छत्तीसगढ़ी रचनाएं- श्लेष चन्द्राकर

दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - नवा बछर

नवा बछर आये हवय, बाँटे बर उल्लास।
सुग्घर बूताकाम कर, चलव बनाबो खास।।

भूलव जुन्ना गोठ गा, राखव नवा बिचार।
मिहनत करके दव अपन, सपना ला आकार।।

अपन सफलता बर करव, मिहनत गा भरपूर।
चलहू जी जब ठान के, रइपुर नइ हे दूर।।

नवा-नवा संकल्प लौ, नवा हरे गा साल।
अपन बना सकथव तभे, जिनगी ला खुशहाल।।

नवा बछर ये बीस गा, सब बर रहय विशेष।
अंतस ले शुभकामना, देवत हावय श्लेष।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


चौपाई छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - गुरु घासीदास जयंती

संत शिरोमणि घासी बाबा। कहय एक हे कांशी-काबा।।
जात-पात ला ओ नइ जानय। एक सबो मनखे ला मानय।।

गुरु बाबा के हरय जनम दिन, सुरता रखहूँ येला सबझिन।।
बगराना हे पबरित बानी। सुना सबो ला उँखर कहानी।।

बानी मा मँदरस घोलय गा। संत बबा सुग्घर बोलय गा।।
सदा नीक ओ गोठ किहिस हे। सत के पहरादार रिहिस हे।।

सच्चा सेवक ओ ईश्वर के। रिहिस विरोधी आडंबर के।।
इहाँ पंथ सतनाम चलाइन। मानवता के पाठ पढ़ाइन।।

भेदभाव सब छोड़व बोलिन। मनखे मन के आँखी खोलिन।
छुआछूत ला रोग बताये। दीन-दुखी ला गला लगाये।।

एक असन ओ सबला मानय। मया सबो ला देबर जानय।।
मानवता के नेक पुजारी। रिहिस बबा के महिमा भारी।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़

आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर
शीर्षक - वीर नारायण सिंह

महावीर नारायण सिंह ला, रिहिस देश ले अब्बड़ प्यार।
लडिस लड़ाई आजादी के, आँखी मा भरके अंगार।।

जन के हक मारय अँगरेजन, अपन भरयँ जी उँन गोदाम।
काम करावयँ घात रात दिन, अउ देवयँ गा कमती दाम।

दिन-दिन जब अँगरेजन मन के, बढ़त रिहिस हे अत्याचार।
तब विरोध मा आघू आइस, नारायण हा धर तलवार।।

कभू गुलामी के जिनगी हा, उन ला गा नइ आइस रास।
सबो आदिवासी ल सकेलिन, अपन बनाइस सेना खास।।

नारायण हुंकार भरिस हे, सबो उठाइस तब हथियार।
लड़िस हवयँ गोरा मन सन जी, ओमन माँगे बर अधिकार।।

जुलुम देख के मनखे ऊपर, अब्बड़ खउलय सिंह के खून।
देख वीर ला गोरा मन के, गिल्ला हो जावयँ पतलून।।

रिहिस हवय नारायण सिंह हा, ऊँचा-पूरा धाकड़ वीर।
उठा-उठा के ठाड पटकतिस, बैरी मन ला देवय चीर।।

जब दहाड़ बघवा कस मारय, बने-बने के जी थर्राय।
प्रान बचाये बर बैरी मन, रुखराई के बीच लुकाय।।

खच खच खच तलवार चलावय, मारय सर सर गा ओ तीर।
अँगरेजन के सैनिक मन हा, उनकर आघू माँगय नीर।।

रिहिन वीर नारायण सच्चा, भारत माता के जी लाल।
करे रिहिन सन संतावन मा, अँगरेजन के बाराहाल।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर

सुग्घर भाखा ले बढ़िस, हमर राज के शान।
छत्तीसगढ़ी ला सदा, देवव सब सम्मान।।
देवव सब सम्मान, बढ़ावव जुरमिल येला।
येमा अबड़ मिठास, हरे ये गुड़ के भेला।।
हमला इखँर भविष्य, बनाना हे अउ उज्जर।
करव रोज सब गोठ, राज भाखा मा सुग्घर।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


छत्तीसगढ़ी के असन, भाखा नइ हे श्लेष।
महतारी भाखा हरय, करथन प्रेम विशेष।।
(49)
छत्तीसगढ़ी के सबद, हावय सबो विशेष।
अंतस मा जाथे उतर, गोठ-बात मा श्लेष।।
(50)
सब पसंद करथें अबड़, छत्तीसगढ़ी गोठ।
महतारी भाखा हमर, अब होवत हे पोठ।।
दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - संविधान दिवस
(1)
करिस बबा अंबेडकर, नीक देश बर काम।
उनकर लेथें सब इहाँ, बड़ इज्जत ले नाम।।
(2)
संविधान निर्माण कर, बनगे बबा महान।
लोकतांत्रिक देश ला, दिहिन नवा पहिचान।।
(3)
संविधान जब ले बनिस, आइस बड़ बदलाव।
हावय सबो समाज मा, अब समता के भाव।।
(4)
संविधान हा दिस हवय, मनखे ला अधिकार।
भीमराव जी के हरे, येहा गा उपहार।।
(5)
दूर होत हे देश मा, ऊँच-नीच के भाव।
आज काकरो साथ मा, होवय नइ अन्याव।।
(6)
अपन धरम सब मानथें, रखथें अपन विचार।
सबला पूजापाठ के, मिले हवय अधिकार।।
(7)
आजादी हर गोठ के, मनखे ला हे आज।
सबो अपन मन के इहाँ, कर सकथें गा काज।।
(8)
देश चलत हे आज गा, संविधान अनुसार।
कभू चुका हम नइ सकन, बाबा के उपकार।।
(9)
रहय देश मा एकता, करव मया व्यवहार।
इही सबो हे जान लौ, संविधान के सार।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)


सार छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - रोजगार

रोजगार मिलना मुसकुल हे, नव पीढ़ी ला भइया।
इहाँ ठेलहा घूमत रहिथें, कतको पढ़े लिखइया।।

डिगरी धर के बइठे रहिथें, कहाँ नौकरी पाथे।
टूट जथे जब उनकर सपना, ठियाँ काम मा जाथे।।

उनकर सुनवाई होथे गा, जेमन पइसा ढिलथें।
इहाँ सिफारिश वाला मन ला, आज नौकरी मिलथें।।

रोजगार गा मिले सबो ला, ये उदीम कब होथे।
खुद सन ये अन्याव देख के, नव पीढ़ी हा रोथे।।

सबो हाथ ला काम मिले अब, अइसे होना चाही।
बइठे हन उम्मीद लगा के, नवा बिहिनिया आही।।

विषय - जनसंख्या

जनसंख्या बड़ बाढ़त हावय, कमती हे संसाधन।
अलकरहा उपयोग करत हे, बिन सोचे मनखेमन।।

बेटा के चाहत मा मनखे, जब परिवार बढ़ाथे।
बाढ़ जथे जब घर के खर्चा, तब अब्बड़ पछताथे।।

बेटी ला बेटा कस मानयँ, झन परिवार बढ़ावयँ।
पढ़ा लिखा के सुग्घर उनकर, जिनगी घला बनावयँ।।

कहाँ मिलत हे रोजगार गा, जनसंख्या के सेती।
बेचावत घर-द्वार सबो के, कम होगे हे खेती।।

काबू मा रइही जनसंख्या, जाग जही तब सबझन।
अउ अपनाही मनखे मन हा, जब परिवार नियोजन।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

दोहा छंद

सजही आसो फेर गा, दुर्गा के दरबार।
झाँकी मन मा देखबो, माँ के रूप हजार।।

परब हरे नवरात के, भक्तन मन बर खास।
पाये बर वरदान जी, रखथें सबो उपास।।

नौ दिन ले गा जेन मन, करथें भक्ति अपार।
सब्बो के माँ शारदा, करथें जी उद्धार।।

मधु-कैटभ दू दैत्य मन, करत रिहिंन अतलंग।
माँ ऊँकर संहार कर, लानिस इहाँ उमंग।।

मारिस शुम्भ निशुम्भ ला, तोड़िस हे अभिमान।
अहम भाव ला छोड़ के, दुर्गा के कर ध्यान।।

महिषासुर के जब अबड़, बाढ़िस अत्याचार।
तब माता कात्यायनी, करिस उँखर संहार।।

दुर्गा दाई के हवय, महिमा अबड़ अनन्त।
काली माता बन करिस, रक्त बीज के अन्त।।

काली माता जब करिस, चण्ड-मुण्ड संहार।
चामुंडा के नाम ले, जानिस ये संसार।।

माँ के दुर्गा नाम के, एक कथा हे आम।
मारिस दुर्गम दैत्य ला, पड़िस तहाँ ये नाम।।

रक्षा भक्तन के करे, अउ डर करथे दूर।
मया लुटाथे जी सदा, बम्लाई भरपूर।।

छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकार स्व. कोदूराम दलित जी ला शत् शत् नमन...
★ कुण्डलिया छंद ★
चलदिन कोदूराम जी, करके काम पुनीत।
छत्तीसगढ़ी मा लिखिन, सुग्घर-सुग्घर गीत।।
सुग्घर-सुग्घर गीत, उँखर जी सबला भाथें।
कबिता कथा निबंध, बने रद्दा देखाथें।।
कोदू जी ला याद, इहाँ रखहीं गा सबझिन।
हमर राज बर काम, बने ओ करके चलदिन।।
★ श्लेष चन्द्रकर ★
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

बने कहत हव आपमन, दे बर पड़ही ध्यान।
हो सकथे नइ तो हमर, जबरन के नुकसान।।

छप्पय छंद - श्लेष चन्द्राकर
(1)
लोकगीत के हाल, बुरा हे अब्बड़ संगी।
इखँर गवैया आज, सहत हे आर्थिक तंगी।।
बाँस गीत के मीत, घटत हे आज गवैया।
पँडवानी के राज, कोन हे फेर लनैया।।
कलाकार मन राज के, खोजत हावय काम जी।
नाम भले मिल जात हे, मिलत कहाँ हे दाम जी।।
(2)
तासक दफडा नाल, दमउ खन्जेरी डफली।
हमर राज के शान, रहिस सब बाजा पहली।।
माँदर झांझ मृदंग, मोहरी रूंझु चिकारा।
दिखथे कमती आज, नँगाड़ा अउ इकतारा।।
करें गरब छत्तीसगढ़, वो सब आज नँदात हे।
तम्बूरा ताशा असन, बाजा कोन बजात हे।।
(3)
कहिथे सही सियान, गोठ ओकर गा मानो।
अनुभव के वो खान, मोल बड़खा के जानो।
देथे बने सलाह, बढ़े बर आघू सबला।
दो ओला सम्मान, अपन देथव जो रब ला।
सच्चा गोठ सियान के, ये जग मा बगराव जी।
उखँर बताये राह मा, चलके सबो दिखाव जी।।
(4)
योगासन ले देह, बने रहिथे गा जानव।
रोज बिहनिया योग, करे बर सबझन ठानव।।
योग करे ले रोज, धरे सब रोग मिटाही।
येला लाँघन पेट, बिहनिया करना चाही।।
उमर बाढ़थे योग ले, करव लगाके ध्यान जी।
रहिथे बने दिमाग हा, स्वस्थ रथे इंसान जी।।
(5)
हमर देश के योग, खोज हे ऋषि मुनि मन के।
अंतस मा ये राज, करत हावय सबझन के।।
रोग करत हे दूर, जेन जे अपनावत हे।
योगा के संसार, आज बड़ गुण गावत हे।।
भारत के परदेस मा, देखव मान बढ़ात हे।
इँहे जनम ले योग हा, जग मा सबला भात हे।।
(6)
केंसर अउ मधुमेह, बिमारी मा हितकारी।
सबो रोग मा योग, पड़त हावय गा भारी।
मनखे मन ला आज, बने रखथे योगासन।
तभे देत हे जान, बढ़ावा येला शासन।।
योगा सबके बीच मा, होगे हे मशहूर जी।
करथें कतको रोग ला, येहा जड़ ले दूर जी।
(7)
खचवा-डबरा पाट, डहर ला बना बरोबर।
जिहाँ जरूरी होय, उहाँ चलवा बुलडोजर।।
काँटा-खूँटी फेंक, बना रद्दा ला सुग्घर।
गाँव-गली अउ खोर, दिखे सब उज्जर उज्जर।।
बने सबो ला लागथे, साफ-सफाई जान जी।
येला अपनाना हवय, मन मा तँय हा ठान जी।।
(8)
झिल्ली होथे खीक, सबो ला आप बतावव।
बउरे बर दे छोड़, गोठ अइसे समझावव।।
होवय गा नइ नष्ट, जलाये ले बस्साथे।
खाके गरुवा गाय, प्रान ला अपन गँवाथे।।
सब मनखे मन ला अब कहो, पर्यावरण बचाव जी।
बड़ पहुचाथे नुकसान ये, झिल्ली झन अपनाव जी।।
(9)
झिल्ली हरय खराब, जान के बनथव भोला।
जावव नइ बाजार, हाथ मा धरके झोला।।
देथव झिल्ली फेंक, खीक दिखथे हर कोना।
करथे ये नुकसान, बाद मा पड़ही रोना।।
सुग्घर धरती मा अपन, झिल्ली झन बगराव जी।
छोडव येकर मोह ला, पर्यावरण बचाव जी।।
(10)
पानी पीके प्यास, सबोझन अपन बुझाथन।
येला राखव साफ, इही मा सबो नहाथन।।
पानी मा ही रोज, खीक कपड़ा ला धोथन।
बोथन बखरी खेत, उहू मा घला पलोथन।।
करथन जल उपयोग सब, रोज बिहनिया शाम जी।
बिरथा झन बोहान दो, ये बड़ आथे काम जी।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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