार।।
(१)
अगर दिखावा कर रहे, नहीं धुलेंगे पाप।
निर्मल मन से कीजिए, ईश नाम का जाप।।
(२)
फूल चढ़ाने के लिए, कहते कब भगवान।
यही बहुत है हम करे, मन से उनका ध्यान।।
(३)
द्वेष कपट छल का भरा, यदि मन में है भाव।
लाख पुकारो ईश को, नहीं भरेंगे घाव।।
जाड़ा/ठंड/शीत पर दोहे...
बैठी लंगर डालकर, शीत बड़ी है ढीठ।
हाल बुरा उसका किया, जिसपर पड़ी कुदीठ।।
जाड़े के सम्मुख हुए, सूर्यदेव लाचार।
रोक रहे हैं कोहरे, किरणों की रफ्तार।।
पाला गिरने से हुआ, मनहर दृश्य अतीव।
किंतु निहारें किस तरह, छुपे बिलों में जीव।।
सता रही है शीत क्यों, बैरन बनकर आज।
फुरसत में मिल बैठकर, सोचें सकल समाज।।
जाड़े के दरबार में, फरियादी हैं लोग।
पूछ रहे कब ला रहे, राहत का शुभ-योग।।
हर गरीब को है कहाँ, कंबल यहाँ नसीब।
उसपर चालें चल रही, देखो ठंड अजीब।।
शीत बहुत इतरा रही, आया जब से राज।
कहाँ गई संवेदना, पूछें मनुज समाज।।
१/०८/२०१६दोहा..
पढ़ लिखकर पप्पू कई, हो जाते हैं पास।
बेचारे फिर बाद में, छीला करते घास।।
दोहे... ०३/१२/१६
मिट जाते है साथियों, रोग कई गंभीर।
सुबह टहलने जाइये, रहता स्वस्थ शरीर।।
ढाले मीत शरीर को, मौसम के अनुरूप।
शीत काल में सेंकिए, सुबह कुनकुनी धूप।।
कालाधन उजला किया, बेच दिया ईमान |
कैसे-कैसे देश में, रहते हैं इंसान ||
निर्णय था जिसके लिए, करते वही फरेब |
साँठगाँठ करके भरे, देखो अपनी जेब ||
१८/१२/२०१८
धर्म ग्रंथ कहते सभी, पेड़ों में भगवान।
फिर क्यों इनको काटता, रहता है इंसान।।
लता पेड़ पौधे सभी, धरती का श्रृंगार।
इनकी रक्षा के लिए, रहना सब तैयार।।
जुल्फ / बाल पर दोहे... 18/11/2016
उलझे-उलझे बाल है, सुलझाओ मनमीत।
तेरे उजले रूप पर, लिखना है अब गीत।।
रेशम जैसे बाल है, चाँदी जैसा रूप।
तेरे कारण रात में, निकली देखो धूप।।
काले-काले बाल है, गोरे-गोरे गाल।
तेरा यौवन देख कर, होते सभी निहाल।।
तेरी जुल्फ़े देख कर, मन में खिले प्रसून।
इसके साये के तले, मिलता मुझे सुकून।।
दोहे... 16/11/2016
सदा समर्पित भाव से, करते रहना काम।
देर सवेरे ही सही, निकलेगा परिणाम।।
डरने वाला तो सदा, होता है नाकाम।
लड़ता जो हालात से, मिलता उसे मुकाम।।
दोहे...10/11/2016
जाति धर्म के नाम पर, लड़ना छोड़ो मीत |
भेद भाव सब भूलकर, रखना सबसे प्रीत ||
हो जिससे सबका भला, करना ऐसे कर्म।
मानवता का धर्म ही, होता सच्चा धर्म।।
जाति धर्म के नाम पर, लड़ना है बेकार।
मेल जोल सबसे रखो, यह जीवन का सार।।
धर्म परायण लोग ही, पाते जग में मान।
पर सेवा उपकार से, बनते लोग महान।
सत्य मार्ग पर चल करो, लोगों का कल्याण।
धर्म यही सबसे बड़ा, कहते वेद पुराण।।
नहीं बदल सकती कभी, नियति हमारी पाक।
तुम तो अपनी सोच लो, रखो बचाकर नाक।।
बाँटों जग में प्रेम तुम, मत फैलाओ द्वेष।
लोगों के दिल में बसो, करके काज विशेष।।
पढ़ते हिन्दी व्याकरण, अर्जित करने अंक।
किन्तु चाहते बोलना, अंग्रेजी निःशंक।।
शिक्षकगण देते सदा, भले-बुरे का ज्ञान।
उनकी बातों को सुने, खूब लगाकर ध्यान।।
निर्माता हैं राष्ट्र के, शिक्षक सभी सुजान।
शिष्यों को देते सदा, राष्ट्र-भक्ति का ज्ञान।।
गुरुवर विश्वामित्र ने, दिया राम को ज्ञान।
आर्यवर्त का जो बना, राजा एक महान।।
घनानंद को मात दे, तोड़ा गर्व गुमान।
उत्तम गुरु चाणक्य को, माने हिन्दुस्तान।।
सबको नहीं सुनाइए, अपने मन की पीर ।
हँसने वाले सँग हँसों, रहता स्वस्थ शरीर।।
जब कवि कविता में लिखे, अपने मन की पीर।
पढ़ने वाला भी सखे, होता बहुत अधीर ।।
० श्लेष चन्द्राकर ०
छूना है आकाश तो, छोड निराशा मीत।
गाना होगा अब तुझे, आशाओं के गीत।।
लूँ मैं जरा समेट अब, खुशियाँ बाँहें खोल।
जीवन का हर पल सखे, होता है अनमोल।।
अडियल टट्टू की तरह, करें नहीं व्यवहार।
नरमी रखें स्वभाव में, तब देंगे सब प्यार।।
हल कुछ अगर निकालना, तो यह युक्ति सटीक।
झगड़े को मिल बैठकर, सुलझाना ही ठीक।।
रहना मत बनकर बुरा, सदा लुटाना प्यार।
मानवता के धर्म का, करना खूब प्रचार।१।
अच्छे लोगों को सदा, मिलता सबका प्यार।
तजकर कलुषित भावना, रखिए विमल विचार।२।
कारण अपयश का बने, मन का कलुषित भाव।
रखिए अच्छी भावना, छोड़े सदा प्रभाव।३।
वादे करके तोड़ते, पहुँचाते आघात।
एतबार लायक नहीं, नेताओं की बात।१।
एतबार उसका करो, जो सच्चा इंसान।
प्यार लुटाये हो सदा, तजकर निज अभिमान।२।
एतबार करना नहीं, सुनकर मीठे बोल।
है कैसा इंसान वह, पहले नब्ज़ टटोल।३।
पता लगाना ही उचित, किसके मन में खोट।
एतबार जब टूटता, दिल पर लगती चोट।।
बतलाते निज कार्य को, पीट पीट कर ढोल।
नेता बगलें झांकते, जब खुल जाती पोल।१।
दुबले पतले थे मगर, साहस था भरपूर।
सत्य आचरण के लिए, बापू थे मशहूर।।
गांधी जी का स्वप्न था, छुआछूत हो बंद।
मिलजुलकर सब देश में, रहें लोग सानंद।।
पल पल मिलें चुनौतियाँ, कर स्वीकार सहर्ष।
लाता खुशियाँ एक दिन, जीवन में संघर्ष।।
ढूँढो तो मिलते नहीं, देने वाले साथ।
रखते हैं सब तो यहाँ, दुखती रग पे हाथ।।
छले गए हम लोग तो, हटा नहीं अँधियार।
कहो भला कैसे करें, तुम्हें प्रकट आभार।।
बदले अवसर देखकर, गिरगिट जैसे रंग।
कहलाते अब तो वहीं, नेता यहाँ दबंग।।
खूब निकालें रैलियाँ, करें सभाएँ आम।
यहीं रह गए आजकल, नेताओं के काम।।
जनता की चिंता नहीं, निपटे खुद का काम।
नेताओं में आजकल, यहीं धारणा आम।।
जाते-जाते और भी, बढ़ी ठंड इसबार।
बाँट रही है ठंड ज्यों, बोनस का उपहार।।
शीत लहर तो देह पर, डाले बुरा प्रभाव।
इससे बचने के लिए, तापें मीत अलाव।।
तुझपर जो भी बीतती, लिख कविता में भ्रात।
दुनिया कुछ सीखें सबक, जाहिर कर जज्बात।।
बच्चों पर देती सदा, खुद से ज्यादा ध्यान।
माँ अपनी तकलीफ को, करती नहीं बयान।।
होता मीत चुनाव तो, हार-जीत का खेल।
होता कोई पास तो, होता कोई फेल।।
सीख हार स्वीकारना, अच्छी है यह बात।
नये सिरे से अब तुझे, करनी है शुरुआत।।
हार मिली तो क्या हुआ, होना नहीं उदास।
यदि जीतना भविष्य में, तो कर पुनः प्रयास।।
जल अमोल है ग्रीष्म में, याद रखें श्रीमान।
बहे नहीं यह व्यर्थ ही, देना इसपर ध्यान।।
योगदान अति श्रेष्ठ है, करता तम का नाश।
जलता है निश्वार्थ नित, देने ‛दीप' प्रकाश।।
मिलकर लड़ते तिमिर से, दीपक बाती तेल।
प्रातः होने तक चले, हार जीत का खेल।।
बनना है सबके लिए, तुमको अगर मिसाल।
तो रखना आकाश सा, अपना हृदय विशाल।।
प्रस्तुत छोटों के लिए, करें आप आदर्श।
चलकर फिर सद्मार्ग पर, छू पाएं वे अर्श।।
● हमारे वायुसेना के एयर स्ट्राइक पर दोहे ●
पाकिस्तानी रह गए, भौचक्के फिर आज।
हमला उनपर यूँ हुआ, जैसे गिरती गाज।।
★
वायु सैनिकों ने किया, चुकता सभी हिसाब।
दुश्मन के जब माँद में, घुसकर दिया जवाब।।
★
वायु सैनिकों ने सखे, ऐसा किया कमाल।
सरपरस्त आतंक का, पाक हुआ बेहाल।।
★
पाले कुत्तों पर बहुत, करता पाक घमंड।
एयर स्ट्राइक से मिला, आज उचित है दंड।।
★
युद्धक यान मिराज ने, दी है खुशी अपार।
बम की वर्षा कर किया, आतंकी संहार।।
🌹विश्व हिंदी दिवस पर दोहे🌹
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
सबको करना चाहिए, निज भाषा से प्रीत।
सहज सरस भाषा बड़ी, बोलें हिन्दी मीत।।
हिंदी सम भाषा नहीं, इस जग में श्रीमान।
करें नाज़ इस बात पर, सारा हिंदुस्तान।।
अनुपम हैं शब्दावली, लगे कर्णप्रिय बोल।
हिंदी मेरे देश की, भाषा है अनमोल।।
हिंदी जन संचार की, भाषा बनकर आज ।
दिल पर सबके कर रही, देखो कैसे राज ।।
बातों तक ही मत रहो, सीमित तुम श्रीमान ।
हिंदी के उत्थान में, दो निष्ठा से ध्यान ।।
🍁🍁 राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर दोहे 🍁🍁
कोई दे लालच अगर, कर देना इंकार।
मत को कभी न बेचना, यह तेरा अधिकार।।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
बिना डरे करना सदा, तू अपना मतदान।
तेरे हाथों में सखे, लोकतंत्र की शान।।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
जाति-धर्म की बातकर, उकसाऐंगे लोग।
करना सदा विवेक से, निज मत का उपयोग।।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
पेड़ पर आधारित दोहे
पेड़ हमारे मित्र हैं, इनका करें बचाव।
पानी का होगा नहीं, फिर तो कभी अभाव।।
धरती माता से अगर, करता सच्ची प्रीत।
पेड़ लगा पानी बचा, नेक कार्य यह मीत।।
तरुवर तो देते हमें, काष्ठ और फल फूल।
इन्हें काटना साथियो, बहुत बड़ी है भूल।।
प्राणवायु का स्रोत है, पेड़ यहाँ हर एक।
पेड़ काटना छोड़ दो, इनके लाभ अनेक।।
पेड़ बचाने के लिए, दिया नहीं यदि ध्यान।
सारी धरती एक दिन, होगी रेगिस्तान।।
‛विश्व कप क्रिकेट 2019' में खेल रहें पंद्रह सदस्यीय भारतीय टीम के खिलाड़ियों पर दोहे लिखने का प्रयास किया है...
सूझबूझ से खेलता, मारे तगडा शाट।
श्रेष्ठ खिलाड़ी टीम का, है कप्तान विराट।।
धोनी का बल्ला चले, लक्ष्य लगे आसान।
बल्लेबाजी आक्रमक, उसकी है पहचान।।
रोहित टिककर खेलता, चौकें छक्के मार।
उसके होते साथियो, शाट सभी दमदार।।
शिखर धवन रन ठोकता, होकर के बेफिक्र।
अच्छे बल्लेबाज में, होता उसका जिक्र।।
राहुल तो टैलेंट की, कहलाता है खान।
जब रहता मैदान में, रन बनते आसान।।
संकट मोचक टीम का, अनुभव की वो खान।
जीत दिलाकर छोड़ता, कार्तिक जब ले ठान।।
बालिंग-बेटिंग सब करें, अति उत्तम केदार।
काँधें पर अपने रखे, मध्यम क्रम का भार।।
हरफनमौला पांडया, खेले ताबड़तोड़।
देखें उसका खेल है, सचमुच में बेजोड़।।
काम विजय शंकर करें, दल के हित में नेक।
रन बनने देता नहीं, लेता कैच अनेक।।
अपने फिरकी बाल से, लेता बहुत विकेट।
खूब जडेजा खेलता, देखो आज क्रिकेट।।
चतुराई से गेंद सब, चहल डालता मीत।
उसका जादू जब चले, होती निश्चित जीत।।
गेंदबाज कुलदीप की, गेंदें होती खास।
लेने सदा विकेट वह, करता अथक प्रयास।।
बालर मोहम्मद शमी, बाल डालकर तेज।
अच्छे बल्लेबाज को, वापस देता भेज।।
बढ़िया यार्कर डालता, गेंदबाज बुमराह।
विजय दिलाकर टीम की, करता पूरी चाह।।
भुवनेश्वर की गेंद में, रन बनते कम मीत।
गेंदें डाल किफ़ायती, लेता है दिल जीत।।
साँप पर दोहे...
सुई भाँति ही साँप का, होता है विषदंत।
मानव को जब काटता, फैले जहर तुरंत।१।
जा सकती है जान भी, झाड़फूंक बेकार।
साँप काटने पर तुरत, करवाना उपचार।२।
बहरा होता साँप तो, देख डोलता बीन।
नाचे धुन में बीन के, कहते हैं मतिहीन।३।
कभी साँप को दुग्ध का, मत करवाना पान।
सूजे इससे फेफड़ा, जाती उसकी जान।४।
इच्छाधारी सर्प की, बात अंधविश्वास।
मिलता नहीं प्रमाण कुछ, है कोरी बकवास ।५।
होती बच्चों साँप की, याददाश्त कमजोर।
लेगा बदला किस तरह, ज़रा कीजिए गौर।६।
साँप कृषक का मित्र है, बिना वजह मत मार।
फसलों की रक्षा करें, चुहे कीट से यार।।
होते मणिधर नाग है, कहते कथा पुराण।
मिला नहीं पर आजतक, इसका ठोस प्रमाण।७।
विषय - हड़ताल
पकड़ाते है झुनझुना, हमको तो हर बार।
कुछ लोगों पर ही लगे, मेहरबान सरकार।।
बरसों से हम झेलते, आए है नुकसान।
समानुपातिक दीजिए, वेतन अब श्रीमान।।
धोखा और फरेब के, हमतो हुए शिकार।
अब तो लड़कर साथियों, लेना है अधिकार।।
अपनों ने लूटा हमें, और बने अंजान।
न्याय मिलेगा एक दिन, देख रहा भगवान।।
बैठ गए हैं बेचकर, नेतागण क्या लाज।
अगुआ बनते थे बडे, कहाँ छुप गए आज।।
० दशहरा पर्व पर दोहे ०
विजयादशमी पर्व से, मिलता यह संदेश।
बनता कारण हार का, अहंकार आवेश।१।
निजहित सुख को त्याग के, रखा प्रजा का ध्यान।
कथा हमें प्रभु राम की, देती अनुपम ज्ञान।२।
पितु दशरथ की बात रख, गए राम वनवास।
धर्म कर्म की राह पर, चले प्रभो सायास।३।
रावण था ज्ञानी बहुत, ले डूबा अभिमान।
रखो चरित्र कृतित्व को, प्रभुवर राम समान।४।
विजय धर्म की ही यहाँ, होती है हर बार।
रामचरित मानस पढ़ें, यही मिलेगा सार।५।
राम बाण के सामने, रावण था लाचार।
जीत हुई थी सत्य की, गई बुराई हार।६।
० श्लेष चन्द्राकर ०
★ शिक्षक दिवस पर दोहे ★
शिक्षकगण देते सदा, भले-बुरे का ज्ञान।
उनकी बातों को सुने, खूब लगाकर ध्यान।।
निर्माता हैं राष्ट्र के, शिक्षक सभी सुजान।
शिष्यों को देते सदा, राष्ट्र-भक्ति का ज्ञान।।
गुरुवर विश्वामित्र ने, दिया राम को ज्ञान।
आर्यवर्त का जो बना, राजा एक महान।।
घनानंद को मात दे, तोड़ा गर्व गुमान।
उत्तम गुरु चाणक्य को, माने हिन्दुस्तान।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
धारा 370, 35A खल्लास...
लिया साहसिक फैसला, मोदी जी ने आज।
दो धाराएं खत्म कर, श्रेष्ठ किया है काज।।
सच्चा वतनपरस्त ही, लेता निर्णय खास।
अब जम्मू कश्मीर का, होगा बहुत विकास।।
सही मायने में हुआ, अब भारत आजाद।
करना होगा फिर सखे, घाटी को आबाद।।
रक्तपात का खेल अब, हो जायेगा बंद।
लोग रहेंगे देखना, घाटी पर सानंद।।
माँग पुरानी देश की, पूर्ण हुई है आज।
हिंद निवासी कर रहे, इस निर्णय पर नाज।।
🌺 श्लेष चन्द्राकर 🌺
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर दोहे...
धनपत राय कहानियाँ, लिखते थे दमदार।
हिन्दी उर्दू में रहा, उनका सम अधिकार।।
प्रेमचंद साहित्य के, गाथाकार विराट।
कहते उनको इसलिए, लोग कथा सम्राट।।
उपन्यास पढ़िए गबन, कर्मभूमि वरदान।
आम आदमी की व्यथा, कहता है गोदान।।
आते धनपत राय के, उपन्यास जब याद।
अंतस में है गूँजते, पात्रों के संवाद।।
प्रेमचंद की लेखनी, चलती थी निर्भीक।
सामाजिक पाखंड पर, करते वार सटीक।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
महासमुंद(छत्तीसगढ़)
दद्दा कहते थे सभी, ध्यानचंद था नाम।
हाॅकी के सरताज थे, करते सभी सलाम।।
हाॅकी में जादूगरी, थी उनकी पहचान।
दद्दा को कहते सभी, हाॅकी का भगवान।।
भूल गया था धर्म वह, करता पापाचार।
तभी किया श्री राम ने, रावण का संहार।।
जीवन के संघर्ष को, समझ रहा क्यों व्यर्थ।
दुख सहता वह जानता, सच्चे सुख का अर्थ।।
खाली पीली बैठ कर, गँवा रहा क्यों व्यर्थ।
हर इक पल में है छुपा, इस जीवन का अर्थ।।
बोझ समझना भूल है, करो बात पर गौर।
बेटी से घर की खुशी, बढ़ जाती है और।।
बेटी दे माँ-बाप का, अंत समय तक साथ।
जीवन में होकर सफल, ऊंचा करती माथ।।
माना मंजिल दूर है, पर मत छोड़ो आस।
पाने की खातिर करो, मुमकिन सभी प्रयास।।
इम्तिहान की है घड़ी, कर खुद को तैयार।
सखे बैठना चैन से, लेकर अब अधिकार।।
सदा समर्पित भाव से, करते रहना काम।
देर सवेरे ही सही, निकलेगा परिणाम।।
डरने वाला तो सदा, .होता है नाकाम।
लड़ता जो हालात से, मिलता उसे मुकाम।।
राजनीति है आज की, बापू के विपरीत।
पूरे होंगें किस तरह, उनके सपने मीत।।
गांधी जी के स्वप्न को, यदि करना साकार।
अपनाने होंगे हमें, उनके सभी विचार।।
बोल-चाल में कीजिए, हिन्दी का उपयोग।
हिन्दी के उत्थान का, तभी बनेगा योग।।
नव पीढ़ी देने लगी, अंग्रेजी पर ध्यान।
इस कारण होने लगा, हिन्दी का नुकसान।।
कचरा तो है साथियों, फैलाता दुर्गंध।
खाद बनाकर कीजिए, इसका उचित प्रबंध।।
उत्तम कचरा खाद है, समझे इसको लोग।
जैविक खेती के लिए, कर सकते उपयोग।।
नोंक-झोंक में ही समय, कर देते बर्बाद।
खाक करेंगे देश को, ये नेता आबाद।।
ख्वाब दिखाते हैं सभी, देते एक बयान।
सब दल एक समान है, किस पर दे हम ध्यान।।
फूलों को मत तोड़िए, ये उपवन की शान।
पुलकित होता देख कर, इनको हर इंसान।।
इतराते हैं बाग में, तितली अरु मकरंद।
रंग बिरंगे फूल तो, दे सबको आनंद।।
चाहे जितना खेलिये, लुका छिपी का खेल।
किया अगर अपराध है, जाना होगा जेल।।
खेल खेल में सीखते, बच्चें अक्सर मीत।
उन्हें सिखाने के लिए, अपनाना यह रीत।।
डसते रहते जो सदा, और उगलते आग।
इंसानों के रूप में, रहते हैं कुछ नाग।।
कहते रहते है सदा, फुरसत किसके पास।
बन बैठे हैं लोग अब, सुविधाओं के दास।।
राजनीति में बेवफा, लोगों की भरमार।
इसीलिए होते नही, सपने अब साकार।।
होती रहती आजकल, बेमौसम बरसात।
ठीक नही संकेत यह, ठीक नही यह बात।।
माता वीणा वादिनी, हम बच्चे नादान।
जग में जीना सीख ले, बाँटो ऐसा ज्ञान।।
मातु शारदे कीजिए, हम पर यह उपकार।
जग में शुचिता ज्ञान से, मेट सके अँधियार।।
भाषणबाजी छोड़ कर, करते तनिक प्रयास।
सच्चे अर्थो में यहाँ, होता तभी विकास।।
देश वासियों के लिए, उपजाता है धान।
फिर भी अपने देश में, क्यों बदहाल किसान।।
श्रमिक समर्पित भाव से, करता अपना काम।
किन्तु उसे मिलता नही, इसका वाज़िब दाम।।
सुख की रोटी के लिए, श्रम करता भरपूर।
फिर भी सदा अभाव में, जीता है मजदूर।।
बच्चों में यह डालिए, बचपन से संस्कार।
नारी को सम्मान दे, करे उचित व्यवहार।।
बुरी नज़र मत डालना, करना मत अपमान।
पर नारी को मानना, माता बहन समान।।
बच्चों में यह डालिए, बचपन से संस्कार।
नारी को सम्मान दे, करे उचित व्यवहार।।
बुरी नज़र मत डालना, करना मत अपमान।
पर नारी को मानना, माता बहन समान।।
पैसा ए टी एम में, ...सबका होता यार।
जाति-धर्म को बीच में, लाना है बेकार।।
नेताओं की बात पर, अब करना मत गौर।
राजनीति का साथियों, ये है घटिया दौर।।
डूबे भष्टाचार में, आजादी के बाद।
वही लोग आते नजर, यहाँ आज आबाद।।
हमें गोद में पालती, देती है जल अन्न।
मातृभूमि से प्यार कर, रखती सदा प्रसन्न।।
हमें चुकाना है सखे, मातृभूमि का कर्ज।
रखना इसकी लाज को, अपना है ये फर्ज।।
टूटे जब उम्मीद तो, लगती दिल पर चोट।
सोच समझकर दीजिए, नेताओ को वोट।।
आशाए जिन पर टिकी, निकले वो गद्दार।
होंगे कैसे बोलिए, सपने अब साकार।।
नैतिकता के लोप का, पड़ने लगा प्रभाव।
गायब होता जा रहा, अब तो आदरभाव।।
लालच में अंधे हुए, देखो कितने आज।
संग्रह करके बेचते, दुगुने भाव अनाज।।
खर्च अधिक है आजकल, आमदनी से यार।
झेल रहे है लोग अब, महँगाई की मार।।
थोड़ी सी खुशियाँ मिले, दुख का है अंबार।
जीवन क्या है आज तक, समझा किसने यार।।
आओ मिलजुलकर करें, मित्रों चलो प्रयास।
मुक्त प्रदूषण से रहे, धरती अपनी खास।।
दुनिया के हित के लिए, उत्तम यही विकल्प।
पर्यावरण बचाइए, लेकर नव संकल्प।।
लोगों के पाखंड से, थे वे बहुत अधीर।
दुनिया से कहकर गए, सच्ची बात कबीर।।
बातें दास कबीर की, प्रासंगिक है आज।
सीखा उनसे कुछ नहीं, बदला कहाँ समाज।।
करते सभ्य समाज में, कैसे आज विरोध।
बेजुबान को मार कर, लेते अब प्रतिशोध।।
भूल गया इंसानियत, रखता नीच विचार।
हिंसक पशुओं सा करे, मानव अब व्यवहार।।
🌸 श्लेष चन्द्राकर 🌸
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