छत्तीसगढ़ी अमृत ध्वनि छंद
अमृत ध्वनि छंद - श्लेष चन्द्राकर
(1)
गावव तीज तिहार मा, छत्तीसगढ़ी गीत।
अपन राज के सब करव, परंपरा ले प्रीत।।
परंपरा ले, प्रीत करव गा, पोठ बनावव।
जम्मो मनखे, जुरमिल सुग्घर, परब मनावव।।
भूलत हावय, संस्कृति ला सब, याद दिलावव।
गीत ददरिया, सूआ करमा, पंथी गावव।।
(2)
महँगाई हा बाढ़ गे, कमती हावय आय।
महँगा आटा दार हे, मनखे काला खाय।।
मनखे काला, खाय बिसाके, बोलो भाई।
इहाँ चलाना, जिनगी होगे, बड़ दुखदाई।।
रखव जोड़ के, कतको पइसा, पाई-पाई।
मुहुँ सुरसा कस, फार खड़े हे, अब महँगाई।।
(3)
मेला लगही आज गा, शहर-शहर अउ गाँव।
जगन्नाथ भगवान के, लेही सबझन नाँव।।
लेही मनखे, नाव सुभदा, बलभद्दर के।
रथ देखे बर, लइका मन ला, जाही धर के।।
गजा मूँग के, परसादी अउ, खाही केला।
शहर-गाँव मा, रथयात्रा के, लगही मेला।।
(4)
रिमझिम-रिमझिम होत हे, जघा-जघा बरसात।
बादर हा गरजत हवय, का दिन अउ का रात।।
का दिन अउ का, रात गिरत हे, रझरझ पानी।
होवत हावय, राह चले मा, बड़ परसानी।।
कहाँ दिखत हे, रथिया तारा, चमकत टिमटिम।
सँझा बिहनिया, होवत हावय, बरसा रिमझिम।।
(5)
बादर हा बरसत हवय, संगी रोज अपार।
अब गा बाढ़त जात हे, नँदिया मन के धार।।
नँदिया मन के, धार अबड़ हे, बचके रइहू।
लइका मन ला, झन तउँरे बर, संगी कइहू।।
हरियर-हरियर, आढ़त हावय, भुइँया चादर।
आसो संगी, बड़ बरसत हे, करिया बादर।।
(6)
उड़ियाथें कीरा अबड़, आथे जब बरसात।
रखहू संगी, ढ़ाक के, साग दार अउ भात।।
साग दार अउ, भात राँध के, ताजा खाहू।
बने रहू गा, साफ-सफाई, जब अपनाहू।
मच्छर माछी, किसम-किसम के, जर बगराथें।
बरसा रितु मा, कीरा मन हा, बड़ उड़ियाथें।।
(7)
भारत हा जीतत हवय, सबो खेल मा आज।
खेलकूद के क्षेत्र मा, करत हवय अब राज।।
करत हवय अब, राज खेल मा, सबो खिलाड़ी।
पकड़त हावय, आज जीत के, ओमन गाड़ी।।
हमर खिलाड़ी, सबो खेल मा, हवय महारत।
हाकी खो-खो, असन खेल मा, आघू भारत।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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