कुण्डलिया - श्लेष चन्द्राकर
(1)
अज्ञानी करने लगे, जग का बंटाधार।
आओ माता शारदे, बनकर तारणहार।।
बनकर तारणहार, ज्ञान का दीप जलाओ।
सही गलत का भेद, मातु इनको बतलाओ।।
रहे प्यार से लोग, छोड़ अपनी मनमानी।
पाकर माते ज्ञान, आपसे ये अज्ञानी।।
(2)
परिवर्तन जलवायु में, खतरे का संकेत।
रहना होगा अब हमें, मित्रों सदा सचेत।।
मित्रों सदा सचेत, रहेंगे तभी बचेंगे।
होगा महाविनाश, नही हम गर सुधरेंगे।।
पेड़ लगाए खूब, करें जल का संवर्धन।
तभी सकेंगे रोक, प्रकृति में यह परिवर्तन।।
(3)
असमय ही अब सूखने, लगे नदी अरु ताल।
अब तो बढ़ता जा रहा, तापमान हर साल।।
तापमान हर साल, लगा धरती का बढ़ने।
पिघल रहें ग्लेशियर, यही मिलता है पढ़ने।।
वर्षा का जल श्लेष, अगर हम करते संचय।
नदी जलाशय झील, सूखते कैसे असमय।।
(4)
काटो मत तुम पेड़ अब, ये हैं अपने मीत।
इनके साये के तले, जीवन करो व्यतीत।।
जीवन करो व्यतीत, हवाऐं शीतल लेकर।
पेड़ों का अहसान, चुकाओं पानी देकर।।
मानों मेरी बात, स्वस्थ नित पौधे बाँटो।
बोलों सबसे मीत, लगाओ पेड़ न काटो।।
(5)
बरगद पीपल नीम की, ठंडी-ठंडी छाँव।
याद बहुत आता मुझे, अपना प्यारा गाँव।
अपना प्यारा गाँव, जहाँ बहती है नदिया।
रंग-बिरंगे फूल, लताओ वाली बगिया।।
हरियाली चहुँ-ओर, हवाए चलती शीतल।
सदा रहेंगे याद, गाँव के बरगद पीपल।।
(6)
रहते वादे भूलकर, सत्ता सुख में लीन।
नेता होते एक सब, किस पर करें यकीन।।
किसपे करें यकीन, सभी हैं देते धोखा।
वे सब अपना काम, नहीं करते हैं चोखा।।
कहे 'श्लेष' कविराय, कहाँ करते जो कहते।
नेता फ़कत बयान, यहाँ हैं देते रहते।।
(7)
भाई-चारा भूल कर, लड़ते रहते लोग।
बढ़ने लगा समाज में, जाति-पाँति का रोग।।
जाति-पाँति का रोग, मिटाना बहुत जरूरी।
भेदभाव हो दूर, कीजिए कोशिश पूरी।।
कहे ‘श्लेष’ कविराय, हँसेगा ये जग सारा।
अगर लड़ेंगे लोग, भुलाकर भाई-चारा।।
(8)
होता सच्चा मीत वह, जो देता है साथ।
बुरे वक्त में भी कभी, नही छोडता हाथ।।
नही छोडता हाथ, हमेशा साथ निभाता।
संकट में हर बार, सामने पहले आता।।
सुख-दुख का हो दौर, संग में हँसता रोता।
करता नही फरेब, मीत जो सच्चा होता।।
(9)
आना मत तुम लोभ में, करना गहन विचार।
सम्मुख अगर चुनाव हो, चुननी हो सरकार।।
चुननी हो सरकार, देशहित कार्य करे जो।
निर्णय लेने खास, तनिक भी नहीं डरे जो।।
लोकतंत्र हर हाल, हमें है मित्र बचाना।
जब करना मतदान, प्रलोभन में मत आना।।
(10)
करना अब मतदान तुम, हो करके निर्भीक।
रहना उसके पक्ष में, जो मानुष हो ठीक।।
जो मानुष हो ठीक, उसी को मीत जिताना।
लोकतंत्र का पर्व, गर्व से हमें मनाना।।
कहे ‛श्लेष' कविराय, किसी से तू मत डरना।
निज मत का उपयोग, निडरता पूर्वक करना।।
(11)
साफ-सफाई पर हमें, देना होगा ध्यान।
निर्मलता से देश की, जग में हो पहचान।।
जग में हो पहचान, बनायें ऐसा भारत।
स्वस्थ स्वच्छ हो देश, लिखेगा नई इबारत।।
रखें स्वच्छ परिवेश, तभी देश की भलाई।
मिलजुलकर सब लोग, करें अब साफ-सफाई।।
(12)
सबको है सम्मान से, जीने का अधिकार।
पशुओं पर यूँ आप क्यों, करते अत्याचार।।
करते अत्याचार, मार कर उनको खाते।
सींग, दाँत अरु खाल, बेच कर अर्थ कमाते।।
कहे श्लेष कविराय, मानने वाला रब को।
पशु हो या इंसान, प्यार देता है सबको।।
(13)
सच्चाई से वह सदा, करता आया प्रीत।
लेखक जो भी देखता, लिखता है वह मीत।।
लिखता है वह मीत, सदा ही राह दिखाता।
क्या सच है क्या झूठ, बात यह सहज बताता।।
लिखता है वह लेख, सोच कर गहराई से।
करता है वह प्यार, कर्म से सच्चाई से।।
(14)
भाषा हिंदी देश की, आनबान अरु शान।
सकल जगत में आजकल, बना रही पहचान।।
बना रही पहचान, सभी को कर आकर्षित।
बढ़ा राष्ट्र का नाम, हमारा मन है हर्षित।।
कहे ‛श्लेष' कविराय, यही सबकी अभिलाषा।
करें निरंतर प्रगति, हमारी हिंदी भाषा।।
(15)
आजादी हमको मिली, संघर्षो के बाद।
वीर शहीदों को करें, आओ मिलकर याद।।
आओ मिलकर याद, करें वो अमर कहानी।
जिस पर करता नाज, यहाँ हर हिन्दुस्तानी।।
त्याग विदेशी वस्त्र, देश की पहनी खादी।
देकर अपनी जान, दिलाई थी आजादी।।
(16)
बच्चा रोता रात में, माता लेती थाम।
उसे सुनाती लोरियाँ, सोने तक अविराम।।
सोने तक अविराम, जागती रहती माता।
बच्चे खातिर रोज, मातु करती जगराता।।
निज बच्चों से प्रेम, सदा करती मॉ सच्चा।
पाकर मॉ की गोद, नहीं रोता है बच्चा।।
(17)
लड़ती है हालात से, देने खुशी अपार।
माँ बच्चों को पालती, सहकर कष्ट हजार।।
सहकर कष्ट हजार, बड़ा बच्चों को करती।
सर पर अपने बोझ, उठाने से कब डरती।।
बच्चों खातिर ‛श्लेष’, मातु भी जिद पर अड़ती।
सुधरे घर का हाल, सोच वो जग से लड़ती।।
(18)
क्यों वृद्धाश्रम भेज कर, करता है अपमान।
माँ ने दी है ज़िन्दगी, कर उसका सम्मान।।
कर उसका सम्मान, छोड़ दे मित्र सताना।
माँ बस चाहे प्यार, मांगती नहीं खजाना।।
तुझे पालने मित्र, किया था कठिन परिश्रम।
रहा उसी को भेज, आज तू क्यों वृद्धाश्रम।।
(19)
छोटी-मोटी बात पर, करना मत अपमान।
बेटी जैसी है बहू, देना उसको मान।।
देना उसको मान, कभी मत उसे सताना।
बनकर अच्छी सास, बहू पर प्यार लुटाना।।
उसे सिखाना आप, बनाना सब्जी रोटी।
गलती करना माफ, बहू की छोटी-मोटी।।
(20)
देकर नानक देव ने, मंत्र एक ओंकार।
जग में सच्चे ज्ञान का, फैलाया उजियार।।
फैलाया उजियार, ज्ञान का दीप जलाया।
मानवता का पाठ, सभी को यहाँ पढ़ाया।।
करें कुप्रथा दूर, प्रेरणा उनसे लेकर।
बसे हृदय में देव, धर्म की शिक्षा देकर।।
(21)
जग में मानव एक सब, सत्य धर्म का सार।
गुरुवर घासीदास ने, उत्तम दिया विचार।।
उत्तम दिया विचार, दिखाया सबको दर्पण।
जनसेवा में आप, करो निज जीवन अर्पण।।
एक रंग का खून, बहे हर मानव रग में।
बना पंथ सतनाम, हुए प्रसिद्ध गुरु जग में।।
(22)
हँसते-हँसते फूलने, लगता मेरा पेट।
टीवी चैनल में चले, जब भी यार डिबेट।।
जब भी यार डिबेट, चले तो नेता लड़ते।
बोले चाहे झूठ, बात पर अपनी अड़ते।।
जब भी नेता श्लेष, बात में अपनी फँसते।
देते दांत निपोर, देख कर यह हम हँसते।।
(23)
नटखट बालक रूप में, आते बहुत पसंद।
कान्हा कर शैतानियां, लेते है आनंद।।
लेते है आनंद, चुराकर घर-घर माखन।
ऐसा करते तंग, रुष्ट रहती सब ग्वालन।।
देते मटकी फोड़, गोपियाँ जाती पनघट।
नंद यशोदा लाल, श्याम है कितना नटखट।।
(24)
स्वागत में नववर्ष के, कविगण लिखिए छंद।
मिले ज्ञान के साथ ही, पाठक को आनंद।।
पाठक को आनंद, मिले वो रचना रचिए।
निहित भाव अनुरूप, सँवारे जीवन, लिखिए।।
नये साल का जश्न, मनाएँ परंपरागत।
नये विचारों संग, करे हर दिन का स्वागत।।
(25)
लड़ना है जी जान से, हक की खातिर मीत।
इक दिन तुम ये देखना, होगी अपनी जीत।।
होगी अपनी जीत, करेंगे दिल से कोशिश।
होगी फिर नाकाम, विरोधी दल की साजिश।।
कायम रख उम्मीद, जीत की राह पकड़ना।
अंत समय तक मित्र, पड़ेगा हमको लड़ना।।
(26)
तोड़ो मत विश्वास को, बनो न बुद्धि विहीन।
पुनः किसी को आप पर, होगा नही यकीन।।
होगा नही यकीन, दीजिए लाख सफाई।
होगा जो नुकसान, नही उसकी भरपाई।।
कहे श्लेष कविराय, ठगी का धंधा छोड़ो।
पूरे करने ख्वाब, किसी का दिल मत तोड़ो।।
(27)
पर की पीड़ा क्यों नही, समझ रहा इंसान।
अपनी खुशियों पर सदा, देता रहता ध्यान।।
देता रहता ध्यान, कहाँ से पैसा आये।
कहता रहता मीत, भाड में दुनिया जाये।।
कहे श्लेष कविराय, न समझो हमको कीड़ा।
वही नेक इंसान, हरे जो पर की पीड़ा।।
(28)
फैलाना जो चाहते, इस जग में अँधियार।
युवा वर्ग के हाथ में, देते वो हथियार।।
देते वो हथियार, दिशा से हैं भटकाते।
साध सकें निज स्वार्थ, काम ऐसा करवाते।।
कहे ‛श्लेष' नादान, उन्हें मत गले लगाना।
जो भी तम का राज, यहाँ चाहे फैलाना।।
(29)
गौरवशाली है बहुत, भारत का इतिहास।
सकल जगत में देश यह, माना जाता खास।।
माना जाता खास, यहाँ की फ़िजा निराली।
संस्कृति की प्राचीन, धरोहर वैभवशाली।।
पर्व मनाते लोग, ईद क्रिसमस दीवाली।
परंपरा हर एक, यहाँ की गौरवशाली।।
(30)
जाने किस उद्देश्य से, थामे है हथियार।
होते कायर नक्सली, करते छुपकर वार।।
करते छुपकर वार, रोज़ दहशत फैलाते।
आम जनों का रक्त, अकारण नित्य बहाते।।
बंद करो अब खेल, लगाओ इन्हें ठिकाने।
देख रहे क्या स्वप्न, इसे तो ईश्वर जाने।।
(31)
नक्सलवादी खेलतें, हर दिन खूनी खेल।
आज समय है आ गया, इनपर कसें नकेल।।
इनपर कसें नकेल, जल्द ही करें सफाया।
इन लोगों ने खूब, अकारण रक्त बहाया।।
वनवासी की छीन, रहे हैं ये आजादी।
जनता की है माँग, खत्म हो नक्सलवादी।।
(32)
कोना-कोना गाँव का, सुंदर होता मीत।
मनभावन लगता बहुत, लेता है मन जीत।।
लेता है मन जीत, यहाँ का तैर-तरीका।
जीने का लो देख, यहाँ का अलग सलीका।।
कहे श्लेष कविराय, यहाँ की मिट्टी सोना।
मिलता अति आनंद, देखकर कोना-कोना।।
(33)
माता अपने लाल से, करती अतिशय प्यार।
अपने आँचल में छुपा, देती खूब दुलार।।
देती खूब दुलार, हृदय से उसे लगाती।
रखकर अपने पास, उसे भयमुक्त कराती।।
मातु-पुत्र का ‛श्लेष', बहुत ही प्यारा नाता।
जान छिड़कती खूब, पुत्र पर अपने माता।।
(34)
आहत है पर्यावरण, देखो रहा कराह।
सोचें अब इसके लिए, किसको है परवाह।।
किसको है परवाह, नित्य अब घटते वन की।
कौन रहा है सोच, नीर के संवर्धन की।।
कोई करो उपाय, मिले जो इसको राहत।
पर्यावरण अतीव, आज है मित्रों आहत।।
(35)
प्रेमचंद जयंती पर...
शोषित वर्गो के लिए, लिखते धनपत राय।
कहते रहते वो सदा, इनका बनो सहाय।।
इनका बनो सहाय, जगह दो अपने दिल में।
लेंगे ये भी साँस, जगत की इस महफिल में।।
सुन्दर लगते बाग, पेड़ पौधे हो पोषित।
दुनिया लगे खराब, अगर हो मानव शोषित।।
(36)
आया गणेश चतुर्थी, यह पावन त्यौहार।
गणपति बप्पा मोरया, होगी जय जयकार।।
होगी जय जयकार, झूम कर सब गाएँग।
मंगलमूर्ति रूप, देखने सब आएँगे।।
तिलक का यह विचार, जिसे सबने अपनाया।
फिर से करने एक, गणेश चतुर्थी आया।।
(37)
होली पावन पर्व है, इस पर करते नाज।
संजोकर रखना हमें, अपने रीति रिवाज।।
अपने रीति रिवाज, भूलते वो पछताते।
कभी चैन से यार, नही जग में रह पाते।।
कहे श्लेष कविराय, मना दिल से हमजोली।
लेकर खुशी अपार, पुनः आई है होली।।
(38)
उत्तर है हर प्रश्न का, माता तेरे पास।
परामर्श देती उचित, नहीं तोड़ती आस।।
नहीं तोड़ती आस, उचित तुम राह दिखाती।
भले-बुरे का फर्क, हमें तुम सदा बताती।।
जब भी कठिन सवाल, हमें रख दे उलझाकर।
उलझन करती दूर, उचित तुम देकर उत्तर।।
(39)
बदला लेना जानते, अपने वीर जवान।
साजिश रचना छोड़ दो, सुधरो पाकिस्तान।।
सुधरो पाकिस्तान, नहीं तो पछताओगे।
आतंकियों समेत, विश्व से मिट जाओगे।।
पहुँचाओगे चोट, करेंगे हम भी हमला।
जाकर सीमा पार, जानते लेना बदला।।
(40)
भैया अपनी सोच में, अब लाओ बदलाव।
आतंकी इतरा रहें, देकर गहरा घाव।।
देकर गहरा घाव, छुपे हैं जाकर बिल में।
आक्रोशित है देश, आग भड़की हर दिल में।।
सैनिक हुए शहीद, व्यथित है धरती मैया।
लेना है प्रतिशोध, बड़ा निर्णय लो भैया।।
(41)
पावन होता है बहुत, श्रावण का यह मास।
भक्तों पर शिवनाथ की, कृपा बरसती खास।।
कृपा बरसती खास, करें शिव को जल अर्पण।
माँगें यह वरदान, रहे मन उजला दर्पण।।
कहे ‛श्लेष’ कविराय, महीना है मनभावन।
सावन में हमलोग, मनाते उत्सव पावन।।
(42)
नाले नदी उफान पर, भरे लबालब खेत ।
अच्छी बारिश हो रही, ये हैं शुभ संकेत ।।
ये हैं शुभ संकेत, कि फसलें अच्छी होंगी ।
जान गए इसबार, नहीं है बादल ढोंगी ।।
कहे 'श्लेष' कविराय, मेघ जब छाते काले ।
होती वर्षा खूब, उफनते नदियाँ नाले ।।
(43)
ढाया कुदरत ने सितम, हुए लोग हलकान।
आँधी अरु तूफान ने, किया बहुत नुक्सान।।
किया बहुत नुक्सान, किया कइयों को बेघर।
और बचाई जान, अनेको ने ले-देकर।।
मनमाना भी लाभ, सभी ने खूब कमाया।
इससे हो नाराज, कहर कुदरत ने ढाया।।
(44)
कहते हैं उस बात का, रहता नहीं प्रमाण।
नेतागण बस छोड़ते, भाषण वाला बाण।।
भाषण वाला बाण, छोड़ना उनको आता।
बने देश का आज, स्वयं वह भाग्य विधाता।।
हमने किया विकास, सदा ये कहते रहते।
हो जाते हैं मौन, आँकड़े जब सच कहते।।
(45)
रोटी खाना मुफ़्त की, उचित नहीं है मीत।
आलसपन को त्यागकर, गाओ श्रम के गीत।।
गाओ श्रम के गीत, कर्म से मुख मत मोड़ो।
समय गँवाना व्यर्थ, बुरी आदत है छोड़ो।।
कहे ‘श्लेष' कविराय, कहो मत किस्मत खोटी।
रहता सही दिमाग, खाव मेहनत की रोटी।।
(46)
फुर्सत मिलने की नहीं, भूले शिष्टाचार।
मोबाइल में आजकल, मना रहे त्यौहार।।
मना रहे त्यौहार, फेसबुक व्हाट्स अप में ।
काम धाम सब छोड़, लगे रहते गपशप में।।
मोबाइल उपयोग, कीजिए तभी जरूरत।
स्वजनों के सँग पर्व, मनाए निकाल फुर्सत।।
(47)
शौचालय बनवाइए, जगह देख उपयुक्त।
गाँव शहर कस्बा रहे, खुले शौच से मुक्त।।
खुले शौच से मुक्त, बनाना हमको भारत।
विश्व पटल पर देश, लिखेगा नई इबारत।।
स्वच्छ रहे घर-द्वार, स्वच्छ हो हर कार्यालय।
इसीलिए तो बहुत, जरूरी है शौचालय।।
(48)
माँ जगदम्बेे समझती, भक्तों के जज्ब़ात।
माँ की कर आराधना, नौ दिन अरु नौ रात।।
नौ दिन अरु नौ रात, शहर में रौनक रहती।
गांव गली हर छोर, भक्ति की गंगा बहती।।
मनोकामना पूर्ण, सभी की करती अम्बे।
सुनती करूण पुकार, दीन की माँ जगदम्बे।।
(49)
ऊपर वाले ने सुनी, कृषकों की फरियाद ।
बादल बरसा झूम के, बड़े दिनों के बाद ।।
बड़े दिनों के बाद, हुई है अच्छी बारिश ।
देना यूँही साथ, खुदा से यही गुज़ारिश ।।
कहे ‘श्लेष’ कविराय, भेज के बादल काले ।
सबको किया निहाल, आपने ऊपर वाले ।।
(50)
सम्मुख देख चुनाव है, गियर लगाते टाॅप।
और थमाते है हमें, नेता लालीपाॅप।।
नेता लालीपाॅप, थमाकर काम चलाते।
किए वायदे पूर्ण, आँकडों में दर्शाते।।
कहे ‘श्लेष’ कविराय, बाँटते नेता सुख-दुख।
साल चुनावी देख, हमारे आते सम्मुख।।
(51)
मिलता गुरु सानिध्य में, सकल जगत का ज्ञान।
पढ़ना-लिखना सीखते, बनते हैं गुणवान )।।
बनते हैं गुणवान, जगत में नाम कमाते।
मात-पिता का मान, देश की शान बढ़ाते।।
माली सींचे बाग, पुष्प ये तब ही खिलता।
गुरुवर देते सीख, ज्ञान तब हमको मिलता।।
(52)
देते यदि सरकार को, सभी लोग सहयोग।
नोटों के बदलाव का, होता सफल प्रयोग।।
होता सफल प्रयोग, स्वयं का नोट बदलते।
लालच करना छोड़, बताऍ पथ पर चलते।।
कालेधन पर श्लेष, नहीं बँटवारा लेते।
सच्चे दिल से साथ, नोटबंदी में देते।।
(53)
लड़ने की हालात से, कुव्वत जिसके पास।
लेकर निर्णय साहसिक, बन जाता वह खास।।
बन जाता वह खास, सभी के मन को भाता।
लिखकर नव इतिहास, अलग पहचान बनाता।।
भूल पराजय ‘श्लेष’, विजय की राह पकड़ने।
छोटे-छोटे युद्ध, पड़ेंगे तुमको लड़ने।।
(54)
सूखे के हालात है, कहीं-कहीं पर यार।
और कहीं बरसात भी, हुई मूसलाधार।।
हुई मूसलाधार, तबाही कहीं मचाये।
बो कर अपना खेत, कृषक रोये पछताये।।
होंगे कुछ आबाद, रहेंगे कुछ फिर भूखे।
कहीं लबालब खेत, कहीं पर होंगे सूखे।।
(55)
रिश्वतखोरी बंद हो, होगा तभी विकास।
इसे रोकने के लिए, मिलकर करें प्रयास।।
मिलकर करें प्रयास, तभी हर काम बनेगा।
रिश्वत, रिश्वतखोर, कहाँ फिर मांग सकेगा।।
एक नहीं हम लोग, यही अपनी कमजोरी।
इसी वजह से 'श्लेष', बढ़ी है रिश्वतखोरी।।
(56)
फसल उगाता है कृषक, सह कर कष्ट तमाम।
जाता है जब बेचने, कम मिलता है दाम।।
कम मिलता है दाम, इसी से चिंतित रहता।
सर पर भारी कर्ज, उतारूँ कैसे कहता।।
कहे श्लेष कविराय, ठगा सा वह रह जाता।
रहता मन को मार, कृषक जो फसल उगाता।।
(57)
पछतायेगा एक दिन, अपनी भूल सुधार।
कर ले अच्छा काम तू, पर्यावरण सँवार।।
पर्यावरण सँवार, बचाकर कटते वन को।
नीर बचाने हेतु, सजग कर तू सब जन को।।
यहाँ प्रदूषण और, अगर अब फैलायेगा।
होगा महाविनाश, मनुज तू पछतायेगा।।
(58)
होती हालत इस तरह, सूँघ गया हो साँप।
ड्यूटी लगे चुनाव में, तो सब जाते काँप।।
तो सब जाते काँप, भाग्य पे अपने रोते।
क्या था किया गुनाह, सोच के आधा होते।।
कहे ‛श्लेष' कविराय, करो स्वीकार चुनौती।
यादगार हर बार, चुनावी ड्यूटी होती।।
(59)
लेते वर्षा का बहुत, बचपन में आनंद।
नाव चलाना कागजी, आता हमें पसंद।।
आता हमें पसंद, खेलना दिनभर जल में।
देखा करते मीन, बंद करके बोतल में।।
नाव चलाते बाल, दिखाई अब कम देते।
मौसम का आनंद, कहाँ हम जैसे लेत।।
(60)
पावन होता है बहुत, नौ दिन का त्यौहार।
आदि शक्ति हर भक्त की, सुनती करुण पुकार।।
सुनती करुण पुकार, सभी की माता रानी।
जपकर उनका नाम, लोग बनते हैं ज्ञानी।।
नौ दिन में नौ रूप, दिखे माँ का मनभावन।।
सखे पर्व नवरात्रि, सभी को लगता पावन।।
(61)
माता रानी आप है, इस जग का आधार।
विपदा आई जब यहाँ, लिया नया अवतार।।
लिया नया अवतार, सभी के प्राण बचाने।
दुष्टों का कर अंत, शांति धरती पर लाने।।
लड़कर हुए परास्त, आपसे सब अभिमानी।
हम हैं ऋणी सदैव, आपके माता रानी।।
(62)
करिए सबके साथ नित, प्रेम भरा व्यवहार।
काल कोठरी जान लो, इसके बिन संसार।।
इसके बिन संसार, लगेगा बहुत अधूरा।
इसे बाँटिए आप, मजा लेना यदि पूरा।।
कहे श्लेष नादान, रंग जीवन में भरिए।
सदा प्रेम भरपूर, जगत में सबसे करिए।।
(63)
आजादी के स्वप्न को, किया यहाँ साकार।
प्रेम दया करुणा रहे, बापू के हथियार।।
बापू के हथियार, अहिंसा अरु सच्चाई।
देख लीजिए आज, जगत ने है अपनाई।।
सूटबूट को त्याग, उन्होंने पहनी खादी।
राष्ट्रपिता ने श्लेष, दिलाई थी आजादी।।
(64)
लाल बहादुर जी रहे, सच्चे नेता एक।
रहे देशहित में सदा, उनके काज अनेक।।
उनके काज अनेक, रहेंगे याद हमेशा।
जनसेवा के हेतु, चुना था ऐसा पेशा।।
थे उत्कृष्ट प्रधान, यहाँ दो साल बहादुर।
सत्यनिष्ठ इंसान, एक थे लाल बहादुर।।
(65)
आगे जिससे त्रासदी, झेले लोग तमाम।
हम विकास के नाम पर, करें न ऐसा काम।।
करें न ऐसा काम, संतुलन जिससे बिगड़े।
देना होगा ध्यान, बाग जंगल क्यों उजड़े।।
कहे श्लेष नादान, समय रहते सब जागे।
संकट अति विकराल, खड़ा हो सकता आगे।।
(66)
कहकर वंदेमातरम, लाने लड़े स्वराज।
करता पूरा देश है, खुदीराम पर नाज।।
खुदीराम पर नाज, हमेशा हमें रहेगा।
योगदान को देश, सदा ही याद रखेगा।।
मातृभूमि के हेतु, लड़े कठिनाई सहकर।
और हुए कुरबान, बोस जय भारत कहकर।।
(67)
गुस्सा अपना भूलना, सीखे सकल समाज।
जरा-जरा सी बात पर, लड़ते है हम आज।।
लड़ते है हम आज, बेहतर साबित करने।
अपना ही हम राज, लगे स्थापित करने।।
कहे श्लेष कविराय, सूर्य से सीखो तपना।
देता हमें प्रकाश, भूल कर गुस्सा अपना।।
(68)
कालापानी की सजा, हँसकर किया कुबूल।
स्वतंत्रता संग्राम में, कूदे सब कुछ भूल।।
कूदे सब कुछ भूल, क्रांति पथ पर सावरकर।
किया खूब संघर्ष, राष्ट्र हित में जीवन भर।।
सावरकर को याद, करे हर हिन्दुस्तानी।
था काला अध्याय, सजा-ए-कालापानी।।
(69)
भोली सूरत देख कर, सभी छिड़कते जान।
फूलों जैसी है सभी, बच्चों की मुस्कान।।
बच्चों की मुस्कान, देख कर अच्छा लगता।
प्रेम भरा व्यवहार, जगत में सच्चा लगता।।
बच्चों की है श्लेष, तोतली प्यारी बोली।
जाते सब कुछ भूल, देख कर सूरत भोली।।
(70)
नही समझते प्रेम की, भाषा पत्थर बाज।
बहुत जरूरी है इन्हें, सबक सिखाना आज।।
सबक सिखाना आज, पडे़गा इनको यारों।
लड़के है बिगड़ैल, पीट कर खूब सुधारों।।
सेना से यूँ ‘श्लेष’, बेवजह नही उलझते।
झेलेंगे अब दंड, बात जो नही समझते।।
(71)
टुकड़ा मिला जमीन का, भैया जी को दान।
आज उसी के नाम से, है बहुत परेशान।।
है बहुत परेशान, हो रही छापेमारी।
और जाँच-पड़ताल, ठिकानों पर सब जारी।।
कहे श्लेष कविराय, लगा है झटका तगड़ा।
आफत ले ली मोल, भूमि का लेकर टुकड़ा।।
(72)
जनता को उल्लू बना, करते कब तक राज।
निज हित वाली पार्टियाँ, हार रही है आज।।
हार रही है आज, नीतियों से अब अपनी।
चले नही हर बार, स्वयं हित माला जपनी।।
कहे श्लेष कविराय, मिटाते गर निर्धनता।
करते अगर विकास, भरोसा करती जनता।।
(73)
फर्क नहीं पड़ता सखे, कैसे जिये समाज।
वोट बैंक की फिक्र है, नेताओं को आज।।
नेताओं को आज, चाहिए ऊँचा रुतबा।
सात जन्म तक राज, करे उनका ही कुनबा।।
हर नेता अब श्लेष, स्वहित में चुनाव लड़ता।
डूबे देश समाज, उन्हें फर्क नहीं पड़ता।।
(74)
मोदी जी करते महज, छ: घंटे आराम।
करते है वो देश हित, अठरह घंटे काम।।
अठरह घंटे काम, पूर्ण निष्ठा से करते।
जन सेवा का भाव, सभी के मन में भरते।।
और लोग तो श्लेष, खेलते खोदा-खोद।
विकसित हो यह देश, सोचते हर पल मोदी।।
(75)
लागू कर जीएसटी, खुश है अब सरकार।
एक देश इक टैक्स का, हुआ स्वप्न साकार।।
हुआ स्वप्न साकार, हुई अब खत्म प्रतीक्षा।
देने को तैयार, हुए सब अग्नि परीक्षा।।
कहती है सरकार, मिलेगी राहत फागू।
कर का नया विधान, देश में करके लागू।।
(76)
जेल नहीं जाते कभी, खुले घूमने यार।
कर उपयोग रसूख का, बन जाते बीमार।।
बन जाते बीमार, गिरफ्तारी से बचने।
कूट नीतियाँ खूब, जानते नेता रचने।।
श्लेष तोड़ कानून, घूमते है इतराते।।
बड़े लोग तो यार, कभी जेल नहीं जाते।।
(77)
जनता का होता भला, कसते अगर नकेल।
भ्रष्टाचारी खेलते, मिली भगत का खेल।।
मिली भगत का खेल, खेलते नेता अफसर।।
बना लूट का केन्द्र, यहाँ अब तो हर दफ्तर।।
रिश्वत देता ‘श्लेष’, काम है उसका बनता।
भ्रष्ट तंत्र से त्रस्त, देश की भोली जनता।।
(78)
माँ जगदम्बेे समझती, भक्तों के जज्ब़ात।
माँ की कर आराधना, नौ दिन अरु नौ रात।।
नौ दिन अरु नौ रात, शहर में रौनक रहती।
गांव गली हर छोर, भक्ति की गंगा बहती।।
मनोकामना पूर्ण, सभी की करती अम्बे।
सुनती करूण पुकार, दीन की माँ जगदम्बे।।
(79)
छोटी-छोटी बात पर, करवाते पथराव।
हथकंडे अपना रहे, है सामने चुनाव।।
है सामने चुनाव, सोच के चालें चलते।
इसी तरह ये लोग, सदा आये है छलते।।
सच कहता है श्लेष, रखें ये नीयत खोटी।
रहना इनसे दूर, सोच हैं इनकी छोटी।।
(80)
कर माथापच्ची बहुत, लिखूँ पंक्तियाँ चार।
अपने बस का है नही, लेखन वेखन यार।।
लेखन वेखन यार, मुझे तो दुष्कर लगता।
लिखने बैठूँ छंद, बहुत है माथा दुखता।।
देना होगा श्लेष, ध्यान तुझे व्याकरण पर।
कमियों को कर दूर, बड़े कवियों को पढ़ कर।।
(81)
पीढ़ी दर पीढ़ी किया, खानदान ने राज।
सत्ता से खारिज हुए, अब रहते नाराज।।
अब रहते नाराज, निकाले खुन्नस हर दिन।
कब हो आम चुनाव, सोचते रहते दिन गिन।।
हासिल करने ताज, बनाते भैया सीढ़ी।
फिर से करने राज, दिखे लालायित पीढ़ी।।
(82)
काला धन जिसने रखा, मन में उसके खोट।
आम आदमी शौक से, बदल रहा है नोट।।
बदल रहा है नोट, बैंक में अपने जाकर।
खुश होता वह मीत, नए नोटों को पाकर।।
परेशान कुछ लोग, राज है खुलने वाला।
रखना हुआ मुहाल, यहाँ अब तो धन काला।।
(83)
जो डरता संघर्ष से, होता काठ समान।
लड कर जो है हारता, बढ़ता उसका मान।।
बढ़ता उसका मान, जगत में नाम कमाता।
करके वो अभ्यास, जीत कर है दिखलाता।।
मिलता कब अधिकार, बंधु जो जिद ना करता।
मिले न उसको जीत, जंग से है जो डरता।।
(84) 1.12.19
दुष्कर्मी दुष्कर्म कर, खुले घूमते आज।
दबकर रह जाती यहाँ, पीड़ित की आवाज।।
पीड़ित की आवाज, कौन है सुनने वाला।
बैठे रहते लोग, लगाकर मुँह पर ताला।।
धनबल जिसके पास, दिखाते उसपर नर्मी।
खुले सांड की भाँति, घूमते हैं दुष्कर्मी।।
(85)
करता है जो भी यहाँ, नारी का अपमान।
वह मनुष्य के रूप में, होता है शैतान।।
होता है शैतान, घोर पापी कहलाता।
नारी को दिन-रात, यहाँ जो बहुत सताता।।
कहे श्लेष नादान, अगर वह नहीं सुधरता।
भेजो उसको जेल, काम जो ओछे करता।।
(86)
नव पीढ़ी होने लगी, लिप्त नशे में आज।
उन्हें बचाने के लिए, कोशिश करे समाज।।
कोशिश करें समाज, नशे की लत छुड़वाने।
आगे आयें लोग, युवाओं को समझाने।।
गाँजा चरस शराब, नर्क की होती सीढ़ी।
सेवन करना छोड़, रहें चंगा नव पीढ़ी।।
(87)
लेते लोग विवाह में, जो भी यहाँ दहेज।
उनको करना चाहिए, अब इससे परहेज।।
अब इससे परहेज, करें सब वर के परिजन।
यह है एक कुरीति, प्रभावित होता जीवन।।
होकर विवश दहेज, सुता के परिजन देते।
निष्ठुर लोभी लोग, इसे है खुलकर लेते।।
(88) 11/12/2019
सँवरें फिर पर्यावरण, करिए ऐसा काज।
देना इसपर ध्यान है, बहुत जरूरी आज।।
बहुत जरूरी आज, प्रदूषण मुक्त कराना।
आसपास परिवेश, हमें हैं स्वच्छ बनाना।।
महकें फिर से बाग, दिखें खग तितली भँवरें।
कोशिश हो भरपूर, पुनः वसुंधरा सँवरें।।
(89)
माता सीने से लगा, करे पुत्र को प्यार।
तब उस सुख के सामने, तुच्छ लगे संसार।।
तुच्छ लगे संसार, सुखद उस क्षण के आगे।
आकर उनके पास, दूर भय मन से भागे।।
किये नेक है काज, बनाकर मातु विधाता।
उसका है सौभाग्य, पास है जिसके माता।।
(90) ,03/02/2016
सत्य अहिंसा स्वच्छता, बापू का संदेश।
अपनाकर हम देश का, बदलेंगे परिवेश।।
बदलेंगे परिवेश, बनाकर हम शौचालय।
धीरे धीरे बंद, करेंगे सब मदिरालय।।
गाँधी का संदेश, छोडिए करना हिंसा।
मानव का उत्थान, करे है सत्य अहिंसा।।
(91) 14/12/2019
भूल रहे हम सभ्यता, हुए आधुनिक आज।
लगते अब तो बोझ है, अपने रीति-रिवाज।।
अपने रीति-रिवाज, मानना देखो छोड़ें।
भाता अंतर्जाल, इसी से नाता जोड़ें।।
किस मुँह से अब श्लेष, लोग हैं खास कहे हम।
परंपरा प्राचीन, देश की भूल रहे हम।।
(92) 15/12/2019
नारी देवी रूप है, करें नहीं अपमान।
हर नारी को मानिए, माता बहन समान।।
माता बहन समान, सुता के जैसे मानो।
सदा उचित व्यवहार, उन्हें देना है ठानो।।
जिनके दम पर श्लेष, टिकी यह दुनिया सारी।
पूज्यनीय प्रत्येक, यहाँ की होती नारी।।
कुण्डलियाकार- श्लेष चन्द्राकर,
पता- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
पिन - 493445
मो.नं. 9926744445, 9424266445
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