अरसात सवैया (छत्तीसगढ़ी) - श्लेष चन्द्राकर

 अरसात सवैया

(1)
भावय गा नइ मानव ला करना अभिमान कभू निज ज्ञान के।
याद रखौ सिरतोन हरे झुक जावत हे सर गर्व गुमान के।
जानव इज्जत हावय ये जग मा सत बात हरे गुणवान के।
उन्नति जीवन मा करहू नित मानव सुग्घर गोठ सियान के।
(2)
पावन ताल नदी मन के जल ला मनखे मन हा मइलात हें।
आज उहाँ सब खोर गली मनके कचरा मल-मूत्र बहात हें।
येकर कारण गा कछुआ मछरी अउ मेंढक प्रान गँवात हें।
स्वारथ मा पड़ लोगन हा जल संकट ला विकराल बनात हें।
(3)
ये जग मा अब लेवत रूप हवै जल संकट हा विकराल जी।
भू-जल के सब स्रोत सिरावत सूखत हे नँदिया अउ ताल जी।
येकर कारण होवत खीक हवै सब लोगन के अब हाल जी।
रोकव व्यर्थ बहावत हे जल ता अउ देवव एक मिसाल जी।
(4)
मातु पिता भगवान बरोबर होवत हे उन ला नित मान दे।
होय नहीं तकलीफ कभू उन ला चिटको भइया तँय ध्यान दे।
रोग धरे उन ला तब गा उपचार करा अउ जीवन दान दे।
सुग्घर फर्ज निभा तँय ओमन ऊपर आँच कभू झन आन दे।
(5)
जीवन युद्ध हरे हर मानव ला लड़ना पड़थे तँय जान ले।
सोझ इहाँ रहना पड़थे नइ काम बने कुछु गर्व गुमान ले।
खास सबो जग मा रहिथें तँय ताकत ला खुद के पहिचान ले।
हार कभू नइ मानव आय भले कतको अब मुश्किल ठान ले।
(6)
मीत सतावत अब्ब्ड हे जुड़ मौसम दीनन ला हर साल जी।
स्वेटर कंबल के बिन ओमन के दयनीय रथे बड़ हाल जी।
जेमन सोवइया फुटपाथ म हें उन के बनथे जुड़ काल जी।
होतिस काश नसीब गरीबन ला सब स्वेटर कंबल शाल जी।
(7)
लाख सतावय ये जग हा अब ठान डरे हन गा सत बोलबो।
जेन इहाँ गलती करथे उन के अब पोल सबो कुछु खोलबो।
सार निकाल तभे सकबो जब आम बरोबर गा पिचगोलबो।
हावय सोन बरोबर कोन खरा मनखे सब आज टटोलबो।
(8)
देवव ध्यान गरीबन ऊपर झेलत हें उन कष्ट अपार गा।
काबर ओमन ला जग मा नइ देवय लोगन आदर प्यार गा।
मानय ये जग के मनखे मन दीनन ला खुद के परिवार गा।
राहय जी खुश जीवन मा उन लोगन के अब होय सुधार गा।
(9)
मानवता दिखलावव आवव गा सब लोगन के नित काम जी।
एक गुणी मनखे बनके जग मा अब खूब कमावव नाम जी।
नेक विचार रखौ मन मा तब गा हिय मा बसही प्रभु राम जी।
लोगन ला खुश राखव गा तब ठाँव सबो बनही सुखधाम जी।
(10)
जानव गा कतको दुख ला सहि जीयत हावय आज किसान हा।
चाहत ओ जइसे रहिथे वइसे नइ होवय ओकर धान हा।
काबर मौन हवै सब देखत ओकर दीन दशा भगवान हा।
देवय मौसम साथ सदा उन के अउ काम करे वरदान हा।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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