छत्तीसगढ़ी गीतिका छंद
¤ गीतिका छंद ¤
★ विषय - रोटी ★
चार रोटी सोझ भइया, नइ मिलय बनिहार ला।
रातदिन बड़ काम करके, पोसथे परिवार ला।।
ढालथे तन ला अपन जी, वो सबो हालात मा।
मन लगाके बड़ कमाथे, घाम जुड़ बरसात मा।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
वृद्ध दाई अउ ददा के, झन करव अपमान जी।
संग मा राखव अपन अउ, दव सदा सनमान जी।।
लाय हे जग मा उही मन, गोठ ये सुरता रखव।
ध्यान ला देके बरोबर, रोजकुन सेवा करव।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
★ विषय - बोतल ★
मंद के बोतल कभू झन, थामहू गा हाथ मा।
जे पियइया हे उँखर जी, घूमहू झन साथ मा।।
पोचवा तन ला करे गा, नाश के ये द्वार हे।
अउ इखँर सेती इहाँ जी, टूटथे परिवार हे।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
गोठ करथे नीक पुस्तक, ज्ञान अउ विज्ञान के।
भेद ये सबला बताथे, साधु अउ शैतान के।।
जानथन पढ़के इही ले, का हमर इतिहास हे।
जान लौ भइया हमर बर, ये जगत मा खास हे।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
संगवारी जी सबो के, जान लौ पुस्तक हरे।
नानकुन गा ये जिनिस मा, ज्ञान दुनिया के भरे।।
जे सदा रद्दा दिखाथे, सत्य के इंसान ला।
ध्यान देके जे पढ़त हे, प्राप्त करथे ज्ञान ला।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
दार आटा अउ मसाला, शुद्ध मिलथें अब कहाँ।
डार गोंटी अउ बुरादा, लोग बेचत हें यहाँ।।
साग भाजी मा छिंचत हें, खाद अब रासायनिक।
स्वाद जेमा नइ रहय गा, जान लौ एकोकनिक।।
★ विषय- झाँकी ★
गाँव कस्बा हर शहर मा, हे अबड़ झाँकी सजे।
रातदिन चमकत रथे गा, देख लौ कतको बजे।।
प्रभु विनायक हे बिराजे, जाव अउ दरसन करव।
माँग लौ वरदान प्रभु ले, अउ रिता झोली भरव।।
★ श्लेष चन्द्राकर ★
हर जिनिस मा अब मिलावट, लालची मन हें करत।
माल घटिया बेच के जी, उन खिसा खुद के भरत।।
होत हे खिलवाड़ देखव, आज सेहत ले हमर।
खाय के बेचत जिनिस हें, सान के धीमा जहर।।
★
शत्रु मन आँखी दिखाथें, तोड़थे उनकर कमर।
वीरता के साथ लड़थे, देश के सेना हमर।
चाल चलथें शत्रु मन तब, युद्ध बर ललकारथे।
प्रेम ले मानय नहीं तब, घर खुसर के मारथे।
¤ विषय - गुरु ¤
गुरु बताथे शिष्य मन ला, गोठ अनुभव के अपन।
सीखथेे संगी उही हा, जेन मा रहिथे लगन।
गोठ मा गुरुदेव केे जी, सार जिनगी के रथे।
ज्ञान सत के बाँटथे गा, वो कहाँ बिरथा कथे।
¤ श्लेष चन्द्राकर ¤
(1)
पेड़ मनखे बर जरूरी, हे अबड़ गा जान लौ।
काटहू येला कभू झन, गोठ ला ये ठान लौ।।
पेड़ हा देथे सबो ला, छाँव अउ पबरित हवा।
गोंद लकड़ी फूल फल जी, रोग के देथे दवा।।
(2)
बाँध के माटी रखत हे, पेड़ के संगी जरी।
बैठथे रद्दा चलइया, घाम मा येकर तरी।।
पेड़ हा बादर बलाथे, सब इखँर रक्षा करव।
दूर जी होथे प्रदूषण, भूमि ला हरियर रखव।।
¤ श्लेष चन्द्राकर ¤
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