(1) लेवत हवयँ रिश्वत अबड़, कतको अधर्मी मन कका। घूमत हवयँ खुल्ला इहाँ, कतको कुकर्मी मन कका।। एकोकनिक डर नइ हवय, ये लागथे कानून के। सस्ता रखें हे मोल उँन, का आदमी के खून के।। (2) लूटत गरीबन ला अबड़, हे आज रिश्वतखोर मन। ये नीच बूता देखके, जाथे बइठ जी मोर मन।। रिश्वत बिना होवय नहीं, कोनो बखत मा काम जी। बड़ तंग करना दीन ला, होगे इहाँ अब आम जी।। (3) (मात्रा बाँट- 2212 2122 2, 212 2 212) नाली बनाबो हर गली मा, गोठ सब ये मान लौ। मलमूत ला ओमा बहाबो, आपमन सब ठान लौ।। सुग्घर हमर तब गाँव बनही, दूर जाही रोग मन। हाँसी-खुशी जिनगी बिताही, स्वस्थ रइही लोग मन।। (4) जम्मो शहर अउ गाँव बर, नाली जिनिस बड़ काम के। मल ला बहाके लेगथे, समझौ नही बस नाम के।। नाली बिना बरसात मा, पानी गली मा रुक जही। बड़ही जिकर ले गंदगी, अउ रोग कतको फैलही।। (5) तन मन लगाके काम कर, तँय बेच झन ईमान ला। मिहनत करे ले फर सदा, मिलथे बने इंसान ला।। जे याद कर भगवान ला, करथे अपन सब काम गा। सम्मान पाथे ओ जगत मा, होथे उँखर बड़ नाम गा।। (6) शास्त्री बने नेता रिहिस, जे सत्य के बाना धरिस। जे देश के परधान बन, सब काम ला सुग्घर...