शंकर छंद (छत्तीसगढ़ी)
*विषय- गणतंत्र दिवस*
(१)
भारत के गणतंत्र दिवस हा, हरे बड़े तिहार।
भारत माँ के कोरी-कोरी, करव जय-जयकार।।
संविधान हा लागू होइस, इही दिन ले जान।
अलग बनिस हे जग मा तब ले, देश के पहिचान।।
(२)
सन पचास मा बनिस हवय गा, देश हा गणतंत्र।
जुरमिल सब ला अब रहना हे, मिलिस हावय मंत्र।।
लोकतंत्र मा खास बनिस हे, सबो मनखे आम।
तभे सुचारू रुप मा संगी, होत हे हर काम।।
(३)
स्वतंत्रता सेनानी मन ला, करव सुरता आज।
जिनकर अब्बड़ मिहनत ले गा, मिले हवय स्वराज।।
गांधी नेहरु वल्लभभाई, तिलक अउ टैगोर।
स्वतंत्रता बर आंदोलन कर, नवा लानिस भोर।।
(४)
वीर भगत सिंह अशफाकुल्ला, राजगुरु आजाद।
बिस्मिल अउ सुखदेव घलो ला, करव सबझन याद।।
अमर क्रांतिकारी मन होगे, देश बर कुर्बान।
अपन लहू ले सींच बनाइन, नवा हिन्दुस्तान।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
भारत के गणतंत्र दिवस हा, हरे बड़े तिहार।
भारत माँ के कोरी-कोरी, करव जय-जयकार।।
संविधान हा लागू होइस, इही दिन ले जान।
अलग बनिस हे जग मा तब ले, देश के पहिचान।।
(२)
सन पचास मा बनिस हवय गा, देश हा गणतंत्र।
जुरमिल सब ला अब रहना हे, मिलिस हावय मंत्र।।
लोकतंत्र मा खास बनिस हे, सबो मनखे आम।
तभे सुचारू रुप मा संगी, होत हे हर काम।।
(३)
स्वतंत्रता सेनानी मन ला, करव सुरता आज।
जिनकर अब्बड़ मिहनत ले गा, मिले हवय स्वराज।।
गांधी नेहरु वल्लभभाई, तिलक अउ टैगोर।
स्वतंत्रता बर आंदोलन कर, नवा लानिस भोर।।
(४)
वीर भगत सिंह अशफाकुल्ला, राजगुरु आजाद।
बिस्मिल अउ सुखदेव घलो ला, करव सबझन याद।।
अमर क्रांतिकारी मन होगे, देश बर कुर्बान।
अपन लहू ले सींच बनाइन, नवा हिन्दुस्तान।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
मोबाइल के टॉवर सेती, सबो हे हलकान।
येकर विकिरण अलकरहा हे, करत बड़ नुकसान।।
जघा-जघा मा आज इखँर गा, बिछे हावय जाल।
चिरई चुरगुन अउ मनखे के, बनत हे ये काल।।
(२)
टॉवर के सेती होवत हे, ब्रेन ट्यूमर रोग।
घातक केंसर के पीरा ला, सहत हावय लोग।।
होत दिमागी बीमारी गा, खीक हे ये मान।
इखँर फायदा कमती हावय, अबड़ हे नुकसान।।
(३)
पहिली कतको चिरई चुरगुन, रहय तीर-तखार।
दुष्प्रभाव ले टॉवर के अब, दिखत बस दू-चार।।
बनत हवय ये जम्मोझन बर, जीव के जंजाल।
देख अपन सुविधा बर मनखे, बलावत हे काल।।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
हुर्रा भलुवा चितवा बघवा, सिरावत हे आज।
गाँव-गाँव के जंगल मन मा, करत मनखे राज।।
जीव-जंतु ला पकड़े बर गा, बिछावत हे जाल।
मार-मार के खावत हावय, उखँर बेचत खाल।।
(२)
सबो जानवर जंगल मन के, घटत हावय रोज।
मिलय नहीं गा अब देखे बर, करव कतको खोज।।
लालच मा आके मनखे हा, गिरत हावय घात।
कल सवाल लइका मन करही, बताही का बात।।
(३)
जीव-जंतु ला झन मारव जी, हरय संगी जान।
जुलुम उखँर ऊपर करहू ता, रिसाही भगवान।।
हरय प्रकृति के येमन सब जी, अंग जानव खास।
इखँर निशानी बचे रहे गा, करव सबो प्रयास।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*आज के अभ्यास - शंकर छंद*
विषय - वोट
(१)
लुगरा दारू पइसा धरके, नहीं देवव वोट।
जेमन लालच देथें उनकर, रथे मन मा खोट।।
जब चुनाव के बेरा होथे, तभे आथे द्वार।
अइसन मनखे मन ला संगी, जिताना बेकार।।
(२)
लालच देने वाला मनके, नहीं मानव बात।
चाल चलइया मन पहुँचाथे, बाद मा आघात।।
लोकतंत्र ला वोट बिसाके, करत हे बदनाम।
अपन सुवारथ साधे बर उँन, करत गंदा काम।।
(३)
सोच-समझके करव अपन गा, वोट के उपयोग।
करे तुहर मन बर जे बूता , चुनव अइसे लोग।।
वोट देय के मिले हवय जी, सबो ला अधिकार।
करव इखँर उपयोग बने सब, अपन मति अनुसार।।
*श्लेष चन्द्राकर
*विषय - मकर संक्रांति*
अध्र्य दान के परंपरा हे, सुरुज ला जी आज।
लाल फूल तिल अक्षत कुंकुम, चढ़हाथे समाज।।
(१)
सुरुज नरायण धनु ले करथे, राशि मकर प्रवेश।
तभे मकर संक्रांति परब ला, मनाथे गा देश।।
दक्षिण ले जब उत्ती कोती, बदलथे ओ चाल।
खगोलीय ये घटना करथे, सबो ला खुशहाल।।
(२)
बड़े-बड़े दिन हो जाथे अउ, नानकुन गा रात।
इही हरय संक्रांति परब के, खास जानव बात।।
सुरुज नरायण के किरपा ले, भागथे गा ठंड़।
शीतलहर के अउ मनखे मन, नहीं झेलय दंड़।।
(३)
नदी नहाये के बिहना गा, नियम हावय आज।
सुरुज देव ला माथ नवाके, नमन करत समाज।।
तिल गुड़ के सब लाडू खाथें, आज करथे दान।
पुण्य कमाथें पबरित दिन मा, इहाँ तब इंसान।।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
अपन ग्राम पंचायत के सब, चुनव गा सरपंच।
जेन बने हावय प्रत्याशी, देव ओला मंच।।
अपन वार्ड के पंच चुनव सब, रहय जे हुशियार।
तब विकास के पंचायत मा, बही गंगा धार।।
(१)
मूलभूत सब सुविधा मनके, लाभ ले हर गाँव।
तभे हमर भारत के बढ़ही, जगत मा जी नाँव।।
गाँधी नेहरु जी के सपना, करव सब साकार।
चुनव बने मनखे मन ला अउ, बनावव आधार।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*विषय - नरई*
(1)
खेतखार के नरई मन मा, लगावव झन आग।
हाथ-गोड मा लग जाथे गा, केंरवस के दाग।।
हवा प्रदूषित होथे जानव, हरे राखड़ खीक।
नांगर चलवा नरई मन ला, पाट देना ठीक।।
(2)
आग लगाथव जब नरई ला, बिगड़थे गा खेत।
काम अकल के कर लव संगी, बखत रहिते चेत।।
कभू प्रदूषण झन बगरय जी, करव अइसे काम।
झन खराब गा होवन देहू, किसनहा के नाम।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*आज का अभ्यास - शंकर छंद*
(१)
कार जलाके पेरवसी ला, करत हें बर्बाद।
बने सराके घुरुवा मा जी, बना सकथे खाद।।
येकर धुँगिया ले हो सकथे, दमा टीबी रोग।
जानबूझके तभो जलाथें, कहाँ मानत लोग।।
(२)
पेरवसी के राखड़ उड़के, जमत हे घर-द्वार।
साँस धुआँ मा लेके मनखे, पड़त हे बीमार।।
मरत जीव हे नान्हे नान्हे, रहइया जे खेत।
घात सहय बर पड़ही मुसकुल, सबो जावव चेत।
*श्लेष चन्द्राकर*
*विषय - छेरछेरा-२*
(४)
परब छेरछेरा मा बहिथे, मया के बड़ धार।
ये तिहार ला सबो मनाथें, किसनहा बनिहार।।
ऊंच नीच अउ जात धरम जी, बैर जावव भूल।
जुरमिल रहना सिखव सबो गा, हरय येकर मूल।।
(५)
हरियर धरती माँ ला राखव, रहू सब खुशहाल।
इंदर हा किरपा बरसाही, पड़य नइ अंकाल।।
छोटे बड़हर सुनव किसनहा, रखव झन जी क्लेश।
भुँइया ले सब जुड़ के राहव, परब के संदेश।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*विषय - छेरछेरा*
(१)
पूस महीना के पुन्नी हा, हरय गा दिन खास।
परब छेरछेरा के रहिथे, राज मा उल्लास।।
मींज-कूट जब लेथें जम्मो, किसनहा मन धान।
ये दिन करथें ओमन हा जी, चिटिक अन के दान।।
(२)
गुदुम मोहरी दफड़ा के धुन, हृदय लेथे जीत।
लोग छेरछेरा माँगत जब, संग गाथें गीत।।
बिना दान अन के झोंके उँन, नहीं छोड़य द्वार।
चिटको देरी होथे तब गा, लगाथें गोहार।।
(३)
परब दान के करथें रिश्ता, सबो झन के पोठ।
बैर भाव के ये दिन मनखे, जथे भूला गोठ।।
जम्मो छोटे बड़े किसनहा, एक होथें आज।
हमर राज के बने प्रथा के, रखे बर गा लाज।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*शंकर छंद*
(१)
नहीं दिखय हर घर अब गमला, रहय जेमा फूल।
आपाधापी मा जी मनखे, यहू ला गे भूल।।
रंग-बिरंगा फूल रहय जी, गोंदा अउ गुलाब।
उनकर बिन अब घर अँगना हा, दिखते बड़ खराब।।
(२)
फूल नँदावत हे अब कतको, सेवंती मदार।
कभू-कभू देखे बर मिलथे, गेसिया कचनार।।
ऊँचा-ऊँचा भीत बने ले, उजाला नइ आय।
नानुक घर के अँगना होगे, कहाँ पेड़ लगाय।।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
आज प्रदूषण सेती बदलत, हवय गा जलवायु।
किसिम-किसिम के रोग धरत हे, घटत हावय आयु।।
आघू कुदरत के गुस्सा ला, सहय झन इंसान।
फेर पुराना दिन हा लहुटय, चिटिक देवव ध्यान।।
(२)
करव प्राकृतिक संसाधन के, सोच के उपयोग।
खखल बखल गा येकर भइया, करव झन उपभोग।।
बदलत मौसम हा सबझिन ला, देत हे संकेत।
पछताये बर पड़ही काली, अभी जावव चेत।।
(३)
ओजोन परत हा फैलत हे, होत भुँइया तात।
सब बर्फानी मन पिघलत हे, बिचारे के बात।।
जल जंगल आबाद रहे गा, दिखे हरियर घास।
चलव प्रदूषण रोके खातिर, करव कुछु परयास।।
(४)
खेलत हावय मनखे कइसे, देख गंदा खेल।
भुँइया के छाती ला खनके, निकालत हे तेल।।
अपन सुवारथ ला देखत हे, इहाँ मनखे आज।
इही नाश के कारण बनही, नहीं समझत राज।।
(५)
जघा-जघा गा बोर खनत हे, होत भुँइया खोल।
पेड़ काटके मनखे मन हा, बिगाड़त भूगोल।।
अबड़ बिछावत चारों-कोती, कंक्रीट के जाल।
भुँइया के कर दे हे देखव, आज बाराहाल।।
(६)
मनखे अब परिवेश सुधारे, अपन गलती मान।
फेर प्रदूषण झन फैलय जी, रखे अतका ध्यान।।
करव जागरुक जम्मो झन ला, इही एक उपाय।
सबके हित मा राहय अइसे, करय ओ व्यवसाय।।
*श्लेष चन्द्राकर*
करव सुवागत नवा बछर के, हाँसी खुशी संग।
अइसन अवसर मन हा भरथे, मन मा जी उमंग।।
बड़खा मन के नवा बछर मा, लेव आशीर्वाद
छाप अपन गा अइसे छोड़व, सदा राहय याद।।
*आज के अभ्यास - शंकर छंद*
*विषय - जाड़*
जाड़ हवय अलकरहा आसो, सबो हे हलकान।
मार इखँर झेलत हावयँ जी, सबो पशु इंसान।।
हांडा-गोड़ा काँपत हावै, चटक गे हे गाल।
शीतलहर के आघू कखरो, गलत नइ हे दाल।।
घाल देत हे जाड़ा हा गा, रुकिस बूता-काम।
भुर्री तापत हावय मनखे, बिहनिया अउ शाम।।
जुड़ पानी के सेती छोड़त, नहाये बर लोग।
सरदी खाँसी के सबझिन ला, धरत हावय रोग।।
देखावत हे अतका काबर, जाड़ हा जी कोप।
काट करत नइ हे सेटर हा, साल अउ कनटोप।।
चैन मिलत नइ हे कोनो ला, रात बिहना शाम।
कुरिया भीतर जुड़ लागत हे, सुहावत हे घाम।।
*श्लेष चन्द्राकर*
आज के अभ्यास - मौसम
शंकर छंद
(१)
बदलत मौसम ले सब रहिथें, किसनहा हलकान।
घेरीबेरी ओमन सहिथें, फसल के नुकसान।।
पानी के जरुरत मा इंदर, सुनय नइ फरियाद।
बेमौसम बरसा कर देथे, फसल ला बरबाद।।
(२)
करव भरोसा झन मौसम के, छलत हावय घात।
ये विनाश के अइसे लगथे, हरे का शुरुवात।।
बदली छाते सबो महीना, उठत हे तूफान।
गुंडागर्दी ला मौसम के, सहत हे इंसान।।
*श्लेष चन्द्राकर*
आज के अभ्यास- बँटवारा
शंकर छंद
(१)
बँटवारा के पीरा सहिथे, ददा-दाई जान।
जब कुटुंब के हो जाथे जी, अलग दू संतान।।
घर के अँगना मा जब होथे, खड़े गा दीवार।
अइसे लगथे हिरदे मा जी, चले हवय कटार।।
(२)
देख ददा-दाई के होथे, बुरा अब्बड़ हाल।
झगरा करके अलगे रहिथें, उखँर जब दू लाल।।
संसो मा ओमन पड़ जाथें, कहाँ अब उँन जाय।
काखर घर के पानी पीयय, कहाँ खाना खाय।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*आज के अभ्यास- शंकर छंद*
*विषय- स्वास्थ्य*
(१)
बने स्वास्थ्य ला अपन बनावव, करव हर दिन योग।
तन-मन चंगा रइही जानव, धरय नइ गा रोग।।
सँझा बिहिनिया नियम बना लौ, करव कसरत रोज।
बने रही गा सदा इखँर ले, चेहरा मा ओज।।
(२)
साफ सफाई अबड़ जरूरी, यहू मा दव ध्यान।
अपन साफ घर-द्वारी रखहू, गोठ ये लौ ठान।।
जानव संगी हो फैलाथे, गंदगी हा रोग।
बगरा देथे कचरा तब ले, कहाँ मानथे लोग।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*शंकर छंद*
(१)
धरती माँ के असली बेटा, किसनहा ला मान।
मिहनत ले जे हरियर करथे, खेत अउ खलिहान।।
अन्न उगाके रखथे सब ला, बने गा खुशहाल।
फेर सदा ओ बपरा रहिथे, इहाँ गा कंगाल।।
(२)
मार झेलथे मौसम के गा, किसनहा हर साल।
सहि-सहि के नुकसानी ओकर, अलकरहा हे हाल।।
फेर कभू शासन कोती ले, मिलय नइ सहयोग।
जियत हवय गा आज किसनहा, अबड़ दुख ला भोग।।
# *श्लेष चन्द्राकर*
*शंकर छंद*
(१)
जानबूझके बगरावत हें, जेन मन अफवाह।
अइसे लगथे अपन देश के, करय नइ परवाह।।
हिन्दू मुस्लिम ला लड़वाके, गलत करथें काम।
अउ दुनिया मा येमन करथें, देश ला बदनाम।।
(२)
हमर एकता झन टूटय गा, चिटिक देहू ध्यान।
राखव सुरता हमर देश के, जग मा हे बड़ मान।।
रचत देश टोरे बर साजिश, शत्रु मन हा आज।
चाल उखँर नाकाम करव गा, रखव येकर लाज।।
*श्लेष चन्द्राकर*
दुष्प्रभाव ले टॉवर के अब, दिखत बस दू-चार।।
बनत हवय ये जम्मोझन बर, जीव के जंजाल।
देख अपन सुविधा बर मनखे, बलावत हे काल।।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
हुर्रा भलुवा चितवा बघवा, सिरावत हे आज।
गाँव-गाँव के जंगल मन मा, करत मनखे राज।।
जीव-जंतु ला पकड़े बर गा, बिछावत हे जाल।
मार-मार के खावत हावय, उखँर बेचत खाल।।
(२)
सबो जानवर जंगल मन के, घटत हावय रोज।
मिलय नहीं गा अब देखे बर, करव कतको खोज।।
लालच मा आके मनखे हा, गिरत हावय घात।
कल सवाल लइका मन करही, बताही का बात।।
(३)
जीव-जंतु ला झन मारव जी, हरय संगी जान।
जुलुम उखँर ऊपर करहू ता, रिसाही भगवान।।
हरय प्रकृति के येमन सब जी, अंग जानव खास।
इखँर निशानी बचे रहे गा, करव सबो प्रयास।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*आज के अभ्यास - शंकर छंद*
विषय - वोट
(१)
लुगरा दारू पइसा धरके, नहीं देवव वोट।
जेमन लालच देथें उनकर, रथे मन मा खोट।।
जब चुनाव के बेरा होथे, तभे आथे द्वार।
अइसन मनखे मन ला संगी, जिताना बेकार।।
(२)
लालच देने वाला मनके, नहीं मानव बात।
चाल चलइया मन पहुँचाथे, बाद मा आघात।।
लोकतंत्र ला वोट बिसाके, करत हे बदनाम।
अपन सुवारथ साधे बर उँन, करत गंदा काम।।
(३)
सोच-समझके करव अपन गा, वोट के उपयोग।
करे तुहर मन बर जे बूता , चुनव अइसे लोग।।
वोट देय के मिले हवय जी, सबो ला अधिकार।
करव इखँर उपयोग बने सब, अपन मति अनुसार।।
*श्लेष चन्द्राकर
*विषय - मकर संक्रांति*
अध्र्य दान के परंपरा हे, सुरुज ला जी आज।
लाल फूल तिल अक्षत कुंकुम, चढ़हाथे समाज।।
(१)
सुरुज नरायण धनु ले करथे, राशि मकर प्रवेश।
तभे मकर संक्रांति परब ला, मनाथे गा देश।।
दक्षिण ले जब उत्ती कोती, बदलथे ओ चाल।
खगोलीय ये घटना करथे, सबो ला खुशहाल।।
(२)
बड़े-बड़े दिन हो जाथे अउ, नानकुन गा रात।
इही हरय संक्रांति परब के, खास जानव बात।।
सुरुज नरायण के किरपा ले, भागथे गा ठंड़।
शीतलहर के अउ मनखे मन, नहीं झेलय दंड़।।
(३)
नदी नहाये के बिहना गा, नियम हावय आज।
सुरुज देव ला माथ नवाके, नमन करत समाज।।
तिल गुड़ के सब लाडू खाथें, आज करथे दान।
पुण्य कमाथें पबरित दिन मा, इहाँ तब इंसान।।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
अपन ग्राम पंचायत के सब, चुनव गा सरपंच।
जेन बने हावय प्रत्याशी, देव ओला मंच।।
अपन वार्ड के पंच चुनव सब, रहय जे हुशियार।
तब विकास के पंचायत मा, बही गंगा धार।।
(१)
मूलभूत सब सुविधा मनके, लाभ ले हर गाँव।
तभे हमर भारत के बढ़ही, जगत मा जी नाँव।।
गाँधी नेहरु जी के सपना, करव सब साकार।
चुनव बने मनखे मन ला अउ, बनावव आधार।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*विषय - नरई*
(1)
खेतखार के नरई मन मा, लगावव झन आग।
हाथ-गोड मा लग जाथे गा, केंरवस के दाग।।
हवा प्रदूषित होथे जानव, हरे राखड़ खीक।
नांगर चलवा नरई मन ला, पाट देना ठीक।।
(2)
आग लगाथव जब नरई ला, बिगड़थे गा खेत।
काम अकल के कर लव संगी, बखत रहिते चेत।।
कभू प्रदूषण झन बगरय जी, करव अइसे काम।
झन खराब गा होवन देहू, किसनहा के नाम।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*आज का अभ्यास - शंकर छंद*
(१)
कार जलाके पेरवसी ला, करत हें बर्बाद।
बने सराके घुरुवा मा जी, बना सकथे खाद।।
येकर धुँगिया ले हो सकथे, दमा टीबी रोग।
जानबूझके तभो जलाथें, कहाँ मानत लोग।।
(२)
पेरवसी के राखड़ उड़के, जमत हे घर-द्वार।
साँस धुआँ मा लेके मनखे, पड़त हे बीमार।।
मरत जीव हे नान्हे नान्हे, रहइया जे खेत।
घात सहय बर पड़ही मुसकुल, सबो जावव चेत।
*श्लेष चन्द्राकर*
*विषय - छेरछेरा-२*
(४)
परब छेरछेरा मा बहिथे, मया के बड़ धार।
ये तिहार ला सबो मनाथें, किसनहा बनिहार।।
ऊंच नीच अउ जात धरम जी, बैर जावव भूल।
जुरमिल रहना सिखव सबो गा, हरय येकर मूल।।
(५)
हरियर धरती माँ ला राखव, रहू सब खुशहाल।
इंदर हा किरपा बरसाही, पड़य नइ अंकाल।।
छोटे बड़हर सुनव किसनहा, रखव झन जी क्लेश।
भुँइया ले सब जुड़ के राहव, परब के संदेश।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*विषय - छेरछेरा*
(१)
पूस महीना के पुन्नी हा, हरय गा दिन खास।
परब छेरछेरा के रहिथे, राज मा उल्लास।।
मींज-कूट जब लेथें जम्मो, किसनहा मन धान।
ये दिन करथें ओमन हा जी, चिटिक अन के दान।।
(२)
गुदुम मोहरी दफड़ा के धुन, हृदय लेथे जीत।
लोग छेरछेरा माँगत जब, संग गाथें गीत।।
बिना दान अन के झोंके उँन, नहीं छोड़य द्वार।
चिटको देरी होथे तब गा, लगाथें गोहार।।
(३)
परब दान के करथें रिश्ता, सबो झन के पोठ।
बैर भाव के ये दिन मनखे, जथे भूला गोठ।।
जम्मो छोटे बड़े किसनहा, एक होथें आज।
हमर राज के बने प्रथा के, रखे बर गा लाज।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*शंकर छंद*
(१)
नहीं दिखय हर घर अब गमला, रहय जेमा फूल।
आपाधापी मा जी मनखे, यहू ला गे भूल।।
रंग-बिरंगा फूल रहय जी, गोंदा अउ गुलाब।
उनकर बिन अब घर अँगना हा, दिखते बड़ खराब।।
(२)
फूल नँदावत हे अब कतको, सेवंती मदार।
कभू-कभू देखे बर मिलथे, गेसिया कचनार।।
ऊँचा-ऊँचा भीत बने ले, उजाला नइ आय।
नानुक घर के अँगना होगे, कहाँ पेड़ लगाय।।
*श्लेष चन्द्राकर*
(१)
आज प्रदूषण सेती बदलत, हवय गा जलवायु।
किसिम-किसिम के रोग धरत हे, घटत हावय आयु।।
आघू कुदरत के गुस्सा ला, सहय झन इंसान।
फेर पुराना दिन हा लहुटय, चिटिक देवव ध्यान।।
(२)
करव प्राकृतिक संसाधन के, सोच के उपयोग।
खखल बखल गा येकर भइया, करव झन उपभोग।।
बदलत मौसम हा सबझिन ला, देत हे संकेत।
पछताये बर पड़ही काली, अभी जावव चेत।।
(३)
ओजोन परत हा फैलत हे, होत भुँइया तात।
सब बर्फानी मन पिघलत हे, बिचारे के बात।।
जल जंगल आबाद रहे गा, दिखे हरियर घास।
चलव प्रदूषण रोके खातिर, करव कुछु परयास।।
(४)
खेलत हावय मनखे कइसे, देख गंदा खेल।
भुँइया के छाती ला खनके, निकालत हे तेल।।
अपन सुवारथ ला देखत हे, इहाँ मनखे आज।
इही नाश के कारण बनही, नहीं समझत राज।।
(५)
जघा-जघा गा बोर खनत हे, होत भुँइया खोल।
पेड़ काटके मनखे मन हा, बिगाड़त भूगोल।।
अबड़ बिछावत चारों-कोती, कंक्रीट के जाल।
भुँइया के कर दे हे देखव, आज बाराहाल।।
(६)
मनखे अब परिवेश सुधारे, अपन गलती मान।
फेर प्रदूषण झन फैलय जी, रखे अतका ध्यान।।
करव जागरुक जम्मो झन ला, इही एक उपाय।
सबके हित मा राहय अइसे, करय ओ व्यवसाय।।
*श्लेष चन्द्राकर*
करव सुवागत नवा बछर के, हाँसी खुशी संग।
अइसन अवसर मन हा भरथे, मन मा जी उमंग।।
बड़खा मन के नवा बछर मा, लेव आशीर्वाद
छाप अपन गा अइसे छोड़व, सदा राहय याद।।
*आज के अभ्यास - शंकर छंद*
*विषय - जाड़*
जाड़ हवय अलकरहा आसो, सबो हे हलकान।
मार इखँर झेलत हावयँ जी, सबो पशु इंसान।।
हांडा-गोड़ा काँपत हावै, चटक गे हे गाल।
शीतलहर के आघू कखरो, गलत नइ हे दाल।।
घाल देत हे जाड़ा हा गा, रुकिस बूता-काम।
भुर्री तापत हावय मनखे, बिहनिया अउ शाम।।
जुड़ पानी के सेती छोड़त, नहाये बर लोग।
सरदी खाँसी के सबझिन ला, धरत हावय रोग।।
देखावत हे अतका काबर, जाड़ हा जी कोप।
काट करत नइ हे सेटर हा, साल अउ कनटोप।।
चैन मिलत नइ हे कोनो ला, रात बिहना शाम।
कुरिया भीतर जुड़ लागत हे, सुहावत हे घाम।।
*श्लेष चन्द्राकर*
आज के अभ्यास - मौसम
शंकर छंद
(१)
बदलत मौसम ले सब रहिथें, किसनहा हलकान।
घेरीबेरी ओमन सहिथें, फसल के नुकसान।।
पानी के जरुरत मा इंदर, सुनय नइ फरियाद।
बेमौसम बरसा कर देथे, फसल ला बरबाद।।
(२)
करव भरोसा झन मौसम के, छलत हावय घात।
ये विनाश के अइसे लगथे, हरे का शुरुवात।।
बदली छाते सबो महीना, उठत हे तूफान।
गुंडागर्दी ला मौसम के, सहत हे इंसान।।
*श्लेष चन्द्राकर*
आज के अभ्यास- बँटवारा
शंकर छंद
(१)
बँटवारा के पीरा सहिथे, ददा-दाई जान।
जब कुटुंब के हो जाथे जी, अलग दू संतान।।
घर के अँगना मा जब होथे, खड़े गा दीवार।
अइसे लगथे हिरदे मा जी, चले हवय कटार।।
(२)
देख ददा-दाई के होथे, बुरा अब्बड़ हाल।
झगरा करके अलगे रहिथें, उखँर जब दू लाल।।
संसो मा ओमन पड़ जाथें, कहाँ अब उँन जाय।
काखर घर के पानी पीयय, कहाँ खाना खाय।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*आज के अभ्यास- शंकर छंद*
*विषय- स्वास्थ्य*
(१)
बने स्वास्थ्य ला अपन बनावव, करव हर दिन योग।
तन-मन चंगा रइही जानव, धरय नइ गा रोग।।
सँझा बिहिनिया नियम बना लौ, करव कसरत रोज।
बने रही गा सदा इखँर ले, चेहरा मा ओज।।
(२)
साफ सफाई अबड़ जरूरी, यहू मा दव ध्यान।
अपन साफ घर-द्वारी रखहू, गोठ ये लौ ठान।।
जानव संगी हो फैलाथे, गंदगी हा रोग।
बगरा देथे कचरा तब ले, कहाँ मानथे लोग।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*शंकर छंद*
(१)
धरती माँ के असली बेटा, किसनहा ला मान।
मिहनत ले जे हरियर करथे, खेत अउ खलिहान।।
अन्न उगाके रखथे सब ला, बने गा खुशहाल।
फेर सदा ओ बपरा रहिथे, इहाँ गा कंगाल।।
(२)
मार झेलथे मौसम के गा, किसनहा हर साल।
सहि-सहि के नुकसानी ओकर, अलकरहा हे हाल।।
फेर कभू शासन कोती ले, मिलय नइ सहयोग।
जियत हवय गा आज किसनहा, अबड़ दुख ला भोग।।
# *श्लेष चन्द्राकर*
*शंकर छंद*
(१)
जानबूझके बगरावत हें, जेन मन अफवाह।
अइसे लगथे अपन देश के, करय नइ परवाह।।
हिन्दू मुस्लिम ला लड़वाके, गलत करथें काम।
अउ दुनिया मा येमन करथें, देश ला बदनाम।।
(२)
हमर एकता झन टूटय गा, चिटिक देहू ध्यान।
राखव सुरता हमर देश के, जग मा हे बड़ मान।।
रचत देश टोरे बर साजिश, शत्रु मन हा आज।
चाल उखँर नाकाम करव गा, रखव येकर लाज।।
*श्लेष चन्द्राकर*
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