रूपमाला छंद (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

*रूपमाला छंद*
जेन डाक्टर अउ पुलिस बर, हे करत पथराव।
मार के घायल करत हे, देत हावय घाव।।
काम येमन हा करत हे, देख लव अँडबंड।
देश के गद्दार मन ला, दव कड़ा गा दंड।।
*श्लेष चन्द्राकर*
नर्स डॉक्टर अउ पुलिस मन, नीक करथें काम।
रात दिन सेवा करत हे, छोड़ के आराम।।
जेन मन जिनगी बचाथे, हे हमर रखवार।
नीच मन उँन मार पखना, फोड़थे मुड़ कार।।
*श्लेष चन्द्राकर*

बिन लड़े ही मानथव जी, काय सेती हार।
आस ला नइ छोड़ना हे, जीत के ये सार।।
दूर मुसकुल एक दिन गा, हो जही आसान।
हार अब नइ मानना हे, गोठ ला तँय ठान।।
*श्लेष चन्द्राकर*
नाम पाछू भागना हे, मान लेवव भूल।
गंध बगराथे बने जी, सत करम के फूल।।
स्वार्थ तज समुदाय बर भी, कुछु करव गा काम।
देख लेहू तब हृदय ले, लोग लेही नाम।।
*श्लेष चन्द्राकर*
*रूपमाला छंद*
जे हमर पुरखा बताये, सब चुनव ओ राह।
का मिलत परिणाम येकर, झन करव परवाह।।
काम बूता नीक राहय, दव इही मा ध्यान।
देश मा छत्तीसगढ़ के, अउ बढ़ावव शान।।

लोगमन छत्तीसगढ़ के, होत सिधवा जान।
छल कपट ले दूर रहिना, हे उखँर पहिचान।।
बैर नइ राखय कभू जी, काकरो के साथ।
अउ सदा सबके मदद बर, उँन बढाथे हाथ।।

*विषय - बाबा साहेब आंबेडकर*
देश बर अंबेडकर जी, नीक करके काज।
आज जनमानस हृदय मा, उन करत हे राज।।
देश मा समता रहे गा, सोच राखिन नेक।
राह चल उनकर बताये, आज हें सब एक।।

*विषय - कला/हुनर*
(१)
झन कभू बिरथा गँवावव, हे बखत अनमोल।
जे बताथे गा बड़े मन, मान लेवव बोल।।
ठेलहा बइठे रहव झन, कुछु करव गा काम।
हे कला ओला निखारव, होय जग मा नाम।।
(२)
सब करा होथे हुनर गा, कुछु न कुछु बड़ खास।
माँज लव पहिचान करके, राख मन मा आस।।
हे अभी बेरा सिखे के, झन करव बर्बाद।
बन जहू कुछु ता जगत हा, नाम रखही याद।।

*विषय-दान*
ढोल काबर पीठथव जी, जब करत हव दान।
खुद अपन मुँहु ले अपन गा, झन करव गुणगान।।
जब कभू नेकी करव ता, गुप्त राखव नाम।
बिन सुवारथ लोगमन के, आत राहव काम।।

मानथे जेमन छुआ गा, सोच उनकर खीक।
मन म अइसे भाव रखना, छोड़ देना ठीक।।
एक जइसे हे सबोझन, ईश के संतान।
नीच कहिके झन करव जी, काकरो अपमान।।

जात ला छोटे बड़े जी, मानना दे छोड़।
प्रेम के नाता सबो ले, हो सके ता जोड़।
रग म सबके खून के गा, रंग होथे एक।
भेद करना छोड़ के अब, बन मनुख ते नेक।।

बाँटना होथे मया जी, हर धरम के सार।
सब रहव जुरमिल सदा गा, झन करव तकरार।।
एकता राखव बनाये, गोठ लव ये मान।
देश के जग मा बढ़ावव, आपमन सब शान।।

एक दूसर के धरम ला, दव सदा सनमान।
अउ दिखावव नेक बनके, आपमन इंसान।।
खेलथव पटकीकपटका, ले धरम के नाम।
रार तज इंसान बनके, अब करव जी काम।।

देश ले अज्ञान के जी, मेटबो अँधियार।
आस के दीया जलाके, लानबो उजियार।।
हर डहर हाँसीखुशी ले, दिन बिताये लोग।
स्वार्थ लालच के इहाँ अब, दूर भागय रोग।।

जे गलत हे साथ ओकर, झन कभू गा देव।
काम जे सुग्घर करत हे, नाँव ओकर लेव।।
का सही अउ का गलत हे, ये करव पहिचान।
जे हवय काबिल उही ला, दव बने सनमान।।

जेन डाक्टर नर्स मनके, हे करत अपमान।
रूप मा इंसान के गा, मान लव शैतान।।
कोन मूरख ला बताये, ओ करत हे पाप।
एक दिन भगवान देही, बज्र ओला श्राप।।

*विषय-जल/पानी*
(१)
जल बचाये बर अभी ले, दे ल पड़ही ध्यान।
बाढ़ही गरमी तहां तो, कम रबो परसान।।
देखके बउरे करव गा, होय झन बर्बाद।
जल बिना जिनगी चलय नइ, गोठ राखव याद।।
(२)
जल बिना मछरी तड़पतथे, होय झन ओ हाल।
आज येला गा बचाहू, काम आही काल।।
नल तभे चालू करव जी, हे जरूरी काम।
जल अगर बिरथा बहाहू, झेलहू अंजाम।।
(३)
आज पानी के कमी ले, हे सबो हलकान।
देख लव परिया पड़त हे, खेत अउ खलिहान।।
आजकल पहिली कुआँ अउ, सूख जाथे ताल।
पेयजल के बड़ समस्या, होत हे हर साल।।
(४)
रोज जनसंख्या बढ़त हे, अउ घटत जलस्रोत।
देख हाहाकार कइसे, अब मचत हर कोत।।
शुद्ध जल गा अब पिये के, कम मिलत हे जान।
कीमती हर बूंद होगे, जल बचाना ठान।।
(५)
जीव मन वन के मरत हे, जल बिना गा आज।
झन पड़य उँन ला भटकना, कुछु करव जी काज।।
प्यास मा ओमन तड़प के, प्रान अब झन खोय।
वन म ही उनकर पियेबर, जल व्यवस्था होय।।

काम संयम ले सबो लव, भय करव गा दूर।
वायरस छटियाय बर जी, हो जही मजबूर।।
गोठ ला सरकार के सब, आज मानव ठीक।
रोग कोरोना हमर तब, आय नइ नजदीक।।

देश के सेना पुलिस ला, दव बने सनमान।
जेन विपदा मा हमर जी, राखथे बड़ ध्यान।।
बाढ़ अउ भूकंप आये, या बगरथे रोग।
लानथे पटरी म जिनगी, दे अपन सहयोग।।

मान डाक्टर नर्स मन ला, आज के भगवान।
हर महामारी म सबके, उँन बचाथे प्रान।।
जान जोखिम डार खुद के, नीक करथे काम।
लोग ईश्वर बाद लेथे, अब उखँर गा नाम।।

विषय - वायरस
(१)
आज कोरोना असन हे, वायरस कतकोन।
जीव के जंजाल हे सब, जान लव सिरतोन।।
बिख घुलत वातावरण मा, तेकरे परिणाम।
चेतबो नइ फेर सहबो, अउ बड़े अंजाम।।
(२)
आज स्वाइन बर्ड फ्लू कस, वायरस बड़ जान।
हम सजग रहिबो नहीं ते, छीन सकथे प्रान।।
कीटनाशक के करव झन, खेत मा उपयोग।
माँस खाना छोड़ दव सब, लानथे ये रोग।।
(३)
वायरस घातक जमनथे, गंदगी ले घात।
स्वच्छता मा ध्यान देवव, ठीक हे ये बात।।
साग ला ताजा पकावव, भूँज के हर बार।
धो बने जल मा बनावव, रोज चाँउर दार।।
(४)
छानके पानी पियव जी, या गरम कर लेव।
वायरस ले बाँचना हे, ध्यान चिटिको देव।।
मास्क या रूमाल बाँधे, ही कहूं गा जाव।
हो सके तो काकरो ले, दूर ले बतियाव।।

*विषय-कोरोना*
(१)
रोग कोरोना हरे गा, जानलेवा जान।
गोठ ला सरकार के सब, थोड़ दिन बर मान।।
झन निकल घर मा रहेरा, प्रान हे अनमोल।
जागना हे झन सुते रा, खोल आँखी खोल।।
(२)
मास्क ला मुँहु मा लगाके, जा जभे हे काम।
घूम झन बिरथा कहूँ तँय, बइठ कर आराम।
झन मिलाबे हाथ कुछ दिन, काकरो गा संग।
हाथ मा झन गा छुबे जी, नाक अउ मुँहु अंग।।
(३)
आय कोरोना हवय गा, काल के बन योग।
देश अउ परदेश मा ये, घात बगरत रोग।।
सावधानी मा भलाई, गोठ ला ये मान।
भीड़ ले रहिना छटक के, आज मन मा ठान।।

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