शक्ति छंद (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर
शक्ति छंद
डरे बिन गलत होत हे ओ कहव।
कभू काकरो गा जुलुम झन सहव।।
बने काम इंसानियत बर करव।
दुखी लोग के दु:ख पीरा हरव।।
मिले हे मनुख देह अनमोल गा।
उठावव कदम नाप अउ तोल गा।।
मनुख कस रहव जानवर झन बनव।
सुनव टूट जाहू अतक झन तनव।।
अपन गाँव ला छोड़ झन जाव जी।
भले चार कौंरा ल कम खाव जी।।
कमावव अपन खेत अउ खार ला।
तुहँर हे जरूरत ग परिवार ला।।
पलायन करव झन रहव गाँव मा।
सही सुख मिलत हे अपन ठाँव मा।।
मिलत हे इहाँ ओ करव काम जी।
नहीं छोड़ जावव अपन धाम जी।।
चलत आजकल हे हवा तात गा।
अबड़ ये फिकर के हरे बात गा।।
चलत लू हवय घर म खुसरे रहव।
बचय घाम ले ये सबो ले कहव।।
विषय - गाँव
चलव लौट जाथन अपन गाँव मा।
बिताबो बखत बर पिपर छाँव मा।।
सदा शुद्ध बहथे उहाँ गा हवा।
पड़त हे उहाँ खाय बर कम दवा।।
हवय गाँव के नीक वातावरण।
उहाँ बाग जंगल हवय मनहरण।।
हवा जल सबो कुछ बने लागथे।
उहाँ देह ले रोग मन भागथे।।
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अलग हो भले जात अउ गा धरम।
रहय नेक जग बर सबो के करम।।
दिखावव बने एक इंसान बन।
जियव दीन मन के ग भगवान बन।।
सबो याद रखथें बने काम ला।
बुड़ोहू कभू झन अपन नाम ला।।
मनुख झन सहय कष्ट एकोकने।
करव काम इंसानियत बर बने।।
सफाई जरूरी हवय जान लव।
कभू गंदगी नइ करन ठान लव।।
इखँर ले जमनथें सबो रोग मन।
रखय साफ घर द्वार ला लोग मन।।
कहत गोठ सरकार हा गा बने।
लगाके सुनव ध्यान गा सबझने।।
नवा वायरस ले तभे बाँचहूँ।
जभे स्वच्छ परिवेश ला राखहूँ।।
विषय-मंद
सुनव तोड़थे मंद परिवार ला।
करे रोज बर्बाद घर-द्वार ला।।
हरे गोठ गा लाभ के मान लव।
पियन अब नहीं मंद ला ठान लव।।
गँवाथे पियइया अपन मान ला।
मिटाथे अपन नीक पहिचान ला।।
रहव मंद के मोह ला छोड़ के।
जियव सादगी ले नता जोड़ के।।
छकत ले पियव झन कभू मंद जी।
तुहर कर सकत साँस ये बंद जी।।
इखर ले बने रोज शरबत पियव।
सदा स्वस्थ रहि जिंदगी ला जियव।।
पियत हे अबड़ मंद जे लोग मन।
उँखर देह सचरे हवय रोग मन।।
बने देह रइही पिये छोड़ दव।
भरे मंद के बाटली तोड़ दव।।
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कहाँ काकरो बर हमन सोचथन।
सुवारथ अपन बस हमन देखथन।।
हरे एक मनखे उहू मन घलो।
हमू काम आबो ग उखरो चलो।।
तपत हे अबड़ आज जयचंद मन।
करत हे गलत काम मतिमंद मन।।
नता पाक ले जोड़ना चाहथे।
हमर देश ला तोड़ना चाहथे।।
सजा ला भुगतही ग गद्दार सब।
उखँर चाल ला नइ चलन देन अब।।
बईठन नहीं जी हमन हार के।
भगाबो सबो ला अबड़ मार के।।
विषय-शहर
शहर आय हन गाँव ला छोड़ के।
नता नानपन के सबो तोड़ के।।
भुला आज गे हन अपन ठाँव ला।
बने पेड़ बर लीम के छाँव ला।।
हरय बन बरोबर शहर जानथन।
निकलना इहाँ ले कहाँ ठानथन।।
चिटिक ये सुहावय नहीं गाँव कस।
चलय पेट आघू नहीं फेर बस।।
कमा खाय बर गा शहर आय हन।
सबो एक कुरिया म धंधाय हन।
मिले बर अपन संग जाथन तरस।
इहाँ साँस नइ ले सकन गाँव कस।।
शीर्षक - एक मजदूर हँव
जगत बर पछीना अपन गारथँव।
सबो चाह ला मयँ अपन मारथँव।।
जिये बर असुविधा म मजबूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
चलय कारखाना नहीं मोर बिन।
बनत हे जिंहा रेल अउ आलपिन।।
खने बर मिही नेंव मशहूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
कमावत हवव मँय चँउर दार बर।
खटत हँव अपन देश परिवार बर।।
करत रात दिन काम भरपूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
सड़क सेतु ला सब बनाथव मिही।
फसल खेत मन मा उगाथव मिही।।
पलायन करे गाँव ले दूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
(१)
जियत हव अपन बर सबोझन इहाँ।
कभू सोचथव दूसरा बर कहाँ।।
जिये बर सिखव दूसरा बर घलो।
दया धर्म के राह मा सब चलो।।
(२)
दुखी दीन मनके सहारा बनव।
जगत मा सबो के दुलारा बनव।।
सुवारथ तजव अउ बनव नेक सब।
तुहँर ले तभे खुश रही गाड रब।।
(३)
जियव गा अपन छोड़ अभिमान ला।
सिखव बाँटना गा अपन ज्ञान ला।।
जगत के बनव नेक इंसान जी।
सबो ला सदा देव सम्मान जी।।
विषय - रोग
पिये बर मिलत आज हे खीक जल।
इही जान लव लानही रोग कल।।
पियव गा सदा जल बने छान के।
करव थोड़ चिंता अपन प्रान के
प्रदूषण बढ़त आज हे घात गा।
बड़े ये फिकर के हरे बात गा।।
इही हे वजह रोग के जान लव।
घटाना प्रदूषण हवय ठान लव।।
प्रकृति ला करव छेड़ना बंद जी।
बनत काय सेतीन मतिमंद जी।।
हवा मा घुरत बिख अबड़ आज हे।
बढ़त रोग मन के इही राज हे।।
बुलावव नहीं वायरस नाग ला।
चुरोके बने खाव हर साग ला।।
रहू स्वच्छ ता रोग आवय नहीं।
चिकित्सक सुजी तब लगावय नहीं।।
धरत रोग हे आज कतको नवा।
बचे बर बनत फेर नइ हे दवा।।
करत आज अतलंग बड़ रोग मन।
तड़प के मरत हे इहाँ लोग मन।।
सुधारव अपन खान अउ पान गा।
तभे बाँचही रोग ले प्रान गा।।
निकालव बखत अउ करव योग सब।
रही दूर तन ले तहाँ रोग सब।।
विषय - कलम
कलम मा अबड़ बल हवय जान लव।
चलाना सही कोत हे ठान लव।।
हवय तेज तलवार ले धार गा।
रहय फालतू नइ इखर वार गा।
कलम घीसहू गा बने काम बर।
लिखव झन कभू छंद बस नाम बर।।
कलम ले अपन देव संदेश गा।
बदलही इहाँ फेर परिवेश गा।।
कलम ला बनावव हथियार जी।
गलत हर चलन मा करव वार जी।।
इहाँ के दशा हा सुधरही तभे।
कलम ले सदा सत ग लिखहू जभे।।
कलम ले लिखव गोठ अइसे सदा।
पढ़इया सबो ला लगे अलहदा।।
मिलय ज्ञान के साथ सब ला मजा।
चलय लोग मन धर धरम के धजा।।
विषय- चनौरी बरी
उरिद के बनाथे चनौरी बरी।
कथे गा कई झन अदौरी बरी।।
हमर राज के साग बड़ खास ये।
सबो लोग ला आत हे रास ये।।
चनौरी बरी हा सुहाथे बने।
बना खेड़हा सँग मिठाथे बने।।
दिखे मा भले लागथे नानकुन।
रथे फेर येमा भरे घात गुन।।
------------------
कभू राह झन छोड़हू कर्म के।
फरज मान पालन करव धर्म के।।
सदा देशहित बर करव काम गा।
बढ़ावव हमर देश के नाम गा।।
डरे बिन गलत होत हे ओ कहव।
कभू काकरो गा जुलुम झन सहव।।
बने काम इंसानियत बर करव।
दुखी लोग के दु:ख पीरा हरव।।
मिले हे मनुख देह अनमोल गा।
उठावव कदम नाप अउ तोल गा।।
मनुख कस रहव जानवर झन बनव।
सुनव टूट जाहू अतक झन तनव।।
अपन गाँव ला छोड़ झन जाव जी।
भले चार कौंरा ल कम खाव जी।।
कमावव अपन खेत अउ खार ला।
तुहँर हे जरूरत ग परिवार ला।।
पलायन करव झन रहव गाँव मा।
सही सुख मिलत हे अपन ठाँव मा।।
मिलत हे इहाँ ओ करव काम जी।
नहीं छोड़ जावव अपन धाम जी।।
चलत आजकल हे हवा तात गा।
अबड़ ये फिकर के हरे बात गा।।
चलत लू हवय घर म खुसरे रहव।
बचय घाम ले ये सबो ले कहव।।
विषय - गाँव
चलव लौट जाथन अपन गाँव मा।
बिताबो बखत बर पिपर छाँव मा।।
सदा शुद्ध बहथे उहाँ गा हवा।
पड़त हे उहाँ खाय बर कम दवा।।
हवय गाँव के नीक वातावरण।
उहाँ बाग जंगल हवय मनहरण।।
हवा जल सबो कुछ बने लागथे।
उहाँ देह ले रोग मन भागथे।।
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अलग हो भले जात अउ गा धरम।
रहय नेक जग बर सबो के करम।।
दिखावव बने एक इंसान बन।
जियव दीन मन के ग भगवान बन।।
सबो याद रखथें बने काम ला।
बुड़ोहू कभू झन अपन नाम ला।।
मनुख झन सहय कष्ट एकोकने।
करव काम इंसानियत बर बने।।
सफाई जरूरी हवय जान लव।
कभू गंदगी नइ करन ठान लव।।
इखँर ले जमनथें सबो रोग मन।
रखय साफ घर द्वार ला लोग मन।।
कहत गोठ सरकार हा गा बने।
लगाके सुनव ध्यान गा सबझने।।
नवा वायरस ले तभे बाँचहूँ।
जभे स्वच्छ परिवेश ला राखहूँ।।
विषय-मंद
सुनव तोड़थे मंद परिवार ला।
करे रोज बर्बाद घर-द्वार ला।।
हरे गोठ गा लाभ के मान लव।
पियन अब नहीं मंद ला ठान लव।।
गँवाथे पियइया अपन मान ला।
मिटाथे अपन नीक पहिचान ला।।
रहव मंद के मोह ला छोड़ के।
जियव सादगी ले नता जोड़ के।।
छकत ले पियव झन कभू मंद जी।
तुहर कर सकत साँस ये बंद जी।।
इखर ले बने रोज शरबत पियव।
सदा स्वस्थ रहि जिंदगी ला जियव।।
पियत हे अबड़ मंद जे लोग मन।
उँखर देह सचरे हवय रोग मन।।
बने देह रइही पिये छोड़ दव।
भरे मंद के बाटली तोड़ दव।।
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कहाँ काकरो बर हमन सोचथन।
सुवारथ अपन बस हमन देखथन।।
हरे एक मनखे उहू मन घलो।
हमू काम आबो ग उखरो चलो।।
तपत हे अबड़ आज जयचंद मन।
करत हे गलत काम मतिमंद मन।।
नता पाक ले जोड़ना चाहथे।
हमर देश ला तोड़ना चाहथे।।
सजा ला भुगतही ग गद्दार सब।
उखँर चाल ला नइ चलन देन अब।।
बईठन नहीं जी हमन हार के।
भगाबो सबो ला अबड़ मार के।।
विषय-शहर
शहर आय हन गाँव ला छोड़ के।
नता नानपन के सबो तोड़ के।।
भुला आज गे हन अपन ठाँव ला।
बने पेड़ बर लीम के छाँव ला।।
हरय बन बरोबर शहर जानथन।
निकलना इहाँ ले कहाँ ठानथन।।
चिटिक ये सुहावय नहीं गाँव कस।
चलय पेट आघू नहीं फेर बस।।
कमा खाय बर गा शहर आय हन।
सबो एक कुरिया म धंधाय हन।
मिले बर अपन संग जाथन तरस।
इहाँ साँस नइ ले सकन गाँव कस।।
शीर्षक - एक मजदूर हँव
जगत बर पछीना अपन गारथँव।
सबो चाह ला मयँ अपन मारथँव।।
जिये बर असुविधा म मजबूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
चलय कारखाना नहीं मोर बिन।
बनत हे जिंहा रेल अउ आलपिन।।
खने बर मिही नेंव मशहूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
कमावत हवव मँय चँउर दार बर।
खटत हँव अपन देश परिवार बर।।
करत रात दिन काम भरपूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
सड़क सेतु ला सब बनाथव मिही।
फसल खेत मन मा उगाथव मिही।।
पलायन करे गाँव ले दूर हँव।
उही जान लव एक मजदूर हँव।।
(१)
जियत हव अपन बर सबोझन इहाँ।
कभू सोचथव दूसरा बर कहाँ।।
जिये बर सिखव दूसरा बर घलो।
दया धर्म के राह मा सब चलो।।
(२)
दुखी दीन मनके सहारा बनव।
जगत मा सबो के दुलारा बनव।।
सुवारथ तजव अउ बनव नेक सब।
तुहँर ले तभे खुश रही गाड रब।।
(३)
जियव गा अपन छोड़ अभिमान ला।
सिखव बाँटना गा अपन ज्ञान ला।।
जगत के बनव नेक इंसान जी।
सबो ला सदा देव सम्मान जी।।
विषय - रोग
पिये बर मिलत आज हे खीक जल।
इही जान लव लानही रोग कल।।
पियव गा सदा जल बने छान के।
करव थोड़ चिंता अपन प्रान के
प्रदूषण बढ़त आज हे घात गा।
बड़े ये फिकर के हरे बात गा।।
इही हे वजह रोग के जान लव।
घटाना प्रदूषण हवय ठान लव।।
प्रकृति ला करव छेड़ना बंद जी।
बनत काय सेतीन मतिमंद जी।।
हवा मा घुरत बिख अबड़ आज हे।
बढ़त रोग मन के इही राज हे।।
बुलावव नहीं वायरस नाग ला।
चुरोके बने खाव हर साग ला।।
रहू स्वच्छ ता रोग आवय नहीं।
चिकित्सक सुजी तब लगावय नहीं।।
धरत रोग हे आज कतको नवा।
बचे बर बनत फेर नइ हे दवा।।
करत आज अतलंग बड़ रोग मन।
तड़प के मरत हे इहाँ लोग मन।।
सुधारव अपन खान अउ पान गा।
तभे बाँचही रोग ले प्रान गा।।
निकालव बखत अउ करव योग सब।
रही दूर तन ले तहाँ रोग सब।।
विषय - कलम
कलम मा अबड़ बल हवय जान लव।
चलाना सही कोत हे ठान लव।।
हवय तेज तलवार ले धार गा।
रहय फालतू नइ इखर वार गा।
कलम घीसहू गा बने काम बर।
लिखव झन कभू छंद बस नाम बर।।
कलम ले अपन देव संदेश गा।
बदलही इहाँ फेर परिवेश गा।।
कलम ला बनावव हथियार जी।
गलत हर चलन मा करव वार जी।।
इहाँ के दशा हा सुधरही तभे।
कलम ले सदा सत ग लिखहू जभे।।
कलम ले लिखव गोठ अइसे सदा।
पढ़इया सबो ला लगे अलहदा।।
मिलय ज्ञान के साथ सब ला मजा।
चलय लोग मन धर धरम के धजा।।
विषय- चनौरी बरी
उरिद के बनाथे चनौरी बरी।
कथे गा कई झन अदौरी बरी।।
हमर राज के साग बड़ खास ये।
सबो लोग ला आत हे रास ये।।
चनौरी बरी हा सुहाथे बने।
बना खेड़हा सँग मिठाथे बने।।
दिखे मा भले लागथे नानकुन।
रथे फेर येमा भरे घात गुन।।
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कभू राह झन छोड़हू कर्म के।
फरज मान पालन करव धर्म के।।
सदा देशहित बर करव काम गा।
बढ़ावव हमर देश के नाम गा।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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