कुण्डलिया श्लेष चन्द्राकर के भाग-२
कुण्डलिया छंद (1) आर्थिक मंदी देश की, चिंता वाली बात। मनन करेंगे लोग तब, सुधरेंगे हालात।। सुधरेंगे हालात, पुनः रौनक आयेगी। मुखड़ों पर मुस्कान, युक्ति नव लौटायेगी।। इसपर कहता ‘श्लेष', न हो राजनीति गंदी। मिलजुलकर सब लोग, हटाएँ आर्थिक मंदी।। (2) सरकारी संपत्ति का, करते जो नुक्सान। होते ऐसे लोग तो, उत्पाती शैतान।। उत्पाती शैतान, कहाँ शह पाकर डरते। अपना बेच विवेक, कृत्य पशुओं सा करते।। ‘श्लेष’ उपद्रवी लोग, हानि पहुँचाते भारी। कार्यालय बस रेल, जला देते सरकारी।। (3) बातें बड़ी न कीजिए, करिए भ्राता काज। यदि करना है चाहते, सबके दिल पर राज।। सबके दिल पर राज, करें कुछ अच्छा करके। और लुटाए प्रेम, सभी जन पर जी भरके।। कहे श्लेष नादान, कटेंगी अच्छी रातें। श्रम कर तू भरपूर, छोड़ बेमतलब बातें।। (४) माली नित तन-मन लगा, सींचे अपना बाग। रहता है उसको बहुत, पौधों से अनुराग।। पौधों से अनुराग, लगाकर है वह जीता। करता अपना कार्य, तभी है खाता-पीता।। जिसके जिम्मे श्लेष, बगीचे की रखवाली। कर्मवीर इंसान, नाम है उसका माली।। (५) पानी कम होने लगा, देखो चारों ओर। जल संरक्षण पर बहुत, देना ह...