काटन झन दो बिरथा, पेड़ बचाव। हराभरा धरती ला, फेर बनाव।। रुख-राई झन काटव, समझो बात। वन घटही तब होही, कम बरसात।। झन उपयोग करव गा, पालीथीन। हो जाही पहिली कस, हमर जमीन।। झिल्ली हा कर देथे, नाली जाम। कचरा डब्बा येकर, सही मुकाम।। मिरगा भलुवा हाथी, खोजत नीर। आवत हवय गाँव के, नँदिया तीर।। रुख-राई के पत्ती, गे हे सूख। मरत हवय सब वन के, प्राणी भूख।। दिन-दिन सूखत हावय, जल के स्त्रोत। बूँद-बूँद पानी बर, मनखे रोत।। कम होगे हे संगी, नल के धार। पीये के पानी बर, मचथे रार।। हैण्डपम्प के होगे, खस्ताहाल। जम्मो सूखत हावय, नँदिया ताल।। मोटर के धुँगिया हे, जहर समान। येकर सेती जाथे, कतको जान।। धुर्रे हा फैलाथे, कतको रोग। मुहू बाँध के निकले, घर ले लोग।। लगथे अब्बड़ गरमी, दिन अउ रैन। मानसून जब आही, मिलही चैन।। तात हवा चलथे गा, दिन अउ रात। सबझन सोचत हावय, हो बरसात।। रानी दुर्गावती पर बरवै छंद... हमर देश के बेटी, रिहिन महान। राजा कीरति सिंह के, वो संतान।। आठे के दिन जनमिन, कन्या नेक। रिहिन ददा-दाई के, लइका एक।। ओकर माँ-बाप रखिन, दुर्गा नाम। करिन राज के हित मा, जे हा काम।। दुर्गावती...