चौपई छंद(छत्तीसगढ़)- श्लेष चन्द्राकर

*विषय- जनता कर्फ्यू*
जनता कर्फ्यू बने बिचार। करना हम ला हे साकार।।
जोखिम कोनो अब नइ लेन। रोग बाढ़हन अउ नइ देन।।

घेरीबेरी धोवव हाथ। घूमव झन गा कखरो साथ।।
मास्क लगाके बनव सुजान। साफ सफाई मा दव ध्यान।।

जनता कर्फ्यू मा लव भाग। नइ चाबय कोरोना नाग।।
हो जाही गा ओ बिखहीन। छोड़ भागही हमर जमीन।।

घर मा राहव ये इतवार। बंद रही हटरी बाजार।।
कोरोना कोविड उन्नीस। पर पड़ना हे हम ला बीस।।

जनता मन ले हवय अपील। कर्फ्यू मा झन देहू ढील।।
चौदह घंटा दव सहयोग। दुर्बल हो जाही ये रोग।।

जागरूकता हरय बचाव। देवव सबला बने सुझाव।।
जनता कर्फ्यू सफल बनाव। कोरोना के रोग भगाव।।

*विषय-गौरैया*
गौरैया चिड़िया हे जान। गाँव गली बखरी के शान।।
येकर चूं-चूं सुग्घर बोल। कान म देथे मँदरस घोल।।

गौरैया के रखव खियाल। आज हवय गा ओ बदहाल।।
कमती होवत हावय आज। जेन करय अँगना मा राज।।

गौरैया के प्रान बचाव। पहिली कस दिन बादर लाव।।
गाँव गली मा फुदकय फेर। आ-आ के ओ कतको बेर।।

अँगना मा आ चुगे अनाज। फेर करय चूं-चूं आवाज।।
तिनका ला खोंधरा बनाय। जेमा ओ परिवार बसाय।।

*विषय-सनमान*
पइसा दे झन लव सनमान। गोठ सियानी मा दव ध्यान।
सुख देथे गा ये दिन चार। येकर लफड़ा हे बेकार।।

आयोजक मन चलके चाल। मतलब लेथें अपन निकाल।।
चक्कर मा झन उनकर आव। सोचव समझव अकल लगाव।।

तमगा के लालच दव छोड़। दलदल मा झन राखव गोड़।।
मन मा राखे ले संतोष। पैदा नइ होवय ये दोष।।

परहित के जे करथे काम। जग मा होथे ओकर नाम।।
मनखे मन जब लेथे जान। असली होथे ओ सनमान।।

पइसा के झन करव गुमान। कर्म बनाथे गा पहिचान।।
हिरदे ले सब लेवय नाम। समझव ओही ला ईनाम।।

तमगा के पाछू झन जाव। सुग्घर करके काम दिखाव।।
जन हिरदे मा करके वास। कहलाहू गा मनखे खास।।

*विषय-कोरोना बिख*
कोरोना ले झन डर्राव। येला हौव्वा मते बनाव।।
मन मा धीरज रखना सार। हर व्याधी के हे उपचार।।

हिम्मत ले सब लेवव काम। शुभ मिलथे येकर परिणाम।।
संसो करना हे बेकार। पहिली ले झन मानव हार।।

कोरोना बिख खाही मात। होवत हे येकर शुरुआत।।
करही ओ अतलंग कतेक। मनखे मन सब होत सचेत।।

कोरोना बिख बगरत घात। डर के जीयत सब दिन-रात।।
लेवत हावय येहा प्रान। जग वाला मन हे हलकान।।

मास्क लगावव धोवव हाथ। सैनिटाइजर राखव साथ।।
भीड़भाड़ ले राहव दूर। खाव सेव केला अंगूर।।

बइगा-गुनिया कर झन जाव। डॉक्टर मन ले लेव सुझाव।।
करवावत राहव गा जाँच। फेर नहीं आही जी आँच।।

खोले राखव आँखी-कान। साफ-सफाई मा दव ध्यान।।
कोरोना ला देबो मात। पहिली कस होही हालात।।

शासन के मानव निर्देश। साफ रखव घर के परिवेश।।
बिरथा झन निकलव गा खोर। कोरोना होही कमजोर।।

*किसान के पीरा*
घाटा अब्बड़ सहत किसान। बोके दलहन तिलहन धान।।
राजनीति सब हे चमकात। कोन उखँर देखत हालात।।

जेन बड़े करथे गा गोठ। ओमन होवत हावय पोठ।।
कर्जा-बोड़ी के सह भार। पड़त किसनहा मन बीमार।।

मौसम हा बड़ चलथे चाल। जब देखव पड़थे अंकाल।।
का किसान कर देहे भूल। लागत भी नइ होय वसूल।।

पानी बिजली बिना किसान। कइसे उपजावय गा धान।।
ध्यान देवईया हावय कोन। हाल बुरा उँन के सिरतोन।।

विषय - जिनगी
अइसे जिनगी अपन गुजार। जइसे हर दिन हवय तिहार।।
संगी मन बर बखत निकाल। ओमन ला गा रख खुशहाल।।

होय अपन या होवय गैर। कोनो सन झन रखबे बैर।।
मानवता के दे संदेश। कोनो ला झन दे तँय क्लेश।।

सुग्घर कर सब सन व्यवहार। जान इही जिनगी के सार।।
कोनो ला झन कर नाराज। जनसेवा के कर तँय काज।।

जिनगी के हे दिन गा चार। बाँट मया अउ बने गुजार।।
जग मा रहि जाथे बस नाम। छाप छुटे कर अइसे काम।।

*विषय-खान-पान*
खान-पान मा देके ध्यान। मनखे भइया बनव सुजान।।
तीर कभू नइ आये रोग। काया सुग्घर रही निरोग।।

डार तेल कम साग बनाव। बाहिर के झन खाना खाव।।
मैदा नइ पाचन बर ठीक। चोकर वाला आटा नीक।।

कोल्ड ड्रिंक करथे नुकसान। चाय धीरहा जहर समान।।
पीयव हरियर वाला चाय। नींबू शरबत चुस्ती लाय।।

पाकिट वाला जिनिस खराब। कब्ज बढ़ाथे मटन कबाब।।
शाकाहारी खाना खाव। काया सुग्घर अपन बनाव।।

सब बीमारी जाही हार। भोजन लव मौसम अनुसार।।
ये सब ला जब रखहू ध्यान। स्वस्थ तभे बनहू इंसान।।

*विषय-होली*
गीत बने गा गावव फाग। नंगाड़ा सन छेड़व राग।।
आये हावय फागुन मास। भरथे मन मा जे उल्लास।।

उज्जर उज्जर हे आकाश। घात खिले हे फूल पलाश।।
पुरवाई हा करत मतंग। उड़वावत होली के रंग।।

होत खड़ा होली के झाड़। बन जाही गा लगत पहाड़।।
ढोल नँगाड़ा के बड़ शोर। गूँजत हावय चारों ओर।।

आवत हावय रंग तिहार। सब हे स्वागत बर तैयार।।
लोग बिसावत रंग गुलाल। गावत फागुन गीत कमाल।।

लइकामन मा हे उत्साह। पूरा होवत उनकर चाह।।
पीटत टीना टप्पर ढोल। होली हे होली हे बोल।।

हिन्द देश के हे पहिचान। रंगन के ये परब महान।।
गावत गाना कविता छंद। लेवव सब येकर आनंद।।

होली मा ये रखहू याद। पानी झन होवय बर्बाद।।
तिलक लगाके परब मनाव। तन ले झटकुन रंग छुड़ाव।।

मर्यादा के रखहू ध्यान। ककरो झन करहू अपमान।।
झगरा के झन नौबत आय। ये सब कोनो ला नइ भाय।।

दूर नशा ले रहिना ठीक। आवन झन देहू नजदीक।।
झन पीहू गा भांग शराब। ये करथें माहौल खराब।।

जाव अपन पुरखौती गाँव। बड़खा मनके छूवव पाँव।।
सुग्घर मनथे उहाँ तिहार। सबके मिलथे मया अपार।।

*आज के अभ्यास - चौपई छन्द*
टोरव झन जन-जन के आस। जीतव गा उनकर विस्वास।।
काबर करथव गरब अतेक। मनखे बनके जीयव नेक।।

दीन दुखी के राखव ध्यान। ओमन ला देवव सनमान।।
मानव जिनगी के हे सार। बाँटत राहव मया दुलार।।

छल-बल ले जब लेहू काम। भुगते बर पड़ही अंजाम।।
टूट जही गा गरब गुमान। देखत हावय सब भगवान।।

*विषय- होली*
फागुन के बड़ नीक तिहार। होली देथे खुशी अपार।।
ये दिन खेलव रंग गुलाल। जुरिया के सब करव धमाल।।

गावव सुग्घर फागुन गीत। बाँटव सब मा मया पिरीत।।
ढोल नँगाड़ा बने बजाव। होली मा हुड़दंग मचाव।।

सबके मन मा भरव उमंग। पिचका भर-भर छींचव रंग।।
बैरी मन ला गला लगाव। भाईचारा आज दिखाव।।

सुग्घर होली परब रिवाज। जेकर ऊपर हम ला नाज।।
भारत के ये खास तिहार। आज मनावत हे संसार।।

पावन होली परब मनाव। छोटन ऊपर मया लुटाव।
बड़खा मन के लव आशीस। बैर भुलावव छोड़व रीस।।

रंग खुशी के हरय प्रतीक। येकर टीका लगथे नीक।।
होली खेलव सबके संग। चुपरव सुग्घर हर्बल रंग।।

गोठ बताथे परब पुनीत। सत के होथे खच्चित जीत।।
जीतिस ये दिन हे प्रहलाद। हार होलिका गिस हे याद।।

जुरमिल खेलव रंग गुलाल। सबला राखव गा खुशहाल।।
कोनो ला झन देवव क्लेश । मानवता के दव संदेश।।

*विषय- दंगा*
नोहय दंगाइन इंसान। काम उखँर हे असुर समान।।
लोगन के बोहावत खून। टोरत हावय गा कानून।।

फूँकत हे सबके घर-द्वार। मुंडी फोड़त पथरा मार।।
धरके घूमत हे बंदूक। लूटत लोगन के संदूक।।

बम के गोला देवत फेंक। मारत मनखे मन ला छेंक।।
छिड़कत हावय गा तेजाब। कर देवत माहौल खराब।।

पाप करत पापी मन घोर। टोरत हे सुनता के डोर।।
सब ला धरके ठूँसव जेल। बंद करव अब उनकर खेल।।

*विषय - रोजगार*
रोजगार हर मनखे पाय। सुग्घर जिनगी अपन बिताय।।
तंगी धन के होथे दूर। तब मुखड़ा मा आथे नूर।।

काम रथे जे मनखे पास। राहय नइ ओ कभू उदास।।
जग मा पाथे बड़ सनमान। बनथे ओकर नव पहिचान।।

डिग्री झन होवय बेकार। काम मिलय येकर अनुसार।।
नव जवान मन अवसर पाय। सुग्घर भविष्य अपन बनाय।।

*विषय- बिगड़े मौसम*
बिगड़े मौसम ला समझाव। खावत हावय अब्बड़ ताव।
लानत हे आँधी तूफान। सबला कर दे हे परसान।।

खेती करना मुसकुल होत। फसल उगइया मन हा रोत।।
बेमौसम होथे बरसात। हानि सहत हे मनखे घात।।

बदलत हावय मौसम चाल। सब्बो झन ला देवत घाल।।
होवत हे संक्रामक रोग। जिनगी बीतत पीरा भोग।।

जाड़-घाम के नइ हे सोर। होवत रहिथे बरसा घोर।।
मनखे मन हे बड़ हलकान। मारत हावय मौसम बान।।

*विषय-परीक्षा*
रोज परीक्षा जिनगी लेत। पीरा लोगन ला बड़ देत।।
दुख झेलत हे घात समाज। हाँसे बर सब भूलत आज।।

मनखे मन होके लाचार। महँगाई के झेलत मार।।
नइ बाढ़त हावय गा आय। अच्छा खाना कइसे खाय।।

आवत हावय अइसे मोड़। साथ अपन मन देवत छोड़।।
सूखत हावय पिरीत के धार। टूटत हावय अब परिवार।।

आज दिखत हे बदहाल। कार चलत हे जिनगी चाल।।
पूरा होतिस मनके चाह। लोग बोलतिस मुँह ले वाह।।

विषय - बदलत भारत
भारत हा अब आघू होत। बदलत हावय चारों कोत।।
कोना कोना होत विकास। नवा लिखत हावय इतिहास।।

सबला मिलत हवय गा काम। झोंकत हे सब वाजिब दाम।।
रोजगार के खूलत द्वार। हालत मा हे होत सुधार।।

शिक्षित होके मनखे आज। जुन्ना बदलत हवय रिवाज।।
घर मा शौचालय बनवात। साफ-सफाई ला अपनात।।

जात-पात के भूलत गोठ। रिश्ता सबके होवत पोठ।।
बदलत हावय अब परिवेश। सुग्घर होवत हे बड़ देश।।

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